मालदीव. हिंद महासागर की बीचों बीच बसा एक छोटा सा द्वीप. लेकिन सिर्फ़ द्वीप ही नहीं, एक पूरा मुकम्मल मुल्क भी है. जनसंख्या, लगभग 5 लाख के आसपास है. अंतरराष्ट्रीय राजनीति से ताल्लुक़ ना रखने वाले भी इसे सिने तारिकाओं के फोटो शूट्स से तो जानते ही हैं.
हैश टैग वांडरलस्ट चलाने वाले भी मालदीव से अच्छे से वाक़िफ़ हैं. मालदीव की जनता भी जानती है कि टूरिज़्म ही कमाई का सबसे बड़ा ज़रिया है. इसलिए यहां के लोग भी ‘दिस इज बिन्नेस’ के मूड में रहते हैं.
यूं तो कोविड-19 दुनिया भर के लिए सरदर्द साबित हुआ है लेकिन खास मार पड़ी है मालदीव जैसे देशों को. कोविड आने के बाद से टूरिज़्म का धंधा हो गया है चौपट और कमाई निल बट्टा सन्नाटा. सरकार ने दरवाज़े खोले हैं कि आओ. लेकिन लोग है कि ‘जान बची तो लाखों पाए' के मूड से एंटर हो ही नहीं रहे हैं.
इस सबके बीच लेकिन राजनीति तो फिर भी चलनी है. सो चल रही है. डोमेस्टिक और इंटरनेशनल दोनों. अर्थव्यवस्था को संवारना आसान नहीं, सो राजनीति में दो मुद्दों ने जगह ले ली है. एक है धर्म और दूसरा विदेशी डर. यानी जनता से कहा जा रहा है कि तुम्हारी सारी दिक़्क़त का कारण या तो विदेशी हैं या दूसरे धर्म वाले. और मालदीव की जियो पोलिटिकल सिचुएशन के चलते इस आंतरिक टसल का असर हो गया है इंटरनेशनल. तार जुड़े हैं भारत और चीन से.
मालदीव के सोशल मीडिया में में पिछले तीन साल से रह-रह कर एक हैश टैग चल रहा है. # indiaout. वैसे तो ये हैश टैग का दौर है. चलते रहते हैं. लेकिन अब इस रेसिपी ऑफ़ डिज़ास्टर में तड़का पड़ गया है एक पूर्व राष्ट्रपति की एंट्रेंस से. सरकार के लिए दिक़्क़त दो तरफ़ा हैं. अगर विरोध करें, तो वोटों से हाथ धोएं और समर्थन करें तो नोटों से. यानी भारत के विरोध का मतलब है, अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका. जो पहले ही कोविड के करेंट से उबरने में सफल नहीं हो पाई है.
क्या है #indiaout हैश-टैग. किसने चलाया? क्यों चलाया? और क्या असर पड़ रहा है इस हैश टैग का अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर. चलिए जानते हैं.
शुरुआत 3 नवंबर 1988 से. मालदीव की राजधानी माले की एक घटना है. 28 वर्षीय लेफ़्टिनेंट जलील तब नेशनल सिक्योरिटी सर्विस (NSS) के बैरेक में सो रहे थे. NSS हेडक्वार्टर और माले की सरकारी बिल्डिंग्स की सुरक्षा उनके ज़िम्मे थी. तड़के चार बजे अचानक गोलियों की आवाज़ से उनकी नींद खुलती है. और वो अपने साथी लेफ़्टिनेंट ऐडम मानिकके साथ NSS हेडक्वार्टर के मेन एंटरेंस की तरफ़ बढ़ते हैं.
पता चलता है कि श्रीलंकन आतंकवादी समूह, People’s Liberation Organisation of Tamil Eelam (PLOTE) ने हमला किया है. 80 आतंकी राजधानी में घुसकर सरकारी बिल्डिंग्स को कब्जे में लेने की कोशिश में थे. ये सारा प्लान मालदीव के दो बिज़नेसमैन के साथ मिलकर बनाया गया था. और योजना थी सरकार का तख्तापलट. इन लोगों ने राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम को बंधक बनाने की योजना भी बनाई थी.
