कंगना रनौत आज कल सुर्ख़ियों में हैं. सिर्फ़ कंट्रोवर्सी की वजह से ही नहीं, उन्हें नेशनल अवॉर्ड भी मिला है. तनु वेड्स मनु रिटर्न्स के लिए. कुल मिला के तीन नेशनल अवॉर्ड. शबाना आज़मी के बाद एकमात्र ऐक्ट्रेस जिसे 2 लगातार नेशनल अवॉर्ड मिले हैं. उनका एक इंटरव्यू किया इंडिया टुडे ने. राहुल कंवल से उनकी आध घंटे की बातचीत चली. जानते हैं कि उन्होंने किस बारे में क्या कहा.
अपने सफ़र के बारे में:
मैंने अपने दिल की सुनी और अपने मन की करती गयी. हर चीज का पॉजिटिव रिज़ल्ट मिला. वैसे मेरी ज़िन्दगी परियों की कहानी नहीं रही है. काफी उतार चढ़ाव देखे हैं.
मेरे फ़ादर मेरी चॉइस के काफ़ी खिलाफ़ रहे जिसने मुझे और कठोर बना दिया. बाद में जब मैं सफ़ल हुई तो उन्हें मेरी चॉइस ठीक प्रूव हो जाने पर खुद पर ही शक होने लगा.
अपने बाग़ी होने के बारे में:
मैं बाग़ी थी. मगर इसलिए नहीं कि मुझे सभी को ग़लत प्रूव करना था. मैं खुद को सही ठहराना चाहती थी. मेरे फ़ादर अपनी जगह सही थे. पर वो उनका नजरिया था. वो मेरी जगह आकर नहीं सोच रहे थे.
नियमों को तोड़ने तक जो नियम बने थे, ऐसा नहीं है कि वो गलत थे, लेकिन मुझे उन्हें बस तोड़ना था.
बाहर कहीं जाने के बारे में:
मैं बाहर के दर्शकों के लिए भी काम करना चाहती हूं. लेकिन वो सिर्फ हॉलीवुड तक ही सीमित नहीं रहेगा. आज के समय में चीन का सिनेमा हॉलीवुड से ज़्यादा तरक्की कर रहा है. इंडिया भी फॉलो करेगा. हॉलीवुड का ग्राफ़ नीचे गिर रहा है.
बॉलीवुड में खान हुकूमत के बारे में:
गांव में जैसे डॉक्टर की बीवी खुद ब खुद डॉक्टरनी बन जाती है, टीचर की बीवी खुद ही टीचरनी बन जाती है, वैसे जी आप भले ही नए हों, सुपर स्टार के साथ काम करके आप सुपर स्टारनी बन सकती हैं. मुझे ये सब करने का मौका नहीं मिला.
जब मुझे काम चाहिए था, तब मेरे साथ कोई भी काम करने को तैयार नहीं था. आज जब अपने सेट पर मैं खुद ही हीरो हूं तो मैं दूसरे हीरो के साथ काम करने का रास्ता क्यूं देखूं?
मुझे लगता है कि फ़िल्म इंडस्ट्री के खान लोग केस स्टडीज़ हैं. मैं उनसे खुद को कम्पेयर नहीं कर सकती. लेकिन मैं अपने साथ काम कर रहे मेल ऐक्टर्स के बराबर पैसे कमाने की पूरी कोशिश करती हूं.
फेमिनिस्ट कहलाये जाने पर:
मुझे जब फेमिनिस्ट कहा जाता है तो बहुत बड़ा बोझ सा लगता है. क्यूंकि पहले मैं एक आर्टिस्ट हूं. काश कि मैं खुद को पूरी तरह से एक फेमिनिस्ट के रूप में स्थापित कर पाती.
मैं बाई चांस फेमिनिस्ट बन गयी. मैं इसे बदलना चाहती हूं. मैं अपने काम से फेमिनिस्ट बनना चाहती हूं.
साथ ही मैं जान बूझ कर मर्दों को निशाना नहीं बनाती. मैं बस खुद को बेहतर बनाना चाहती हूं.
मुझे लगता है कि इंडस्ट्री में काफी सेक्सिज्म है. यहां बेस्ट ऐक्टर और बेस्ट ऐक्ट्रेस के अवार्ड तो होते हैं लेकिन बेस्ट डायरेक्टर का एक ही अवार्ड होता है. उसमें बेस्ट मेल और फ़ीमेल डायरेक्टर क्यूं नहीं होता?
बॉलीवुड के साथ अपने रिश्ते पर:
मैंने बॉलीवुड को अपना लिया है. बॉलीवुड ने मुझे अपनाया है या नहीं, मुझे फ़र्क नहीं पड़ता. मैं अपनाए जाने की चाहत नहीं रखती.
