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क्या महाभारत के हंस और डिम्भक समलैंगिक थे? मोहन भागवत ने इशारा किया है

RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि LGBTQ लोगों को भी जीने का अधिकार है

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सांकेतिक फोटो.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने एक इंटरव्यू में महाभारत (Mahabharat) के दो चरित्रों का ज़िक्र करते हुए उनके बीच समलैंगिक संबंधों की ओर इशारा किया है. आरएसएस के अख़बार पांचजन्य को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने महाबलशाली राजा जरासंध का ज़िक्र करते हुए कहा है कि उसके दो शक्तिशाली सेनापति हंस और डिम्भक के बीच समलैंगिक संबंध थे.

उन्होंने इंटरव्यू में ये भी कहा है कि जब इन ताक़तवर सेनापतियों को हराना मुश्किल हो गया, तो कृष्ण ने डिम्बक के मरने की अफ़वाह उड़ाई. ये सुनकर उसके परम मित्र हंस ने नदी में डूबकर आत्महत्या कर ली. फिर हंस की मौत का समाचार जब डिम्भक के पास पहुंचा, तो अपने मित्र के वियोग में उसने भी नदी में कूदकर जान दे दी.

महाभारत के इन चरित्रों के हवाले से मोहन भागवत ने आज के LGBTQ समुदाय के अधिकारों के प्रति समर्थन जताया. उन्होंने कहा कि हम भारत की प्राचीन परम्परा से उदाहरण लेते हैं, और समलैंगिक संबंधों का ज़िक्र महाभारत जैसे ग्रंथों में भी आया है.

कौन थे हंस और डिम्भक?

हंस और डिम्भक जरासंध की सेना के सबसे मज़बूत सेनापति थे. जरासंध को हराने के लिए हंस और दिम्भक से छुटकारा पाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था. तीनों मिलकर किसी भी सेना को हरा सकते थे.

महाभारत की कथा के अनुसार, जरासंध मगध का एक राजा था जो अपनी अत्यधिक शक्ति के लिए प्रसिद्ध था. वो बृहद्रथ का पुत्र था. जरासंध अपनी ताकत और युद्ध में अपराजित रहने के लिए जाना जाता था. उसे पांडव भाइयों में से एक भीम ने कुश्ती में मार डाला था.

पौराणिक कथाओं के आधार पर कहा जाता है कि जरासंध अपने सेनापति हंस और दिम्भक के होने से इतना शक्तिशाली था कि यदि किसी ऐसे हथियार से उसे मारा जाता, जिससे एक बार में सौ लोग मारे जा सकते थे, तब भी उसे मारने में तीन सौ साल का समय लगता.  

क्या हंस और डिम्भक समलैंगिक थे?

पौराणिक कथाओं में जिस तरह इन दो सेनापतियों की गहन दोस्ती का ज़िक्र आता है, उसे कुछ लोग समलैंगिकता के संकेत की तरह देखते हैं. लेकिन अलग-अलग पौराणिक कथाओं में हंस और डिम्भक के संबंधों पर अलग-अलग राय नज़र आती है. ये बहुत स्पष्ट नहीं है कि वाक़ई दोनों के बीच मित्रता से अधिक भी कुछ और था.

बहरहाल, समलैंगिक समुदाय के बारे में मोहन भागवत के बयान से संघ के नज़रिए में आ रहे बदलाव के स्पष्ट संकेत मिलते हैं. संघ परिवार को समलैंगिकता के ख़िलाफ़ माना जाता रहा है.

सुप्रीम कोर्ट ने जब 2018 में समलैंगिकता को क़ानूनी वैधता दी, तो संघ के अधिकारी अरुण कुमार ने कहा, 

“समलैंगिक संबंध और विवाह प्रकृति से मेल नहीं खाते और न ही ये प्राकृतिक संबंध होते हैं. हम ऐसे संबंधों का समर्थन नहीं करते हैं. परंपरागत रूप से भी भारत का समाज ऐसे संबंधों को मान्यता नहीं देता.” 

लेकिन उन्होंने ये भी कहा कि समलैंगिकता को संघ अपराध नहीं मानता. संघ के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने भी 2016 में कहा था कि समलैंगिकता अपराध नहीं है.

ज़ाहिर है तब से गंगा-यमुना में काफ़ी पानी बह चुका है और अब सरसंघचालक मोहन भागवत समलैंगिकों के जीने के अधिकार की बात करने लगे हैं.

भागवत ने कहा कि LGBTQ लोगों को भी जीने का अधिकार है. इसलिए ज्यादा हो-हल्ला किए बिना उन्हें सामाजिक स्वीकृति प्रदान की जानी चाहिए. हमारे देश में ट्रांसजेंडर समुदाय है, जिसको हमने कभी भी समस्या के रूप में नहीं देखा. उनका अपना पंथ है, उनके अपने देवता हैं. आज उनका अपना महामंडलेश्वर भी है. कुंभ के दौरान उन्हें विशेष स्थान दिया जाता है. ये लोग हमारे रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा हैं. 

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