3 नवंबर की सुबह उग्रवादी हमला करते हैं और राष्ट्रपति गयूम को उनके परिवार समेत एक एक सेफ़ हाउस में पहुंचा दिया जाता है. गयूम अंतरराष्ट्रीय संगठनों और बाकी देशों से मदद की गुहार लगाते हैं. और खबर पहुंचती है भारत तक. ब्रिटेन और अमेरिका के ट्रूप्स मालदीव से दूर थे. इसलिए दोनों राष्ट्रपति गयूम को भारत से सम्पर्क करने की सलाह देते हैं. फिर शुरू होता है ऑपरेशन कैक्टस.
रात होते होते आगरा छावनी से भारतीय सेना की पैराशूट ब्रिगेड मालदीव के लिए रवाना होती है. 300 जवानों का दस्ता पहले हुलहुले एयरपोर्ट पर उतरता है. और सिर्फ़ एक टूरिस्ट मैप की मदद से खाड़ी का रास्ता पार करते हुए सेना राजधानी माले तक पहुंच जाती है. सेना की एक और ब्रिगेड कोच्चि से माले पहुंचती है. और जवान माले में मोर्चा संभाल लेते है. वायुसेना के मिराज विमान भी तब तक माले के आसमान में गश्त लगाने लगे थे.
सेना ने सबसे पहले राष्ट्रपति गय्यूम को सिक्योर किया. और आतंकियों के ख़िलाफ़ अपनी कार्यवाही शुरू कर दी. भारतीय नौसेना के युद्धपोत गोदावरी और बेतवा भी इंडियन ओशियन में तैनात कर दिए गए थे. ताकि माले और श्रीलंका के बीच उग्रवादियों का सप्लाई रूट पूरी तरह से कट जाए.
सबसे पहले सेना NSS हेडक्वार्टर को उग्रवादियों से खाली करवाया. और फिर बाकी सरकारी बिल्डिंग्स को भी कुछ ही घंटे के भीतर खाली कर लिया गया. अगली सुबह उग्रवादियों भागने की कोशिश करते हैं. और एक जहाज़ को अपने कब्जे में लेकर उसमें मौजूद लोगों को बंधक बना लेते हैं. तब INS गोदावरी से एक हेलिकॉप्टर उड़ान भरता है. और अगवा जहाज़ पर एक रेस्क्यू ऑपरेशन की शुरुआत होती है. सेना की कार्रवाई में 19 उग्रवादी मारे जाते हैं. और माले में भी ऑपरेशन कैक्टस समाप्त हो जाता है.
इस ऑपरेशन की समाप्ति के बाद भी 1989 तक मालदीव के हालात सामान्य नहीं हुए थे.
स्थिति नाज़ुक बनी हुई थी. इसलिए राजनैतिक स्थिरता बनाए रखने के लिए करीब 100 भारतीय सैनिक अगले एक साल तक माले में ही तैनात रहे.
ऐन मौक़े पर भारत ने राष्ट्रपति गयूम की मदद की थी. इसलिए जब तक गयूम राष्ट्रपति रहे, भारत और मालदीव के रिश्तों में गर्मजोशी बनी रही. साल 2008 के चुनावों में गयूम को हार मिली और राष्ट्रपति बने नशीद. एक पूर्व पत्रकार जो मालदीव में धार्मिक कट्टरपंथ की मुख़ालफ़त करते रहे थे.
साल 2013 में नशीद की भी रुखसती हो गई. काफ़ी राजनैतिक उठापटक के बाद अब्दुल्ला यामीन राष्ट्रपति बने. यामीन रिश्ते में पूर्व राष्ट्रपति गयूम के सौतेले भाई हैं. लेकिन अब्दुल्ला यामीन के राष्ट्रपति बनते ही चीजें बदलने लगी. आंतरिक और विदेशी दोनों मामलों में.
आंतरिक स्तर पर राष्ट्रपति यामीन ने अपने विरोधियों को ठिकाने लगाना शुरू किया. पूर्व राष्ट्रपति नशीद को भी जेल में डाल दिया गया. भ्रष्टाचार के कई मामले उछले. और मानवाधिकार हनन की कई घटनाएं भी सामने आई. साल 2015 में मालदीव की विपक्षी पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका डाली. सुप्रीम कोर्ट हरकत में आया. और उसने नौ लोगों को जेल से रिहा करने का आदेश दिया. अदालत का कहना था कि पक्षपाती तरीके से मुकदमा चलाकर उन्हें जेल भेजा गया. अदालत ने मुहम्मद नशीद के ऊपर आतंकवाद-विरोधी कानूनों के तहत तय की गई सजा भी खारिज कर दी.
