चटपटा स्वाद, सुंगधित मसाले और समृद्ध पाक-परंपराओं के लिए फेमस सांभर. इडली, डोसा, उत्तपम हो या साउथ इंडियन की कोई दूसरी डिश. जब तक सांभर से भरी कटोरी थाल में न हो, तब तक मजा नहीं आता. कोई भी साउथ इंडियन डिश, सांभर के बिना अधूरी है. फिल्म ‘छावा’ (Chhaava Movie) के रिलीज होने के बाद संभाजी महाराज के किरदार की खूब तारीफ हुई. विक्की कौशल (Vicky Kaushal) ने अपनी एक्टिंग से अलग छाप छोड़ी. सांभर के बीच में, संभाजी महाराज का जिक्र इसलिए, क्योंकि जिस डिश की बात हम कर रहे हैं, उसके तार संभाजी महाराज से जुड़े हुए हैं (Sambhar Connection With Sambhaji). ये बात सुनने में अजीब लग सकती है. लेकिन तमाम तरह की किंवदंतियां तो यही कहती है.
छावा फिल्म से कैसे जुड़े हैं 'सांभर' के तार? साउथ इंडियन डिश का मराठी इतिहास जान लीजिए
Chhaava Box Office Collection: फिल्म रिलीज होने के बाद Sambhaji Maharaj के किरदार की खूब तारीफ हुई. Vicky Kaushal और Akshaye Khanna ने अपनी एक्टिंग से अलग छाप छोड़ी. ये फिल्म Chatrapati Sambhaji Maharaj के जीवन पर आधारित है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारी फेवरेट साउथ इंडियन डिश Sambhar के तार संभाजी महाराज से जुड़े हुए हैं. लेकिन कैसे?
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एक ऐसा ही किस्सा, जिसमें कहा गया कि सांभर एक ‘इत्तेफाकन’ बना व्यंजन है.
17वीं शताब्दी की बात है. तमिलनाडु के ‘तंजावुर’ पर मराठों का शासन था. 1684 में व्यंकोजी की मृत्यु के बाद उनके बेटे शाहूजी, तंजावुर की गद्दी पर बैठे. उस वक़्त शाहूजी की उम्र कोई बारह साल रही होगी. लिखने-पढ़ने के अलावा शाहूजी एक कला में और माहिर थे. वो थी पाक-कला. कहा जाता है कि एक बार छत्रपति संभाजी महाराज, तंजावुर के दौरे पर गए. संभाजी महाराज की खूब आवभगत हुई. शाहूजी महाराज ने अपने रसोइयों को आदेश दिया कि संभाजी जी महाराज के लिए आमटी दाल (एक महाराष्ट्रीय व्यजंन) बनाई जाए. लेकिन तभी रसोई में ‘कोकम’ खत्म हो गया. बता दें कि कोकम एक तरह का खट्टा फल होता है, जिसका इस्तेमाल आमटी को खट्टा बनाने के लिए किया जाता है.

डॉ. पद्मिनी नटराजन अपने लेख ‘द स्टोरी ऑफ सांभर’ में लिखते हैं,
‘उस वक्त सेवक अपनी धोतियों में कांप रहे थे, सिर्फ यह बताने के लिए कि आज उनका पसंदीदा व्यंजन नहीं बन पाया. तभी एक चतुर विदूषक (बुद्धिमान व्यक्ति) ने समस्या को हल करने का फैसला किया. उसने राजा के कान में फुसफुसाया कि स्थानीय लोग करी में बेहतर खट्टापन लाने के लिए थोड़े से इमली के गूदे का इस्तेमाल करते हैं.’
इसके बाद उस रोज़ की रसदार सब्ज़ी में इमली का पेस्ट डाला गया और जो डिश बनकर तैयार हुई वो संभाजी को खूब पसंद आई. संभाजी महाराज के सम्मान में इस पकवान का नाम संभाजी आहार (संभाजी का भोजन) नाम दिया गया, जो आगे चलकर सांभर हो गया.

फिर यही सांभर दक्षिण भारत की सरहदों को पार करता हुआ धीरे-धीरे हिंदुस्तान के कोने-कोने तक पहुंचा. भारतीय इतिहासकार और फूड क्रिटिक ‘पुष्पेश पंत’ लल्लनटॉप से बात करते हुए कहते हैं,
इस कहानी में कितनी सच्चाई है?‘तमिल साहित्य में भी सांभर शब्द का जिक्र नहीं मिलता है. ऐसे में ये संभावना ज्यादा है कि सांभर की उत्पत्ति संभाजी के समय ही हुई हो. भारत में ऐसे कई व्यंजन है, जो जिस क्षेत्र में ज्यादा फेमस हैं, लेकिन उनकी उत्पत्ति कहीं और से हुई है. पंजाब से शुरू हुआ छोला-भटूरा धीरे-धीरे पूरे उत्तर-भारत का प्रिय व्यंजन बन गया. वहीं, पनीर सबसे पहले बंगाल में आया, जिसे पुर्तगाली भारत लाए. इसी तरह ऐसे कई व्यंजन हैं.