अपने साथ जुड़ी कंट्रोवर्सी पर:
क्यूं किसी को मेरे साथ खड़ा होना चाहिए? मैं ये अकेले ही कर लूंगी. मेरे बारे में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे मुझे शर्म आये. मैं अपने आस-पास की हर एक चीज़ से इंस्पायर होती हूं. मेरी लाइफ में हाल ही में जो कुछ भी घटा है उसने मुझे भी शॉक किया है. ये सब कुछ बहुत ही ज़्यादा है. मैं इन सब के लिए तैयार नहीं थी.
मुझे नहीं मालूम की क्यूं किसी दिमागी बीमारी से जूझ रहे इंसान को शेम किया जाता है और उसके हालातों के लिए उसे ज़िम्मेदार ठहराया जाता है. इस देश में मेरे पीरियड्स को लेके बातें हो रही हैं. उसे घिनौना बताया जा रहा है.
मेरे पीरियड्स कोई कॉकटेल नहीं हैं.
उनमें घिनौना क्या हो सकता है? किसी के भी पीरियड्स घिनौने कैसे हो सकते हैं? अगर किसी मर्द के बॉडी फ्लुइड्स घिनौने नहीं हो सकते तो औरतों के क्यूं? उसी से तो इस दुनिया में नए बच्चे आते हैं. और बच्चे घिनौने नहीं होते. तो पीरियड्स में बहने वाला खून क्यूं? हम सोसाइटी के तौर पे कहीं भी नहीं खड़े होते. हमारे यहां लड़कियों की कोई इज्ज़त नहीं होती. अगर मुझे नहीं लगता की मैंने कुछ ग़लत किया है तो मुझे उसका कोई गम नहीं होता. फिर जितना मर्जी मुझे डायन (witch) बुलाया जाए. जब मैं छोटी थी तो मुझे एक डर लगता था. मुझे ऐसा लगता था कि अगर मैं एक औरत के तौर पर फ़ेल हो गयी तो मुझे रंडी, डायन, पागल या शायद ड्रग अडिक्ट भी कहा जाएगा. देश के बेहद अंदरूनी जगहों से ज़्यादा ऊंची सोसाइटी में लोग ज़लील हैं. मैं अक्सर अकेले में रोती हूं. लेकिन ऐसा है कि अब मेरे सामने सिवाय लड़ने के सिवाय दूसरा कोई ऑप्शन नहीं है.
कंगना रनौत आज कल सुर्ख़ियों में हैं. सिर्फ़ कंट्रोवर्सी की वजह से ही नहीं, उन्हें नेशनल अवॉर्ड भी मिला है. तनु वेड्स मनु रिटर्न्स के लिए. कुल मिला के तीन नेशनल अवॉर्ड. शबाना आज़मी के बाद एकमात्र ऐक्ट्रेस जिसे 2 लगातार नेशनल अवॉर्ड मिले हैं. उनका एक इंटरव्यू किया इंडिया टुडे ने. राहुल कंवल से उनकी आध घंटे की बातचीत चली. जानते हैं कि उन्होंने किस बारे में क्या कहा.
अपने सफ़र के बारे में:
मैंने अपने दिल की सुनी और अपने मन की करती गयी. हर चीज का पॉजिटिव रिज़ल्ट मिला. वैसे मेरी ज़िन्दगी परियों की कहानी नहीं रही है. काफी उतार चढ़ाव देखे हैं.
मेरे फ़ादर मेरी चॉइस के काफ़ी खिलाफ़ रहे जिसने मुझे और कठोर बना दिया. बाद में जब मैं सफ़ल हुई तो उन्हें मेरी चॉइस ठीक प्रूव हो जाने पर खुद पर ही शक होने लगा.
अपने बाग़ी होने के बारे में:
मैं बाग़ी थी. मगर इसलिए नहीं कि मुझे सभी को ग़लत प्रूव करना था. मैं खुद को सही ठहराना चाहती थी. मेरे फ़ादर अपनी जगह सही थे. पर वो उनका नजरिया था. वो मेरी जगह आकर नहीं सोच रहे थे.
नियमों को तोड़ने तक जो नियम बने थे, ऐसा नहीं है कि वो गलत थे, लेकिन मुझे उन्हें बस तोड़ना था.
बाहर कहीं जाने के बारे में:
मैं बाहर के दर्शकों के लिए भी काम करना चाहती हूं. लेकिन वो सिर्फ हॉलीवुड तक ही सीमित नहीं रहेगा. आज के समय में चीन का सिनेमा हॉलीवुड से ज़्यादा तरक्की कर रहा है. इंडिया भी फॉलो करेगा. हॉलीवुड का ग्राफ़ नीचे गिर रहा है.