जेल में बंद कई नेताओं की रिहाई का भी ऑर्डर दिया. इसके अलावा 12 सांसद भी थे, जिनकी सीटें यामीन के इशारे पर छीन ली गई थीं. सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें भी वापस बहाल कर दिया. इसके बाद संसद की शक्ल बदल गई. अब विपक्ष को बहुमत मिल गया. यानी वो चाहता तो राष्ट्रपति यामीन के ऊपर महाभियोग चला सकता था.
ये सब देखते हुए सत्ता बचाने के लिए यामीन ने देश में इमरजेंसी लगा दी. ये सब हो रहा था चीन की शह पर. चीन की मालदीव में रुचि जागी यामीन के आने के बाद. 2012 तक तो मालदीव की राजधानी माले में चीन का दूतावास तक नहीं था.
लेकिन यामीन के आने के बाद उसने वही तरीक़ा अपनाया जो पाकिस्तान और श्रीलंका में अपना रहा है. चीन ने मालदीव में पानी की तरफ पैसा बहाया. खूब निवेश किया. खूब क़र्ज़ भी दिया. एक समय तो मालदीव के कुल क़र्ज़ में चीन का हिस्सा 70% तक हो गया था. 2016 में मालदीव ने चीनी कंपनी को एक द्वीप महज 40 लाख डॉलर में 50 सालों की लीज़ पर दे दिया था.
भारत के लिए ये स्थिति चिंताजनक थी. क्योंकि भारतीय महासागर के महत्वपूर्ण ट्रेड रूट्स का रास्ता मालदीव से होकर गुजरता है. लेकिन भारत के के हाथ बंधे थे. राष्ट्रपति यामीन चीन की गोद में बैठकर भारत को आंखें दिखा रहे थे. और चीन यामीन की हर मनमानी पर आखों में पट्टी बांधे हुए था.
फिर आया साल 2019. मालदीव में दुबारा चुनाव हुए. पूर्व राष्ट्रपति नशीद की वापसी हुई. और उनकी मदद से इब्राहिम सोलिह नए राष्ट्रपति बने. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सोलिह के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए थे. और तब भारत और मालदीव के बीच कई अहम समझौतों पर हस्ताक्षर भी हुए.
भारत ने चीन का प्रभाव कम करने के लिए यहां इंफ़्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में इन्वेस्ट किया. और चीन का क़र्ज़ चुकाने में मालदीव की मदद की. इसके साथ एक विशाल ब्रिज प्रोजेक्ट की शुरुआत की. जिसके तहत मालदीव के मुख्य द्वीप को बाकी तीन द्वीपों से जोड़ा जाना है.
इतना ही नहीं, मालदीव आर्मी की मदद के लिए भारत ने दो इंजन वाला एक डोर्नियर एयरक्राफ़्ट और दो हेलिकॉप्टर भी तोहफ़े में दिए. चूंकि मालदीव डिफ़ेंस फ़ोर्स का अपना कोई एयर क्राफ़्ट नहीं था. इसलिए भारत ने तकनीकी मदद मुहैया कराई. इन एयरक्राफ़्ट का मुख्य काम छोटे द्वीपों को हेलिकॉप्टर एम्ब्यूलेंस सहायता प्रदान करना. और साथ-साथ इल्लीगल फ़िशिंग पर रोक लगाना था.
सब कुछ ठीकठाक चल रहा था लेकिन साल 2019 में मालदीव के एक धड़े से कुछ आवाज़ें उठना शुरू हुई. सोशल मीडिया पे हैश-टैग इंडिया आउट और हैश टैग इंडिया मिलिटरी आउट जैसे ट्रेंड चलने लगे. इसे भुनाया विपक्षी पार्टी, प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ़ मालदीव (PPM) ने. पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन इसी पार्टी से आते हैं. साल 2021 में यामीन पर भ्रष्टाचार का एक केस चला. पिछले महीने यानी नवंबर 2021 में यामीन को इसी मामले में निचली अदालत से 5 साल की सजा सुनाई गई थी. मामला क़रीब साढ़े सात सौ करोड़ रुपए का था.
