माझी कहते हैं, 'मैंने अस्पताल वालों से कहा कि मैं गरीब आदमी हूं. मैं लाश ले जाने के लिए गाड़ी का इंतजाम नहीं कर सकता. मैंने उनसे कई बार दरख्वास्त की, लेकिन किसी ने कोई मदद नहीं की.'https://www.youtube.com/watch?v=jfm__3p5PPE बता दें कि ये दुखद वाकया ओडिशा के कालाहांडी इलाके का है. कालाहांडी, गरीबी से जूझ रहा वो इलाका, जिसकी कुछ रिपोर्ट्स का जिक्र पी साईनाथ की मशहूर किताब 'एवरीबडी लव्स ए गुड ड्रॉट' में भी मिलता है. बता दें कि ओडिशा सरकार ने फरवरी में 'महापारायण' स्कीम शुरू की थी. इस स्कीम के जरिए गरीबों की मदद के लिए अस्पतालों को लाश ढोने के लिए मुफ्त में गाड़ी मुहैया कराई जाती है. लेकिन जब माझी को जरूरत थी, तब कोई गाड़ी नहीं थी. माझी जब 10 किलोमीटर चल आए. तब एक टीवी क्रू वहां से गुजर रहा था. टीवी क्रू ने जब ये देखा तो इसकी रिकॉर्डिंग की. फिर उस इलाके के बड़े अधिकारियों को फोन कर गाड़ी का इंतजाम करवाया. बीजू जनता दल के सांसद कलिकेष सिंह ने ट्वीट कर कहा, 'मैंने स्थानीय नेता से इस मामले को वैरिफाई करने और इस मामले में प्रॉपर एक्शन लेने के लिए कहा है.' कालाहांडी के कलेक्टर ने कहा, 'हमें जैसे ही पता चला, हमने एंबुलेंस का इंतजाम करवा दिया था.'
पत्नी की लाश को कंधे पर रख 10 किलोमीटर चला ये माझी
एवरीबडी लव्स ए गुड अमीर! कालाहांडी के इस आदमी के पास लाश को एंबुलेंस से जाने के पैसे नहीं थे.
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फोटो - thelallantop
बचपन से एक लाइन फिल्मों, जिंदगी में अक्सर सुनाई देती है. मरने के बाद सिर्फ चार कंधों की जरूरत होती है. क्या वाकई? गरीबी उस ताकत का नाम है, जो तीन कंधों की भरपाई अकेले कर देती है. क्या जिंदगी और क्या मौत. 2016 के माझी को जानते हैं? ओडिशा के 42 साला दाना माझी. अगस्त की एक उदास दोपहर टूटी सी चप्पल पहने चले जा रहे हैं. साथ में 12 साल की बिटिया भी रोते हुए माझी के साथ जा रही है. रोने की वजह माझी के कंधे पर जकड़ी हुई तनी पड़ी थी. ये अकड़ी वजह माझी की पत्नी की लाश थी. माझी की पत्नी की टीबी की बीमारी से मंगलवार को सरकारी अस्पताल में मौत हो गई थी. माझी का यूं पत्नी की लाश ले जाने की पीछे कोई कसम नहीं है. वही वजह है, जिसकी करीब आने से हम में से ज्यादातर जिंदगीभर डरते रहते हैं, गरीबी. अपनी पत्नी की लाश अस्पताल से ले जाने के लिए माझी के पास कोई व्हीकल नहीं था. अस्पताल प्रशासन से मदद मांगी, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. अस्पताल से माझी का गांव करीब 60 किलोमीटर दूर है. जब लाश ले जाने के लिए कोई व्हीकल नहीं मिला, तो माझी अपनी पत्नी की लाश को कंधे पर रखकर गांव के लिए निकल पड़ते हैं. माझी करीब 10 किलोमीटर तक चलते जाते हैं.
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