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खेतान पंखे: जिसका कभी नाम ही काफ़ी था, वो धीमी मौत मर गया

जिनके पंखों के साथ हम बड़े हुए, वो कंपनी भी अब बंद हो रही है.

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वो पंखा जो घर-घर का हिस्सा था, अब नाम बनकर रह जाएगा.
खेतान कंपनी. पंखे आते थे. कूलर भी. इतने बीहड़-हर्रऊल पंखे कि विज्ञापन बने कि राजस्थान के किसी शहर में पतंगें उड़ाने के लिए खेतान के पंखे चला दिए और बच्चे मस्त होकर पतंग उड़ाने लगे. नारा था. खेतान, बस नाम ही काफी है. विज्ञापन में आगे-पीछे लिखा-बोला जाता रहा. और अब ये कहा जाना चाहिए खेतान का बस अब नाम ही बचा रहेगा. कंपनी खेतान इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड अब दीवालिया हो गयी है. और अब कंपनी ख़त्म होने जा रही है. बैंकरप्ट्सी ट्रिब्यूनल अब इस कंपनी को बंद करने जा रहा है. और टेक्नीकल रूप से कहें तो कंपनी का लिक्विडेट किया जा रहा है. कंपनी अब ख़त्म. पंखे नहीं बनेंगे. पतंग नहीं उड़ेगी. खेतान कंपनी 1981 में कोलकाता में शुरू हुई थी. धीरे-धीरे ये कंपनी क़र्ज़ के बोझ में डूब गयी. और क़र्ज़ इतना बड़ा हो गया कि 2017 में क़र्ज़ एनपीए में तब्दील हो गया. एनपीए यानी नॉन परफॉर्मिंग एसेट, मतलब वो क़र्ज़, जो अब वापस लौटाया नहीं जा सकेगा. कंपनी पर 387 करोड़ रूपए का क़र्ज़ आया. कुल पांच बैंकों का. कंपनी ने हाथ खड़े कर दिए. और फिर पता चला कि अब कंपनी बंद होगी. कंपनी 2014 से घाटे में जा रही है. कंपनी का घाटा बढ़ता गया. 2016-17 के बीच कंपनी को 298.8 करोड़ रूपए का घाटा पहुंचा था. अगले वित्तीय वर्ष में 45.8 करोड़ रूपए घाटे में आए. और साल ख़त्म होते-होते क़र्ज़ के हिस्से सिर पर आ गए. और कंपनी दीवालिया हो गयी. कारण क्या? बिक्री घट गयी. कंपनी का रेवेन्यू भी घट गया. और खेतान का बचा रह गया, महज़ नाम.
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