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राजीव गांधी का हत्यारा रॉबर्ट पायस, जो अब खुद अपने लिए मौत मांग रहा है

बेटे की मौत का बदला लेने के लिए रॉबर्ट पायस ने की थी राजीव गांधी की हत्या.

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एक आदमी के छोटे से बच्चे की सिविल वॉर में जान जाती है और वो किसी देश के प्रधानमंत्री की जान लेने को तैयार हो जाता है. वो प्रधानमंत्री थे राजीव गांधी और वो आदमी था रॉबर्ट पायस. रॉबर्ट पायस ने अभी इच्छा मृत्यु दिए जाने के लिए तमिलनाडु के चीफ मिनिस्टर को चिट्ठी लिखी है.
पायस राजीव गांधी की हत्या के दोष में जब गिरफ्तार हुआ, तब उसने अपने बयान में कहा था कि राजीव गांधी ने श्रीलंका में सिविल वॉर को खत्म करने के लिए जो शांति सेना भेजी थी, उसने तमिल लोगों पर काफी अत्याचार किए और इसी में उसके बच्चे की मौत हो गई. बच्चे की मौत का बदला लेने के लिए उसने राजीव गांधी की हत्या की साज़िश रची.
क्या था श्रीलंका का सिविल वॉरः
1983 की शुरुआत से ही श्रीलंका में LTTE लगातार सरकार के खिलाफ विद्रोह कर रही थी. एलटीटीई श्रीलंका के उत्तर-पूर्व भाग में स्वतंत्र तमिल राज्य की मांग कर रही थी.
श्रीलंका में सिविल वॉर की जड़ें 1948 में आजादी के बाद से ही सरकार द्वारा पारित किए गए कानूनों में हैं. 1948 में आज़ादी के बाद श्रीलंका (उस समय सीलोन नाम था, जो कि 1972 में बदल कर श्रीलंका रखा गया) ने पार्लियामेंट में सीलोन सिटीज़नशिप ऐक्ट पारित किया, जिसकी वजह से काफी इंडियन तमिल जो उस समय श्रीलंका में रह  रहे थे, उनके लिए श्रीलंका का नागरिक बने रह पाना मुश्किल हो गया था.
दरअसल इस ऐक्ट के तहत श्रीलंका की नागरिकता पाने के लिए ये साबित करना होता था कि उस व्यक्ति के पिता का जन्म श्रीलंका में हुआ हो. इंडियन तमिल लोगों के लिए काफी मुश्किल था क्योंकि उनमें से काफी लोग ऐसे थे, जिनके पास ज़रूरी कागज़ात नहीं थे.
इसके बाद 1956 में ''सिंहला ओनली ऐक्ट'' पारित करके इंग्लिश को हटा के सभी ऑफिशियल कामों के लिए सिंहली को एकमात्र भाषा बना दिया गया. इसकी वजह से तमिल बोलने लोग अलग-थलग हो गए और उनके अंदर विरोध का भाव पनपने लगा.
इन्हीं कदमों की वजह से वेलुपिल्लई प्रभाकरन ने 1976 में एलटीटीई बनाया. 1983 आते-आते सरकार के खिलाफ इस संगठन ने विद्रोह कर दिया.
1987 में श्रीलंका की सरकार ने इसे दबाने के लिए कार्रवाई की. इसके लिए उसने ने भारत सरकार से मदद मांगी. उस समय राजीव गांधी भारत के प्रधानमंत्री थे जिन्होंने भारतीय शांति रक्षक दल यानी इंडियन पीस कीपिंग फोर्स को श्रीलंका भेजा ताकि विद्रोह को दबाया जा सके.
क्या है इंडियन पीस कीपिंग फोर्सः
श्रीलंका में सिविल वॉर को खत्म करने के लिए भारत और श्रीलंका ने एक ''इंडो श्रीलंकन वॉर एकॉर्ड'' को साइन किया जिसके चलते श्रीलंका के तमिल नेशनलिस्ट को खत्म करने के लिए भारत ने इंडियन पीस कीपिंग फोर्स को भेजा. दरअसल श्रीलंका में सिविल वॉर की वजह से तमिल लोग लगातार इंडिया में आ रहे थे. इसकी वजह से भी राजीव गांधी ने अप्रत्यक्ष रूप से इंडियन पीस कीपिंग फोर्स को श्रीलंका भेजने के लिए दबाव महसूस किया. रॉबर्ट पायस के बयान के अनुसार इसी फोर्स की वजह से उसके बच्चे की जान गई और इसी वजह से पायस ने बदला लेने के लिए राजीव गांधी की हत्या की साज़िश रची.
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राजीव गांधी की लाश और सोनिया गांधी

कैसे हुई राजीव गांधी की मौतः

21 मई 1991 का दिन था. 1992 में लोकसभा चुनाव होने वाले थे. राजीव गांधी चुनाव प्रचार के लिए तमिलनाडु में श्रीपेरम्बुदूर की यात्रा पर थे. लोगों की भारी भीड़ जमा थी. अपनी कार से उतरकर राजीव गांधी एक जगह पर रुकते हैं. पिछले चुनावों में उन पर आरोप लगा था कि वो जनता से दूर रहते हैं. इसलिए इस बार राजीव गांधी लोगों से आगे बढ़कर मिल रहे थे. एक महिला राजीव गांधी के नज़दीक आती है और उनसे कुछ कहने के लिए झुकती है. तभी एक बम विस्फोट होता है. विस्फोट के बाद जब धुआं छंटता है तो राजीव की जान जा चुकी होती है. बाद में जांच हुई तो पाया गया कि इसमें श्रीलंका के आतंकवादी संगठन एलटीटीई का हाथ है.


