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दावते-इस्लामी का पूरा सच, जहां से उदयपुर के हत्यारों ने कोर्स किया था!

दावत-ए-इस्लामी पाकिस्तान बेस्ड सुन्नी इस्लामिक संगठन है जिस पर धर्मांतरण के आरोप लगते रहे हैं.

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दावत ए इस्लामी और उदयपुर हत्याकांड के दोनों आरोपी.

राजस्थान के उदयपुर में कन्हैया लाल की बेरहमी से हत्या से हर कोई सन्न है. आम आदमी हो या राजनेता, सत्ता से हो या विपक्ष से, हिंदू हो या मुस्लिम, सबने एक सुर में इस घटना की निंदा की है. दोनों आरोपी मोहम्मद रियाज़ अख्तारी और गौस मोहम्मद फिलहाल पुलिस की गिरफ्त में हैं. केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय ने इस पूरे हत्याकांड की जांच NIA को सौंप दी है. खबर है कि ये दोनों आरोपी पाकिस्तान की एक इस्लामिक संस्था दावत-ए-इस्लामी से जुड़े हैं. अब NIA इस हत्याकांड, दोनों आरोपियों का दावत-ए-इस्लामी से कनेकश्न और इस हत्याकांड में दावत-ए-इस्लामी के रोल भी जांच करेगी.

क्या है दावत-ए-इस्लामी?

दावत-ए-इस्लामी पाकिस्तान बेस्ड सुन्नी इस्लामिक संगठन है. इसकी स्थापना 1981 में कराची में हुई थी. मौलाना अबू बिलाल मोहम्मद इलियास ने इस संगठन की शुरुआत की थी. दावत-ए-इस्लामी संगठन खुद को ग़ैर राजनीतिक इस्लामी संगठन बताता है. फौरी तौर पर बात करें तो ये संगठन दुनिया भर में कुरान और सुन्नत का प्रचार करता है. लेकिन इन पर पहला आरोप यही है कि ये सिर्फ प्रचार तक सीमित नहीं हैं.

दावए-ए-इस्लामी का नाम वैसे तो कभी आतंकी घटना में नहीं आया लेकिन आतंकी घटनाओं की तफ्तीश में इस इस्लामिक संस्था का नाम कई दफे आ चुका है. खबरों के मुताबिक कई आतंकि घटनाओं को इस संस्था से जुड़े लोगों ने अंजाम दिया है.

बताया जाता है कि दुनिया के 100 से ज्यादा देशों में ये संगठन एक्टिव है. दुनिया भर में ये संगठन 30 से ज्यादा कोर्सेज़ चलाता है. उदयपुर हत्याकांड में बताया जा रहा है कि दोनों आरोपी इसी संस्था के ऑनलाइन कोर्स से जुड़े थे. इनकी वेबसाइट देखने पर पता चलता है कि यहां दो तरह के कोर्सेज़ चलाए जाते हैं. लड़कों के लिए अलग, लड़कियों के लिए अलग.

दावत-ए-इस्लामी अपनी विचारधारा का प्रचार करने के लिए मदनी नाम का एक टीवी चैनल चलाता है. इसमें उर्दू के साथ-साथ अंग्रेजी और बांग्ला में भी कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाता है. संगठन के सदस्य आमतौर पर हरी अमामा (पगड़ी) पहनते हैं. कुछ सदस्य सफेद अमामा भी पहनते हैं. कहा जाता है मदनी चैनल बरेलवी आंदोलन के समर्थकों के बीच ज्यादा पॉपुलर हैं. 

बताया जाता है कि दावत-ए-इस्लामी के दो महत्वपूर्ण काम हैं. मदनी काफिला और नेक अमल हैं. तब्लीगी जमात की तरह, दावत-ए-इस्लामी के सदस्य इस्लाम और पैगंबर के संदेश का प्रसार करने के लिए खास दिनों में यात्रा करते हैं. बारावफात यानी पैगंबर के जन्मदिन के दिन संगठन मुस्लिम बहुल इलाकों में जुलूस निकालता है. कहा जाता है कि दावत ए इस्लामी को तबलिगी जमात के प्रभाव को कम करने के लिए बनाया ही गया था.

आतंकी घटनाएं और दावत-ए-इस्लामी

दावत-ए-इस्लामी का नाम आखिरी बार 2020 में एक आतंकवादी हमले की जांच के दौरान सामने आया था. ज़हीर हसन महमूद नाम के एक पाकिस्तानी आतंकवादी ने 25 सितंबर को फ्रांस की पत्रिका चार्ली हेब्दो के पूर्व मुख्यालय के बाहर चाकू से हमला किया था. चाकूबाजी के हमले में दो लोग घायल हो गए और आतंकवादी को गिरफ्तार कर लिया गया. हमले की जांच के दौरान, फ्रांस के अधिकारियों ने दावा किया कि जहीर दावत-ए-इस्लामी के नेता मौलाना इलियास कादरी को अपना मार्गदर्शक मानता है.