बॉलीवुड में खान हुकूमत के बारे में:
गांव में जैसे डॉक्टर की बीवी खुद ब खुद डॉक्टरनी बन जाती है, टीचर की बीवी खुद ही टीचरनी बन जाती है, वैसे जी आप भले ही नए हों, सुपर स्टार के साथ काम करके आप सुपर स्टारनी बन सकती हैं. मुझे ये सब करने का मौका नहीं मिला.
जब मुझे काम चाहिए था, तब मेरे साथ कोई भी काम करने को तैयार नहीं था. आज जब अपने सेट पर मैं खुद ही हीरो हूं तो मैं दूसरे हीरो के साथ काम करने का रास्ता क्यूं देखूं?
मुझे लगता है कि फ़िल्म इंडस्ट्री के खान लोग केस स्टडीज़ हैं. मैं उनसे खुद को कम्पेयर नहीं कर सकती. लेकिन मैं अपने साथ काम कर रहे मेल ऐक्टर्स के बराबर पैसे कमाने की पूरी कोशिश करती हूं.
फेमिनिस्ट कहलाये जाने पर:
मुझे जब फेमिनिस्ट कहा जाता है तो बहुत बड़ा बोझ सा लगता है. क्यूंकि पहले मैं एक आर्टिस्ट हूं. काश कि मैं खुद को पूरी तरह से एक फेमिनिस्ट के रूप में स्थापित कर पाती.
मैं बाई चांस फेमिनिस्ट बन गयी. मैं इसे बदलना चाहती हूं. मैं अपने काम से फेमिनिस्ट बनना चाहती हूं.
साथ ही मैं जान बूझ कर मर्दों को निशाना नहीं बनाती. मैं बस खुद को बेहतर बनाना चाहती हूं.
मुझे लगता है कि इंडस्ट्री में काफी सेक्सिज्म है. यहां बेस्ट ऐक्टर और बेस्ट ऐक्ट्रेस के अवार्ड तो होते हैं लेकिन बेस्ट डायरेक्टर का एक ही अवार्ड होता है. उसमें बेस्ट मेल और फ़ीमेल डायरेक्टर क्यूं नहीं होता?
बॉलीवुड के साथ अपने रिश्ते पर:
मैंने बॉलीवुड को अपना लिया है. बॉलीवुड ने मुझे अपनाया है या नहीं, मुझे फ़र्क नहीं पड़ता. मैं अपनाए जाने की चाहत नहीं रखती.
अपने साथ जुड़ी कंट्रोवर्सी पर:
क्यूं किसी को मेरे साथ खड़ा होना चाहिए? मैं ये अकेले ही कर लूंगी. मेरे बारे में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे मुझे शर्म आये. मैं अपने आस-पास की हर एक चीज़ से इंस्पायर होती हूं. मेरी लाइफ में हाल ही में जो कुछ भी घटा है उसने मुझे भी शॉक किया है. ये सब कुछ बहुत ही ज़्यादा है. मैं इन सब के लिए तैयार नहीं थी.
मुझे नहीं मालूम की क्यूं किसी दिमागी बीमारी से जूझ रहे इंसान को शेम किया जाता है और उसके हालातों के लिए उसे ज़िम्मेदार ठहराया जाता है. इस देश में मेरे पीरियड्स को लेके बातें हो रही हैं. उसे घिनौना बताया जा रहा है.
मेरे पीरियड्स कोई कॉकटेल नहीं हैं.
उनमें घिनौना क्या हो सकता है? किसी के भी पीरियड्स घिनौने कैसे हो सकते हैं? अगर किसी मर्द के बॉडी फ्लुइड्स घिनौने नहीं हो सकते तो औरतों के क्यूं? उसी से तो इस दुनिया में नए बच्चे आते हैं. और बच्चे घिनौने नहीं होते. तो पीरियड्स में बहने वाला खून क्यूं? हम सोसाइटी के तौर पे कहीं भी नहीं खड़े होते. हमारे यहां लड़कियों की कोई इज्ज़त नहीं होती. अगर मुझे नहीं लगता की मैंने कुछ ग़लत किया है तो मुझे उसका कोई गम नहीं होता. फिर जितना मर्जी मुझे डायन (witch) बुलाया जाए. जब मैं छोटी थी तो मुझे एक डर लगता था. मुझे ऐसा लगता था कि अगर मैं एक औरत के तौर पर फ़ेल हो गयी तो मुझे रंडी, डायन, पागल या शायद ड्रग अडिक्ट भी कहा जाएगा. देश के बेहद अंदरूनी जगहों से ज़्यादा ऊंची सोसाइटी में लोग ज़लील हैं. मैं अक्सर अकेले में रोती हूं. लेकिन ऐसा है कि अब मेरे सामने सिवाय लड़ने के सिवाय दूसरा कोई ऑप्शन नहीं है.
यहां देखें इंटरव्यू:
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