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भाई के लिए राखी नहीं ली थी साक्षी ने, कहा था, 'मेडल लाऊंगी, बांध लियो'

साक्षी मलिक के परिवार और करीबियों ने सुनाई उनकी कामयाबी से पहले की कहानी.

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रियो का पहला मेडल दिलाने वाली साक्षी मलिक.
रोहतक की छोरी मेडल ले आई! मन करता है कि पच्चीस बार इस लाइन को रिपीट करें!
रोहतक की छोरी मेडल ले आई!
पहली बार ओलंपिक जा रही थी साक्षी. उम्मीदें सबको थीं, पर साक्षी को यकीन था. रियो रवानगी से पहले उसने अपनी एक फोटो तिरंगे के बैकग्राउंड पर फ्रेम करवा के घर पर लगवाई थी. जिस पर लिखा था, 'आई विल विन.'
सब कह रहे हैं कि 23 साल की इस लड़की ने ओलंपिक में कांसा जीतकर पूरे देश को 'राखी गिफ्ट' दिया. लेकिन ये सबसे बड़ा तोहफा है, उनके बड़े भाई सचिन के लिए. रियो जाने से पहले किसी ने साक्षी से कहा था कि राखी खरीदकर रख जाओ, तुम्हारी राखी कोई और सचिन भाई को बांध देगा. लेकिन साक्षी ने राखी नहीं खरीदी. भाई से कहा, 'मैं तेरे लिए मेडल लेकर आऊंगी. वही तेरी राखी होगी.'
"attachment_31510" align="alignnone" width="720"मेडल जीतने के बाद साक्षी ने रियो में तिरंगा ओढ़ लिया था. Photo: Reuters
मेडल जीतने के बाद साक्षी ने रियो में तिरंगा ओढ़ लिया था. Photo: Reuters



एक न्यूज वेबसाइट ने ओलंपिक से पहले बबीता फोगाट, विनेश फोगाट और साक्षी मलिक का इंटरव्यू किया था. बबीता से पूछा गया कि आपको क्या लगता है, किसका मेडल आएगा. बबीता ने सबसे पहले विनेश का नाम लिया और फिर कहा कि 100 परसेंट दे पाई तो मैं भी मेडल ला सकती हूं. तभी साक्षी अपने हरियाणवी लहजे के साथ बीच में बोल पड़ीं, 'इसनै मेरा नाम नीं लिया. पर मैडल मेरा ही आवगा.'



साक्षी को कुश्ती विरासत में मिली अपने दादा बदलूराम से. 4 साल की उम्र तक वो दादा-दादी के साथ रोहतक से 10 किलोमीटर दूर अपने पैतृक गांव मोखरा में रहती थीं. साक्षी के ताऊजी सतबीर बताते हैं, 'दादा बदलूराम पहलवान भी थे और गांव के सरपंच भी. लोग आकर उन्हें 'पहलवान जी नमस्ते' करते. हो सकता है तभी इस शब्द ने साक्षी के दिमाग पर छाप छोड़ दी हो.'
पदक जीतने की खुशी. Photo: Reuters
पदक जीतने की खुशी. Photo: Reuters

साक्षी के पहले कोच थे ईश्वर सिंह दहिया. 1983 से वो लड़कों को ट्रेन कर रहे थे. फिर दो लड़कियां उनके पास आईं और कहा कि वे पहलवानी सीखना चाहती हैं. उन्होंने तीन लड़कियों को सबसे पहले ट्रेनिंग दी- सुमन कुंडू, सुनीता और कविता. 2004 में मां साक्षी को उनके पास ले गईं. दहिया बताते हैं कि साक्षी कुश्ती करने को लेकर बहुत पैशनेट थी. वो कहती थी, 'करूंगी तो यही करूंगी.'
सुदेश बताती हैं कि साक्षी के लिए ये मजबूरी नहीं, चॉइस थी. वो पढ़ाई में भी अच्छी थी. उसके पास फिजिकल एजुकेशन में मास्टर डिग्री है.
Photo: Reuters
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और क्या जरूरी है कि कामयाबी की हर कहानी खराब आर्थिक हालात से निकले? साक्षी का परिवार रोहतक सेक्टर-4 में एक दोमंजिला मकान में रहता है. मॉड्युलर किचेन और टाइल फ्लोर वाला घर है. एक नीली पोलो कार घर के बाहर आपका स्वागत करती है. साक्षी के पिता डीटीसी में काम करते हैं और मां आंगनवाड़ी प्रोग्राम में सुपरवाइजर हैं. सतबीर ने बताया कि उनके पास 16 एकड़ जमीन भी है. भाई सचिन ने हाल ही में एक रेस्त्रां खोला है. और हां! छोरी की कामयाबी ने उनकी अच्छी आर्थिक स्थिति को और अच्छा बना दिया है.



सतबीर बताते हैं, 'साक्षी में एक जुनून है. अगर कुछ तय कर लिया तो करके मानेगी.' भाई सचिन मलिक ने बताया कि उसने ओलंपिक क्वालिफायर्स का एक चार्ट बनाकर अपने कमरे में लगा रखा था. वो उसी पर फोकस रखती थी. ओलंपिक ब्रॉन्ज मेडल वाले मैच के बाद साक्षी ने फोन पर अपनी मां से बात की थी. साक्षी ने बताया था कि उसके सपने में दादी आई थीं और मेडल जीतने के लिए बोल रही थीं.
सचिन तेंदुलकर के साथ साक्षी. Photo: Reuters
सचिन तेंदुलकर के साथ साक्षी. Photo: Reuters

हरियाणा, जहां जेंडर रेशियो सबसे कम है और जो ऑनर किलिंग के लिए कुख्यात है, वहां छोरियां ही मान बचा रही हैं, बढ़ा रही हैं. हरियाणे की लड़कियां जितनी ज़्यादा संख्या में खेलने उतरेंगी, खापवादी दीवार उतनी ही दरकती रहेगी!
साक्षी की मां कहती हैं, 'नारा है, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ. अब शायद 'बेटी खिलाओ' भी हकीकत बन जाएगा.'
ये कम बड़ा सामाजिक प्रतिरोध नहीं है. राखी मुबारक!

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