भारतीय-ब्रिटिश-अमेरिकी मूल के लेखक सलमान रुश्दी ने फिलिस्तीनी उग्रवादी संगठन हमास की तुलना तालिबान से की है (Salman Rushdie Hamas Taliban). उन्होंने इजरायल-हमास युद्ध का जिक्र करते हुए ये बात कही है. सलमान रुश्दी ने कहा है कि अमेरिका समेत दुनियाभर में जो छात्र और युवा जिस तरह हमास का समर्थन कर रहे वो चिंताजनक है.
सलमान रुश्दी ने 'आजाद' फिलिस्तीन को क्यों कहा 'तालिबान जैसा' और ईरान का 'क्लाइंट'?
सलमान रुश्दी का कहना है कि 'आजाद' फिलिस्तीन 'तालिबान जैसा' और ईरान का 'क्लाइंट' हो जाएगा. जर्मन ब्रॉडकास्टर आरबीबी से बात करते हुए उन्होंने कहा कि गज़ा में जिस तरह इतने लोगों को मारा जा रहा है उसे देख कर कोई भी इंसान व्यथित हो जाएगा.

सलमान रुश्दी का कहना है कि 'आजाद' फिलिस्तीन 'तालिबान जैसा' और ईरान का 'क्लाइंट' हो जाएगा. जर्मन ब्रॉडकास्टर आरबीबी से बात करते हुए उन्होंने कहा कि गज़ा में जिस तरह इतने लोगों को मारा जा रहा है उसे देख कर कोई भी इंसान व्यथित हो जाएगा. उन्होंने आगे कहा,
"मैं चाहूंगा कि प्रदर्शन कर रहे लोग हमास का भी जिक्र करें क्योंकि इसकी शुरुआत वहीं से हुई थी. हमास एक आतंकवादी संगठन है. ये अजीब है कि युवा, प्रगतिशील छात्र राजनीति करने के लिए एक फासीवादी आतंकवादी समूह का समर्थन कर रहे हैं. वो फिलिस्तीन को मुक्त करने की बात कर रहे हैं, मैं ऐसा व्यक्ति हूं जिसने 1980 के समय से अपने जीवन के अधिकांश समय फिलिस्तीन के पक्ष में तर्क दिए हैं."
दरअसल रुश्दी की किताब द सेटेनिक वर्सेज़ (1988) में कथित तौर पर ईशनिंदा की गई है. इसे लेकर 1989 में ईरान के तत्कालीन सुप्रीम लीडर अयातुल्ला रुहोल्लाह खुमैनी ने उनकी हत्या का फतवा जारी किया था. तब से सलमान रुश्दी पर जान का खतरा बना हुआ है. साल 2022 में एक शख्स ने उन पर जानलेवा हमला भी किया था जिसमें उन्होंने अपनी एक आंख खो दी थी. अब हमास के मुद्दे पर रुश्दी ने कहा है कि अगर अभी कोई फ़िलिस्तीनी राज्य होता, तो इसे हमास के द्वारा चलाया जाता और जो इसे तालिबान जैसा राज्य बना देता. रुश्दी के मुताबिक ऐसा राज्य ईरान का क्लाइंट होगा.
उन्होंने फिलिस्तीन के समर्थकों को लेकर कहा, "क्या पश्चिमी वामपंथ के प्रगतिशील आंदोलनों का मकसद ये है? एक और तालिबान लाने के लिए? मध्य पूर्व में इजरायल के ठीक बगल में एक और अयातुल्ला जैसा राज्य?"
साथ में रुश्दी ने ये भी कहा कि गजा में हो रही मौतों के प्रति वो संवेदनशील हैं, लेकिन जब वे (फिलिस्तीनी समर्थक) यहूदी विरोधी भावना और कभी-कभी हमास के वास्तविक समर्थन की ओर बढ़ते हैं, तो ये बहुत समस्या वाली बात है.
(यह स्टोरी हमारे साथ इंटर्नशिप कर रहे रोहित ने लिखी है.)
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