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान में गवर्नर सलमान तासीर का हत्या करने वाला मुमताज कादरी भी दावत-ए-इस्लामी और उसके नेता इलियास कादरी का अनुयायी था. इलियास ने मुमताज कादरी को 'गाजी' घोषित किया था. सलमान तासीर की हत्या के बाद, पाकिस्तानी सिक्योरिटी एजेंसीज़ ने दावत-ए-इस्लामी के बढ़ते प्रभाव पर चिंता जताई थी और संगठन की गतिविधियों को कम करने का फैसला किया.

इसके अलावा स्कॉटलैंड के ग्लासगो में 2016 में एक ब्रिटिश पाकिस्तानी अहमदिया शख्स जिसका नाम असद शाह था, उसकी हत्या में भी दावत-ए-इस्लामी का नाम सामने आया. हत्या करने वाला तनवीर अहमद पाकिस्तानी बरेलवी मुस्लिम था जो दावत-ए-इस्लामी से जुड़ा हुआ था. तनवीर को 27 साल की सजा सुनाई गई थी.

भारत में दावत-ए-इस्लामी 

1989 में पाकिस्तान से उलेमा (विद्वानों) का एक प्रतिनिधिमंडल भारत आया था. बातचीत के बाद भारत में दावत-ए-इस्लामी की स्थापना की गई जिसका मुख्यालय दिल्ली और मुंबई बना. सईद आरिफ अली अटारी, भारत में संगठन के नेता के तौर पर काम कर रहे हैं. हालांकि यहां दावत-ए-इस्लामी पर कई तरह के आरोप लगते हैं. सबसे पहला आरोप धर्मांतरण और दूसरा कट्टरता फैलाने का.

भारत में सबसे पहले दावत-ए-इस्लामी का नाम कुछ समय पहले चर्चा में आया. साल 2021 के दिसबंर महीने में हैदराबाद में संगठन ने दो दिवसीय कार्यक्रम रखा. लेकिन इनके कार्यक्रम के खिलाफ मुस्लिम संगठनों ने ही मोर्चा खोल दिया. इन मुस्लिम संगठनों ने कहा कि दावत-ए-इस्लामी धार्मिक वैमनस्य को बढ़ावा देता है. कहा गया कि अगर इनका कार्यक्रम अगर होता है तो कानून व्यवस्था बिगड़ सकती है.

द हिंदू की खबर के मुताबिक AIUMB के अध्यक्ष सैयद आले मुस्तफा कादरी ने कहा था,

ये संगठन पाकिस्तान में स्थित है और सांप्रदायिक समस्याओं के लिए जिम्मेदार है. ये महत्वपूर्ण है कि शहर में शांतिपूर्ण माहौल बना रहे. इसलिए हम मांग कर रहे हैं कि उन्हें कार्यक्रम आयोजित करने की इजाज़त न दी जाए.

दैनिक जागरण की खबर के मुताबिक 2021 में ही जुलाई महीने में यूपी के कानपुर में सूफी इस्लामिक बोर्ड ने दावत-ए-इस्लामी पर आरोप लगाया कि वो चंदे के पैसे का इस्तेमाल देश विरोधी गतिविधियों में लगा रहा है और धर्मांतरण कर रहा है. खबर के मुताबिक कानपुर में साल 1994 में एक तीन दिन का सेमिनार किया था. उसके बाद से कानपुर में इस इस्लामिक संगठन ने अपनी पैठ बनानी शुरू कर दी थी.

उदयपुर हत्याकांड से पहले भी इस साल दावत-ए-इस्लामी का नाम चर्चा में आया था. साल की शुरुआत में ही छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने आरोप लगाया कि राज्य की भूपेश बघेल सरकार ने दावत-ए-इस्लामी को 10 एकड़ जमीन अलॉट कर दी है. बीजेपी नेता और पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने इस मामले में प्रेस कॉफ्रेंस की थी. उन्होंने कहा था कि ये पाकिस्तान के कराची का संगठन है, आतंकी गतिविधियों में शामिल रहा है और राज्य सरकार उसे जमीन दे रही है. कांग्रेस ने इन आरोपों को नकार दिया था. उसने कहा कि सरकार ने ये जमीन छत्तीसगढ़ के दावत-ए-इस्लामी संगठन को दी थी, जिसका रजिस्ट्रेशन भी छत्तीसगढ़ में है. इसलिए बीजेपी के आरोप गलत हैं. हालांकि विवाद के बाद जमीन के इस अलॉटमेंट को रद्द कर दिया गया था.

और अब उदयपुर हत्याकांड को लेकर भी दावत-ए-इस्लामी का नाम सामने आया है. राजस्थान के डीजीपी ने आज उदयपुर हत्याकांड में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. उन्होंने बताया कि कन्हैया लाल की हत्या का आरोपी मोहम्मद गौस साल 2014 में कराची गया था. दावत-ए-इस्लामी के कार्यक्रम में शामिल होने.