राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 (NEP) को लेकर केंद्र सरकार और तमिलनाडु के बीच खींचतान जारी है (NEP Education Policy Controversy). तीन-भाषा नीति को लेकर छिड़ी बहस के बीच तमिलनाडु के BJP अध्यक्ष ‘के अन्नामलाई’ का बयान आया है. उन्होंने कहा कि कुछ राजनीतिक दल, हमारे देश को भाषा के आधार पर विभाजित करना चाहते हैं. वहीं, इस मामले पर CM एमके स्टालिन का कहना है कि केंद्र अगर 10 हजार करोड़ रुपये भी दे, तब भी वे ‘NEP’ पर साइन नहीं करेंगे.
'केंद्र 10 हजार करोड़ भी दे, तो भी न मानेंगे... ' NEP पर CM स्टालिन ने अब साफ जवाब दे दिया है
NEP Controversy: Three Language policy को लेकर छिड़ी बहस के बीच तमिलनाडु के BJP अध्यक्ष K Annamalai का बयान आया है. उन्होंने कहा कि कुछ राजनीतिक दल, हमारे देश को भाषा के आधार पर विभाजित करना चाहते हैं. इस मामले पर तमिलनाडु के CM MK Stalin ने केंद्र को क्या जवाब दिया है?
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के अन्नामलाई ने ANI से बात करते हुए कहा,
‘मातृभाषा सभी के लिए महत्वपूर्ण है. महाकवि भारती ने 10 से ज्यादा भाषाओं को जानने के बाद तमिल को सबसे महान भाषा कहा था. इसलिए लोगों को ज्यादा से ज्यादा भाषाओं का अध्ययन करना चाहिए... NEP एक भारतीय भाषा का अध्ययन करने पर जोर देती है. यह कोई भी भाषा हो सकती है. तमिलनाडु में छात्र किसी भी अन्य द्रविड़ भाषा का भी अध्ययन कर सकते हैं. राजनीतिक दल अनावश्यक रूप से विवाद पैदा कर रहे हैं…’
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क्यों नहीं मान रहे स्टालिन?शनिवार, 22 फरवरी को स्टालिन ने एक कार्यक्रम में बोलते हुए कहा कि वह राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) पर कभी हस्ताक्षर नहीं करेंगे. भले ही केंद्र सरकार 2,000 करोड़ रुपये या 10,000 करोड़ रुपये की पेशकश करे. उन्होंने कहा,
‘हम किसी भी भाषा के विरोधी नहीं हैं, लेकिन इसे थोपे जाने का विरोध करने के प्रति दृढ़ रहेंगे. हम केवल हिंदी थोपने के प्रयास के लिए NEP का विरोध नहीं कर रहे हैं, बल्कि कई अन्य कारणों से भी इसका विरोध कर रहे हैं. NEP छात्रों को स्कूलों से दूर कर देगी.'
CM स्टालिन ने कहा कि अगर राज्य 2,000 करोड़ रुपये के लिए हस्ताक्षर करता है, तो ‘तमिल समाज 2,000 साल पीछे चला जाएगा’. स्टालिन ऐसा पाप कभी नहीं करेंगे.
इससे पहले केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन को पत्र लिखा था और NEP का विरोध करने पर अपनी प्रतिक्रिया दी थी. उन्होंने कहा था कि NEP का विरोध राजनीतिक है और इससे तमिलनाडु के छात्रों, शिक्षकों और शैक्षणिक संस्थानों को नुकसान हो रहा है. बता दें कि तमिलनाडु में पहले से ही दो-भाषा नीति लागू है, जिसमें छात्र केवल तमिल और अंग्रेजी पढ़ते हैं.
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