यामीन सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और उन्हें रिहाई मिल गई. इसी महीने यानी दिसम्बर 2021 के शुरुआती हफ़्तों में. रिहाई से कुछ ही दिनों बाद मुख्य विपक्षी पार्टी प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ़ मालदीव (PPM) ने एक आधिकारिक बयान जारी किया. अपनी नेता की रिहाई पर ख़ुशी के साथ साथ इसमें एक खास हैश टैग भी सम्मिलित था #indiaOut. अब्दुल्ला यामीन ने आते ही राजनीति में अपना वर्चस्व दुबारा स्थापित करने की कोशिशें शुरू की. हैश-टैग indiaout उन्हें अपने काम का मुद्दा दिखा. और यामीन ने इसे अपना समर्थन दे दिया. फिर क्या था, यामीन की तस्वीरों के साथ हैश-टैग indiaout पूरे सोशल मीडिया पर बंटने लगा.
मालदीव में साल 2024 में चुनाव होने हैं. ऐसे में यामीन सत्तारूढ़ पार्टी के ऊपर भारत परस्त होने का वैसा ही इल्ज़ाम लगा रहे हैं. जैसा कभी उन पर चीन परस्त होने का लगा था. यामीन अब क़ानूनी पेचों से बाहर हैं. और अपना पूरा ध्यान दुबारा सत्ता क़ब्ज़ाने पर लगाए हुए हैं.
मालदीव में राजनैतिक दांवपेंच पर भारत की पैनी नज़र है. पिछले सालों में भारत ने मालदीव के साथ अपने सम्बंध मज़बूत किए हैं. और कम से कम इस मोर्चे पर वो चीन पर लगाम लगाने में सफल रहा है. अगर यामीन दुबारा चुनाव जीत जाते हैं तो वो दुबारा चीन के साथ रिश्तों पर ज़ोर दे सकते हैं. और हिंद महासागर में ये भारत के लिए एक बड़ी हार होगी.
सत्ता रूढ़ मालदिवियन डेमोक्रैटिक पार्टी (MDP) के लिए यामीन का ये कदम परेशानी का सबब है. चूंकि कोरोना के बाद की आर्थिक स्थिति में भारत से मिल रही वित्तीय मदद को वो गंवाना नहीं चाहते. इसलिए सत्तारूढ़ पार्टी के नेता लगातार बयान दे रहे हैं कि वो #indiaout का विरोध करते हैं.
लेकिन उनके लिए भी राह आसान नहीं है. पार्टी आंतरिक तकरार से जूझ रही है. इसलिए अगले चुनाव में पार्टी कैसा प्रदर्शन करेगी, इस पर भी प्रश्न चिन्ह हैं. ध्यान में रखने लायक़ बात ये है कि सोलिह पिछली बार भी अपने दम पर चुनाव नहीं जीते थी. उनकी सरकार गठबंधन की सरकार है. 2019 में उन्हें पूर्व राष्ट्रपति नशीद का समर्थन मिला था.
लेकिन नशीद सरकार पर लगातार हमलावर बने हुए हैं. इसके दो कारण हैं. पहला कि नशीद देश में संसदीय प्रणाली लागू करना चाहते हैं. जबकि सोलिह वर्तमान सिस्टम को बनाए रखने के पक्ष में हैं. इसी साल मार्च महीने में नशीद ने राष्ट्रपति सोलिह से इस दिशा में काम करने को कहा था, लेकिन सोलिह ने तब इनकार कर दिया था.
यह कहते हुए कि उनका अजेंडा देश की अर्थव्यवस्था को सुधारना है. सोलिह की भी अपनी मजबूरी है. गठबंधन में बाकी साथी पार्टियां नशीद की मुख़ालफ़त करती हैं. ऐसे में नशीद के कहे मुताबिक़ चलना सोलिह के लिए दूर की कौड़ी है.
दूसरा कारण है धार्मिक कट्टरपंथ. इसी साल 6 मई को माले में नशीद को कट्टरपंथियों ने निशाना बनाने की कोशिश की थी. और तब नशीद ने ये कहते हुए सोलिह पर निशाना साधा था कि सरकार धार्मिक कट्टर पंथ को बढ़ावा दे रही है. नशीद की नाराजगी एक खास बिल को लेकर भी थी.
इसी साल अक्टूबर महीने में सरकार एक नया बिल लाने की तैयारी कर रही थी. जिसके तहत hate crimes के लिए कड़ी सजा का प्रावधान किया जाना था. लेकिन सोलिह की सरकार में गठबंधन के रूढ़िवादी साथियों ने इस बिल की पुरज़ोर मुख़ालफ़त की. और सरकार ने बिल से अपने हाथ वापस खींच लिए.