इस कहानी को लेकर भी कई विवाद हैं. BBC मराठी के हवाले से संस्कृति के रिसर्चर डॉक्टर चिन्मय दामले कहते हैं कि सांभर से जुड़ी इस कहानी में कोई ख़ास सच्चाई नहीं है. वो तर्क देते हैं,
तमिल-मराठा साहित्य में ‘सांभर’ का जिक्र‘जब शाहूजी ने 1684 में तंजावुर की गद्दी संभाली तो वो 12 साल के थे और संभाजी महाराज की सत्ता का प्रमुख दौर 1680 से 1689 के बीच का माना जाता है. ऐसे में इस बात की संभावना बहुत कम है कि ये घटना 1684 से 1689 के बीच घटी होगी. इसके अलावा संभाजी महाराज के तंजावुर का दौरा करने के क़िस्से की पुष्टि के लिए भी कोई सबूत नहीं हैं. सत्रहवीं सदी के मराठा पकवानों के बारे में बहुत कम दस्तावेज़ी ज़िक्र मिलते हैं. ऐसे में लगता यही है कि सांबर बनाने की शुरुआत को लेकर सुनाए जाने वाले इस क़िस्से का कोई ख़ास आधार नहीं है.’
चिन्मय दामले का कहना है कि महाराष्ट्र में सांबर और सांबरू शब्द का प्रयोग सदियों से होता आ रहा है. वे कहते हैं कि चक्रधर स्वामी की रचना लीलाचरित्र की कविता में सांबरू शब्द का इस्तेमाल स्वाद बढ़ाने वाले पकवान के लिए किया गया है. आगे बताते हैं,
‘इस कविता का शीर्षक “तथा चना अरोगन” है. भैदेव एक गांव में जाते हैं और वो चने की कुछ कोठरियां देखते हैं. वो चक्रधर स्वामी के लिए अच्छे दर्ज़े के चने जमा करते हैं और बाक़ी को खा जाते हैं. फिर वो मुट्ठी भर चने लेकर मुनिदेव नाम के साधु के पास जाते हैं और कहते हैं कि मुनिदेव मैं आपके लिए कुछ चने लाया हूं. वो स्वाद में बहुत मीठे हैं. तब संत मुनिदेव एक महिला को कहते हैं कि वो इन चनों को ले जाए और इस्तेमाल कर ले. फिर वो महिला धनकाने और सांबरिव नाम के पकवान तैयार करती है. इस चौपाई में सांबरिव का मतलब सांबर यानी स्वाद बढ़ाने वाला है.'
चिन्मय बताते हैं कि देखा जाए तो सांबरू(एक मसाला) और सांबरिव (स्वाद बढ़ाने वाला पकवान), दोनों ही शब्दों का इस्तेमाल महाराष्ट्र में उन्नीसवीं सदी तक होता रहा था.
जहां तक सवाल है कि तमिल साहित्य में ‘सांभर’ शब्द का जिक्र न मिलने की, ऐसा भी नहीं है. उसके लिए अब एक और कविता को देख लेते हैं, जिसे विजयनगर साम्राज्य के राजा विजयनगरम (शासनकाल 1509-1529) ने तेलुगु में लिखी थी. 2010 में इसका अंग्रेजी में अनुवाद आंध्र विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर श्रीनिवास सिस्टला ने किया था. द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के हवाले से वे लिखते हैं कि उनके अनुवाद में कविता की कुछ पंक्तियां इस प्रकार है,
'स्नेह के चलते, उनकी पत्नी ने एक बोरे में भर दिया है. अलग-अलग हिस्सों में पैक किए हुए सांभर की सामग्री, गुड़, इमली का पेस्ट. गुड़ में मिला हुआ जीरा, खाना पकाने के बर्तन, बंधी सूखी घास. छोटी केतली में गाय का घी, जलाने के लिए सूखे गाय के गोबर के उपले, दही-वडियामुलु. पानी में भिगोया हुआ ओरुगुलु, दालें और विष्णु की पूजा के लिए पूजा का डिब्बा'
वे लिखते हैं कि इस प्रकार, छंद में कई अन्य सामग्रियों के साथ "सांबरमपुचिंतापंडु" का उल्लेख है, जिसका उनके हिसाब से मतलब है, ‘सांबर तैयार करने के लिए सभी सामग्रियों के साथ मिली पकी हुई इमली.’ यानी देखा जाए तो दक्षिण भारतीय साहित्य में भी कहीं न कहीं इससे मिलते-जुलते व्यंजन का जिक्र मिल जाता है.
खैर, ये बहस हम फूड हिस्टोरियंस के हिस्से ही छोड़ देते हैं. जाते-जाते बोनस में डिश से जुड़ी हुई एक-दो मजेदार बातें आपको और बता देते हैं. जैसे समोसा भारत में पर्शिया से आया और पंजाब के रास्ते होते हुए पूरे भारत तक पहुंचा. आर्कियोलॉजिस्ट डॉ. कुरुश एफ. दलाल बताते हैं,
'समोसे में पंजाबी, सिंधी और बंगाली जैसी कई किस्में हैं. कुछ लोग इसमें आलू भरते हैं, तो कुछ मटर और कुछ लोग मांस का इस्तेमाल करते है. समोसा फारस से आया था और जैसे-जैसे यह पंजाब से भारत पहुंचा, वैसे-वैसे यह शाकाहारी होता चला गया.'
राजमा मैक्सिको से भारत में आया. जिसे फ्रांसीसी, उत्तर भारत में सबसे पहले लेकर आए. तो वहीं, मोमोज हिमालय के रास्ते होते हुए तिब्बत से भारत पहुंचा.
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