वैज्ञानिक मंगल ग्रह पर जीवन की खोज में लगे हुए हैं, ये हम लंबे समय से सुनते आ रहे हैं. लेकिन अब एक नई खोज हमें इस बात के और भी करीब ले आई है. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA ने बताया है कि पर्सिवियरेंस रोवर ने एक चट्टान का नमूना इकट्ठा किया है, जिसमें संभावित जैविक संकेत मौजूद हैं. अगर इसकी पुष्टि हो जाती है, तो ये पहला सबूत होगा कि मंगल ग्रह पर आज की तरह ठंडी और वीरान दुनिया बनने से पहले कभी जीवन था.
मंगल ग्रह पर जीवन के संकेत मिलने और आगरा में जन्मे संजीव गुप्ता के बीच क्या कनेक्शन है?
Life on Mars: अगर इसकी पुष्टि हो जाती है, तो ये पहला सबूत होगा कि मंगल ग्रह पर आज की तरह ठंडी और वीरान दुनिया बनने से पहले कभी जीवन था. लेकिन भारत के लिए ये खोज एक और वजह से अहम है. क्योंकि इस खोज में आगरा में जन्मे एक भूविज्ञानी (geologist) का भी हाथ है. नाम है, संजीव गुप्ता.


लेकिन भारत के लिए ये खोज एक और वजह से अहम है. क्योंकि इस खोज में आगरा में जन्मे एक भूविज्ञानी (geologist) का भी हाथ है. नाम है, संजीव गुप्ता. वो फिलहाल लंदन के इंपीरियल कॉलेज में पृथ्वी विज्ञान एवं इंजीनियरिंग विभाग में प्रोफेसर हैं. संजीव गुप्ता ने अपने करियर का ज्यादातर समय चट्टानों के अध्ययन में बिताया है. उन्होंने उन जैव-प्रतीकों के एनालिसिस में अहम भूमिका निभाई है, जो ग्रह विज्ञान में बदलाव ला सकते हैं.
संजीव गुप्ता ने लंदन से कॉल के जरिए इंडिया टुडे को बताया कि वो छह साल की उम्र में ब्रिटेन चले गए थे. उनके पिता चाहते थे कि वो डॉक्टरी की पढ़ाई करें. लेकिन उन्होंने अपने पिता की इच्छा के खिलाफ जाकर ऑक्सफॉर्ड यूनिवर्सिटी में भूविज्ञान (geology) की पढ़ाई की. संजीव गुप्ता 2012 से NASA के क्यूरियोसिटी रोवर के साथ मंगल ग्रह के भूभाग और चट्टानों का अध्ययन कर रहे हैं. 2020 में जब पर्सिवियरेंस रोवर लॉन्च हुआ, तब वो चर्चा में आए थे.
बताते चलें, पर्सिवियरेंस रोवर 2021 से मंगल ग्रह पर भ्रमण कर रहा है. ये रोवर नमूने इकट्ठा कर उन्हें टाइटेनियम ट्यूबों में संग्रहीत कर रहा है. हालिया रिसर्च बुधवार, 10 सितंबर को नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुई. इसे लेकर संजीव गुप्ता का कहना है,
हम ये नहीं कह रहे कि ये जीवन है. लेकिन पहली बार हमारे पास कुछ ऐसा है, जो संभवतः जीवन हो सकता है. निश्चित रूप से जानने के लिए हमें पृथ्वी की लेबॉरिटीज में इन नमूनों का अध्ययन करना होगा.
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नमूने का एनालिसिस पर्सिवियरेंस के उन्नत उपकरणों, प्लैनेटरी इंस्ट्रूमेंट फॉर एक्स-रे लिथोकेमिस्ट्री (PIXIL) और SHERLOC (स्कैनिंग हैबिटेबल एनवायरनमेंट्स विद रमन एंड ल्यूमिनेसेंस फॉर ऑर्गेनिक्स एंड केमिकल्स) का इस्तेमाल करके किया जाएगा. रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी इस खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है.
दुनिया भर के वैज्ञानिक अब इन बेशकीमती नमूनों की वापसी का इंतजार कर रहे हैं. लेकिन इस मील के पत्थर को हासिल करने में कम से कम एक दशक का समय लग सकता है. क्योंकि भू-राजनीतिक समस्याओं और ट्रंप प्रशासन के तहत बजट कटौती के चलते मंगल ग्रह के नमूनों की वापसी का मिशन थोड़ा रुक सा गया है.
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