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मालदीव में चुनाव फंसा, अगर ये आदमी जीता तो भारत को नुकसान-चीन को बड़ा फायदा!

मालदीव के राष्ट्रपति चुनाव में दो गुट हैं, दो दावेदार हैं. एक भारत का समर्थक है, दूसरा चीन का. इसलिए 'भारत फ़र्स्ट' बनाम 'चीन फ़र्स्ट' के मुक़ाबले पर नज़रें टिकी हुई हैं.

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मोहम्मद मुइज़ और इब्राहिम मोहम्मद सोलिह. (फोटो - Facebook/AFP)

मालदीव (Maldives Election) में 30 सितंबर को फिर से चुनाव होने वाले हैं. फिर से इसलिए क्योंकि जब पहली बार 9 सितंबर को वोटिंग हुई, तब जनता राष्ट्रपति चुन नहीं पाई. किसी भी उम्मीदवार को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल सका. चुनाव नतीजों से तय होना है कि हिंद महासागर इलाके में ज्यादा असर किसका होगा- भारत या चीन?

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किसका पाला भारी?

असल में मालदीव के चुनाव नतीजों से भारत के साथ संबंधों पर बड़ा असर पड़ने वाला है. राष्ट्रपति चुनाव में दो गुट हैं, दो दावेदार हैं. एक भारत का समर्थक है, दूसरा चीन का. इसलिए 'भारत फ़र्स्ट' बनाम 'चीन फ़र्स्ट' के मुक़ाबले पर नज़रें टिकी हुई हैं.

राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह​ एक बार फिर​ पद की रेस में शामिल हैं. स्थानीय रपटों के मुताबिक़, मोहम्मद सोलिह​​ को राजधानी माले के मेयर मोहम्मद मुइज़्ज़ु के कड़ी चुनौती मिल रही है. मुइज़्ज़ु को पहली वोटिंग में 46% मत पड़े. वहीं, राष्ट्रपति इब्राहिम को 39%. सोलिह को भारत का समर्थक माना जाता है. और, मुइज़्ज़ु को चीन समर्थक.

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इस चुनाव में मोइज्ज़ु की एंट्री बहुत देर से हुई. पहले इन्हीं की पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व-राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन राष्ट्रपति पद का चेहरा थे. फिर बीते अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने यामीन को मनी-लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार के मामले में दोषी क़रार दिया. उनके चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया. तब मोइज्ज़ु का नाम सामने आया. मोइज्ज़ु के पास प्रचार-प्रसार के लिए मात्र तीन हफ़्तों का समय था. बावजूद इसके, उनका प्रदर्शन मौजूदा राष्ट्रपति से बेहतर रहा.

भारत के लिए क्या बदलेगा?

भारत के लिए ये चौकन्ना होने वाली ख़बर है. बीते छह दशकों से भारत और मालदीव के बीच राजनयिक, सैन्य, आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध रहे हैं. मालदीव को लंबे अरसे से भारत से आर्थिक और सैन्य मदद मिलती रही है. अपने भूगोल के चलते, हिंद महासागर में अपनी जगह के चलते मालदीव, भारत और चीन की रणनीति के लिहाज से ज़रूरी है.

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BBC की रिपोर्ट के मुताबिक़, मौजूदा राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह ने भारत के साथ पारंपरिक रूप से क़रीबी रिश्ते रखने पर ज़ोर दिया है. वहीं, जो गठबंधन मोहम्मद मुइज़्ज़ु को समर्थन दे रहा है, उसके चीन के साथ घनिष्ठ संबंधों का पुराना रिकॉर्ड है. प्रचार के दौरान, मुइज़्ज़ु ने ख़ुद मालदीव में भारतीय सैनिकों की मौजूदगी के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला था. वादा भी किया कि अगर वो जीतते हैं, तो मालदीव में तैनात भारतीय सैनिकों को हटा देंगे और देश के व्यापार संबंधों को बदल देंगे. यहां तक कि जब अब्दुल्ला यामीन साल 2013 से 2015 तक मालदीव के सत्ताधारी थे, तब उन्होंने भी चीन के साथ संबंधों की वकालत की थी.

द हिंदू की रिपोर्ट में पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफ़ेसर अज़ीम ज़हीर ने कहा कि ये नतीजे सोलिह के लिए एक बड़ा झटका हैं. इससे पता चलता है कि जनता उनकी सरकार को नकार रही है. साथ ही नतीजे दिखाते हैं कि देश दोनों गुटों के बीच बुरी तरह से बटा हुआ है. पश्चिम-समर्थक, मानवाधिकार-समर्थक मानी जाने वाली मालदीवियन डेमॉक्रेटिक पार्टी के प्रति समर्थन कम है. और मुइज़्ज़ु की रूढ़िवादी और पश्चिमी-विरोधी पीपल्स नेशनल कांग्रेस को ज़्यादा.

वीडियो: चीन की तरफ झुकता जा रहा मालदीव, भारत के पाले में वापस आएगा?

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