इन्हीं सब कारणों के चलते सरकार मुसीबत में है. अगले चुनाव में सोलिह को दोतरफ़ा मुसीबत झेलनी होगी. धार्मिक अतिवाद के चलते नशीद उनके ख़िलाफ़ हो सकते हैं. और अगर वो नशीद का साथ देते हैं तो रूढ़िवादी पार्टियां सरकार से समर्थन वापस खींच लेंगी.
इसी साल हुए माले काउन्सिल चुनाव में पार्टी को इस अंदरूनी तकरार का ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ा था. माले में मालदीव की 40 % जनता रहती है. और काउन्सिल चुनाव में जीत PPM यानी यामीन की पार्टी की हुई थी.
उधर जेल से निकलने के बाद यामीन लगातार रैलियाँ कर रहे हैं. और इन सब का मुद्दा एक ही है. #india out.
अभी के लिए सरकार के कई मंत्री और पूर्व राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम भी इस कैम्पेन के ख़िलाफ़ बयान दे चुके हैं. लेकिन यामीन अपनी बात पर टिके हुए हैं. अभी अभी कुछ दिन पहले ही उनका एक बयान चर्चा में रहा था, जब उन्होंने कहा,
“मालदीव की ज़मीन पर हम भारतीय सेना का एक भी जवान नहीं चाहते हैं, अपनी ज़मीन पर हम उनके बूट तो क्या उनकी जुराब तक नहीं देखना चाहते.”
इस कैम्पेन को लेकर सरकार का आधिकारिक रुख़ विरोध का रहा है. सरकार भी समझती है कि मालदीव आवश्यक चीज़ों की आपूर्ति के लिए भारत पर निर्भर है. इसलिए सरकार ने बयान जारी किया है कि भारत को लेकर फैलाए जा रहे झूठ और नफ़रत को लेकर सरकार चिंतित है. विदेश मंत्रालय के बयान में ये भी कहा गया कि भारत मालदीव का सबसे क़रीबी द्विपक्षीय साझेदार है लेकिन कुछ छोटे समूह और कुछ नेता प्रॉपेगैंडा फैलाने में लगे हैं.
मालदीव में एक बड़ी संख्या में सुन्नी मुसलमान रहते हैं. इसलिए भारत से आने वाली खबरों से भी वहां के मुसलमानों को भी फ़र्क पड़ता है. दो हफ़्ते पहले ही मालदीव के सांसद अहमद शियाम ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की प्रेस कॉन्फ़्रेंस का एक वीडियो ट्वीट किया. साथ में लिखा,''भारत की वर्तमान सरकार से हम उम्मीद नहीं कर सकते कि वो हमारे संविधान और आंतरिक मामलों का आदर करेगी. क्योंकि वो अपने ही क़ानून और नागरिकों का सम्मान नहीं करती. ख़ास करके अल्पसंख्यकों का.’’
इंडिया आउट कैंपेन को इस एक धड़े से भी खूब समर्थन मिल रहा है. कुछ हफ़्ते पहले तक # india out कैम्पेन सिर्फ़ एक छोटे धड़े तक सीमित था लेकिन यामीन की एंट्री के बाद ये और मुखरता ले चुका है. जो भारत के लिए चिंता की बात है. पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद जो अभी संसद के स्पीकर हैं. उनका कहना है कि इंडिया आउट कैंपेन ISIS IT सेल चला रहा है.
चूंकि भारत मालदीव की आंतरिक राजनीती में हस्तक्षेप नहीं कर सकता. इसलिए इस पूरे मुद्दे पर भारत सरकार के हाथ बंधे हुए हैं. लेकिन भारत को ये ध्यान रखन होगा कि चीन इस मुद्दे पर मौक़ा नहीं चूकेगा. यामीन का लौटना उसके लिए फ़ायदे का सौदा है. इसलिए अपनी तरफ़ से वो इस पर चाहे कोई बयान ना दे. भीतरखाने चीन इस कैम्पेन से खुश ही होगा. सीमा विवाद के बाद एक और मोर्चे पर चीन भारत के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है. इसलिए भारत को अपनी कूटनीतिक कोशशों में तेज़ी लानी होगी. ताकि मालदीव में हालात हाथ से बाहर ना निकल जाएं.