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बम विस्फोट के बाद राजीव गांधी की लाश

जांच में दोषी पाए गए लोगों के ऊपर टाडा यानी Terrorist and Disruptive (Prevention) Act के तहत केस चलाया गया. 28 जनवरी 1998 को सभी 26 लोगों को मौत की सज़ा सुनाई गई. इस पर काफी हो-हल्ला भी मचा. कुछ ह्युमन राइट्स ग्रुप के लोगों ने भी कहा कि फ्री ट्रायल के नियमों को फॉलो नहीं किया गया. ट्रायल बंद दरवाज़ों के पीछे हुआ था और गवाहों की पहचान को भी सार्वजनिक नहीं किया गया था. कहा जाता है कि इनमें से एक आरोपी ए. अतिराई नाम की महिला भी थी, जिनकी उम्र उस समय सिर्फ 17 साल थी, जब गिरफ्तार हुई थी.
टाडा कोर्ट के खिलाफ अपील सिर्फ सुप्रीम कोर्ट में की जा सकती है, हाईकोर्ट में नहीं. टाडा कोर्ट में जिन लोगों को सज़ाएं सुनाई गई थीं, उनमें से अधिकतर ने खुद अपना अपराध स्वीकार किया था. लेकिन बाद में जब टाडा कोर्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली गई तो उन्होंने कहा कि दबाव में उन्होंने अपने खिलाफ गवाही दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने उनमें से मौत की सज़ा दिए गए सिर्फ चार लोगों की ही सज़ा को बरकरार रखा. बाकी लोगों अलग-अलग अवधि के लिए जेल की सज़ा दी गई.
रॉबर्ट पायस पर कैसे कसा कानूनी शिकंजाः

नीना गोपाल ने अपनी किताब ''द राजीव गांधी एसासिनेशनः द इन्वेस्टिगेशन'' में लिखा है कि जांच के दौरान पाया गया कि पायस ने राजीव गांधी की हत्या की साज़िश रचने वाले शिवकरन और मुरुगन की मदद की थी. इसमें ये भी लिखा है कि एलटीटीई ने पायस और जयकुमार को निर्देश दिया कि तमिलनाडु में पहुंचकर रिफ्यूजी की तरह कर छिप जाएं और एलटीटीई के लिए बेस तैयार करें.

राजीव गांधी केस में सज़ा मिलने के बाद पायस ने राष्ट्रपति के सामने दया याचिका डाली जो कि यूं ही पड़ी रह गई. 11 सालों बाद 2011 में जब इसका निर्णय आया भी, तो राष्ट्रपति ने इसे रिजेक्ट कर दिया. जब पायस को लगा कि बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है तो उसने 2012 में समय से पहले रिहा किए जाने के लिए एक पेटिशन डाली. आधार था कि वो आजीवन कारावास से ज़्यादा समय जेल में काट चुका है. उसका तर्क था कि आमतौर पर जब भी आजीवन कारावास की सज़ा होती है तो 14 से 20 सालों में रिहा कर दिया जाता है लेकिन वो इससे अधिक समय जेल में बिता चुका है. इसलिए उसे रिहा कर दिया जाना चाहिए. लेकिन उस समय कोर्ट ने इसको रिजेक्ट कर दिया.

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2014 में पायस के अलावा दूसरे दोषियों की सज़ा को सुप्रीम कोर्ट ने आजीवन कारवास में तब्दील कर दिया तो इस फैसले के बाद तमिलनाडु सरकार ने पायस सहित नलिनी, मुरुगन समेत कई दोषियों को रिहा कराने की कोशिश शुरू कर दी. 2014 में जयललिता तमिलनाडु की मुख्यमंत्री थीं. ये पहला मौका था जब सरकार को विपक्षी पार्टी डीएमके ने भी सपोर्ट किया. राज्य सरकार ने इन लोगों को रिहा किए जाने के निर्णय को केंद्र को भेजा लेकिन केंद्र भी किसी तरह का निर्णय लेने से बचना चाह रही थी इसलिए उसने इस आवेदन पर फैसला करने के लिए ये आवेदन सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ को भेज दिया. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर आदेश देने के बजाय फैसले को अपने पास सुरक्षित रख लिया. जिससे रॉबर्ट पायस की रिहाई पर एक बार फिर ठंडे बस्ते में चली गई.


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राजीव गांधी के अंतिम संस्कार की तैयारियों के दौरान अमिताभ बच्चन


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