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Physics Nobel Prize 2025 इन तीन वैज्ञानिकों को मिला, क्वांटम फिजिक्स में किया बड़ा काम

Nobel Prize in Physics: फिजिक्स का नोबेल पुरस्कार तीन वैज्ञानिकों- John Clarke, Michel H Devoret और John M Martinis मिला है. इन तीनों के बीच करीब 10.40 करोड़ रुपये की इनामी राशि बांटी जाएगी.

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2025 फिजिक्स के नोबेल विजेता जॉन क्लार्क, मिशेल एच डेवोरेट और जॉन एम मार्टिनिस. (Ill. Niklas Elmehed © Nobel Prize Outreach)

फिजिक्स नोबेल पुरस्कार 2025 का ऐलान कर दिया गया है (Physics Nobel Prize 2025). रॉयल स्विडिश एकेडमी फॉर साइंस ने इस साल का फिजिक्स का नोबेल तीन वैज्ञानिकों- जॉन क्लार्क, मिशेल एच डेवोरेट और जॉन एम मार्टिनिस को दिया है. इन तीनों ने एक इलेक्ट्रिक सर्किट में क्वांटम मेकैनिकल इफेक्ट्स को दिखाया था.

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दरअसल, फिजिक्स में एक बड़ा सवाल ये है कि क्वांटम मेकैनिकल इफेक्ट्स दिखाने के सिस्टम का साइज ज्यादा से ज्यादा कितना बड़ा हो सकता है. ये खोज इसलिए खास है क्योंकि इन तीनों वैज्ञानिकों ने एक ऐसे सिस्टम में क्वांटम टनलिंग और एनर्जी के क्वांटाइजेशन को दिखाया जो इतना बड़ा है कि उसे हाथ में रखा जा सकता है.

इन तीनों साइंटिस्ट ने ‘क्वांटम मैकेनिक टनलिंग’ नाम के प्रोसेस को तैयार किया. इसका इस्तेमाल करके पार्टिकल को किसी फिजिकल बैरियर के पार पहुंचाया जा सकता है. जब बड़ी संख्या में पार्टिकल एक साथ शामिल होते हैं, तो क्वांटम मैकेनिक इफेक्ट्स आमतौर पर कमतर हो जाते हैं. लेकिन इन तीनों नोबेल विजेताओं के एक्सपेरिमेंट ने दिखाया कि क्वांटम मेकैनिकल प्रॉपर्टीज को माइक्रोस्कोपिक पैमाने पर भी ठोस तरीके से बनाया जा सकता है.

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एक नजर में तीनों नोबेल विजेता

John Clarke
(Ill. Niklas Elmehed © Nobel Prize Outreach)

जॉन क्लार्क: जन्म 1942, कैम्ब्रिज, यूके.

1968 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पीएचडी की. अब वे कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, बर्कले, अमेरिका में प्रोफेसर हैं.

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Michel H Devoret
(Ill. Niklas Elmehed © Nobel Prize Outreach)

मिशेल एच डेवोरेट: जन्म 1953, पेरिस, फ्रांस.

डेवोरेट ने 1982 में पेरिस-सुड यूनिवर्सिटी से पीएचडी की. वे येल यूनिवर्सिटी, न्यू हैवन और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, सांता बारबरा, अमेरिका में प्रोफेसर हैं.

John M Martinis
(Ill. Niklas Elmehed © Nobel Prize Outreach)

जॉन एम मार्टिनिस: जन्म 1958.

मार्टिनिस ने 1987 में कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, बर्कले से पीएचडी की. वे भी कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, सांता बारबरा में प्रोफेसर हैं.

इन तीनों के बीच 11 मिलियन स्विडिश क्रोनर यानी करीब 10.40 करोड़ रुपये की नोबेल पुरस्कार की इनामी राशि बांटी जाएगी.

इलेक्ट्रॉनिक सर्किट पर किया काम

1984 और 1985 में जॉन क्लार्क, मिशेल डेवोरेट और जॉन मार्टिनिस ने सुपरकंडक्टर्स के बने इलेक्ट्रॉनिक सर्किट्स पर काम किया. सुपरकंडक्टर्स वो चीजें होती हैं, जिनमें बिजली बिना किसी रुकावट के बहती है. इनके सर्किट में सुपरकंडक्टिंग पार्ट्स के बीच एक पतली नॉन-कंडक्टिव परत होती है, जिसे ‘जोसेफसन जंक्शन’ कहा जाता है. इस सेटअप में सुपरकंडक्टर से चार्ज्ड पार्टिकल्स गुजरते हैं, तो ये पूरे सर्किट में एक पार्टिकल की तरह बर्ताव करने लगते हैं.

तीनों वैज्ञानिकों के खोजे गए सर्किट का सबसे खास हिस्सा था कि ये एक ऐसे स्टेट में था जहां करंट बिना वोल्टेज के चलता रहता था. इसे ऐसे समझिए जैसे कि सिस्टम एक दीवार के पीछे फंसा हो और वो उस दीवार को पार ना कर सके. लेकिन क्वांटम मेकैनिक्स की ताकत से यह सिस्टम इस दीवार को पार कर जाता है. इसे क्वांटम टनलिंग कहा जाता है. जब ये टनलिंग होती है, तो सिस्टम का स्टेट बदल जाता है और वोल्टेज पैदा हो जाती है.

Nobel Prize Physics
(Johan Jarnestad/The Royal Swedish Academy of Sciences)

इन वैज्ञानिकों ने दिखाया कि ये सिस्टम क्वांटम नियमों के मुताबिक ही काम करता है. यानी ये सिस्टम एनर्जी के छोटे-छोटे पैकेट (Quantised Energy Levels) में ही एनर्जी को सोखता या छोड़ता है. ये बात क्वांटम सिद्धांतों के बिल्कुल सही होने का सबूत है.

इस एक्सपेरिमेंट पर फिजिक्स के लिए नोबेल कमेटी के चेयरमैन ओल्ले एरिक्सन ने कहा,

"यह बहुत खुशी की बात है कि सौ साल पुराने क्वांटम सिद्धांत अब भी हमें नई-नई खोजों से चौंका रहे हैं. क्वांटम मेकैनिक्स सभी डिजिटल टेक्नोलॉजी की नींव है."

हमारे कंप्यूटर के माइक्रोचिप्स में ट्रांजिस्टर क्वांटम टेक्नोलॉजी का वो उदाहरण है, जो आमतौर पर हमारे आसपास मौजूद है. नोबेल विजेताओं के एक्सपेरिमेंट से हमें अगली पीढ़ी की क्वांटम टेक्नोलॉजी जैसे- क्वांटम कंप्यूटर, क्वांटम क्रिप्टोग्राफी और क्वांटम सेंसर डेवलप करने में मदद मिलेगी.

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