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दूसरे 'इन्तिफादा' का प्रतीक बनी तस्वीर और उसमें दिखे शख्स का सब कुछ ख़त्म होने की कहानी

'दूसरे इन्तिफादा' के दौरान जमाल ने अपना 11 साल का बेटा खोया और अब हालिया जंग में उनके दो भाइयों, भतीजी और एक अन्य क़रीबी रिश्तेदार की मौत हो गई है.

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23 साल पहले फायरिंग से बचने की कोशिश करते जमाल, अब अपने भाइयों की लाश पर खामोश हैं. (फोटो-फ्रांस 2/AFP )

कैलेंडर में तारीख़ - 30 सितंबर, 2000. कैंप डेविड शांति वार्ता की नाकामी और पूर्व इज़रायली प्रधानमंत्री एरियल के टेम्पल माउंट दौरे के बाद फ़िलिस्तीनियों ने इज़रायल के ख़िलाफ़ दूसरे ‘इन्तिफ़ादा’ का एलान कर दिया था. सड़कों पर हज़ारों लोग, भयानक अफ़रा-तफ़री और दोनों पक्षों की तरफ़ से हिंसा. उस वक़्त एक फ़िलिस्तीनी कैमरामैन अपने कैमरे के साथ दक्षिणी-ग़ाज़ा के सलादीन रोड पर मौजूद था. आज गाजा फिर जंग की आग में जल रहा है तो उस पत्रकार ने 23 साल पहले के ग़ाज़ा को याद किया है.

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पत्रकार का नाम तलाल अबु रहमा है. साल 2000 में वो ‘France 2’ नाम के मीडिया संगठन के पत्रकार थे. अल-जज़ीरा में छपे अपने संस्मरण में अबु ने लिखा है कि एलान से एक दिन पहले उनके ब्यूरो चीफ़ ने उनसे  ग़ाज़ा जाने को कहा और नसीहत दी कि आंखें खुली रखें. अबु लिखते हैं:

“शुक्रवार का दिन था. शाम के 3-4 बजे होंगे. वेस्ट बैंक में तनाव था, पर ग़ाज़ा में शांति थी. मुझे पता था कि शांति क्यों है. क्योंकि जुमे का दिन था. एक पत्रकार के तौर पर मुझे अंदाज़ा था कि अगली सुबह ग़ाज़ा में भी प्रदर्शन होंगे. माहौल बिगड़ सकता है. उस वक़्त ग़ाज़ा में तीन संवेदनशील जगहें थीं – एक इरेज बॉर्डर, उत्तरी ग़ाजा और तीसरी जगह थी मध्य ग़ाज़ा में, सलादीन रोड के पास.”

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अबु ने सलादीन रोड जाना चुना, क्योंकि वो बीच में पड़ती है. कहीं और घटना होती, तो वहां तुरंत पहुंचा जा सकता था. अबु लिखते हैं कि सुबह 7 बजे वो मौक़े पर पहुंच गए थे. ये बच्चों के स्कूल जाने का समय होता है. इसलिए वहां काफ़ी लोग थे. लेकिन अचानक पत्थरबाज़ी शुरू हो गई. दोपहर 1 बजे तक आंसू गैस, रबर बुलेट्स और पुलिस पर पथराव बहुत ज़्यादा बढ़ गया था. ऐसी पत्थरबाज़ी और प्रदर्शन ग़ाज़ा की अस्थिर राजनीति के लिए सामान्य बात थी. बस उस दिन वहां लोग बहुत थे. सैकड़ों नहीं, हज़ारों में.

‘गोलियों की बारिश’

अबु घायलों का इंटरव्यू कर रहे थे. तभी अचानक गोलियां चलने लगीं.

"मैं दाएं-बाएं भागा, ताकि गोली चलाने वाले को देख सकूं. कौन-किसपर गोली चला रहा था – मुझे सच में नहीं पता. गोलियों के बीच मैंने किसी तरह छिपने की कोशिश की, क्योंकि वहां गोलियों की बारिश हो रही थी."

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गोलियों की तड़तड़ाहट के बीच कुछ सुनाई नहीं दे रहा था. हालात बदतर होते जा रहे थे. ज़मीन पर हर जगह ख़ून था. ‘गोलियां आ कहां से रही हैं?’ – ये चीखते और समझने की कोशिश के साथ लोग इधर-उधर भाग रहे थे. छिपने की कोशिश कर रहे थे. अबु असमंजस में थे कि रुक कर कवर करें या सुरक्षित जगह चले जाएं? पर अबु वहीं रुके रहे. ठीक उसी वक़्त अबु को उनके ब्यूरो चीफ़ का फोन आया. अबु ने बस इतना कहा - “मैं ख़तरे में हूं चार्ल्स. अगर मुझे कुछ हो गया, तो मेरे परिवार का ध्यान रखना.”

वैन के पीछे से फुटेज निकालने की कोशिश करते तलाल अबु रहमा (फोटो- तलाल अबु रहमा )

ये कहकर अबु ने फ़ोन रख दिया. वो अपनी बेटी, अपने बेटे और अपनी पत्नी के बारे में सोच रहे थे. अबु ने लिखा है कि उस वक़्त वो मौत को सूंघ सकते थे. हर सेकंड ख़ुद को चेक कर रहे थे, कि कहीं कोई छर्रा तो नहीं लग गया है.

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वो बहुत देर तक वैन के पीछे छिपे रहे. वहीं उन्होंने एक आदमी और उसके बेटे को छिपे हुए देखा. दीवार के पीछे, गोलियों से बचने की कोशिश करते हुए. अबु ने लिखा है,

"मैंने अपने कैमरे में देखा कि वो आदमी घायल था. पर हाथ हिलाकर मदद मांग रहा था. मेरे साथ जो बच्चे थे, वो चिल्लाए जा रहे थे. मैं ख़ुद भी डरा हुआ था, लेकिन मुझे घटना को फ़िल्माना भी था. ये मेरा काम है. मैं वहां ख़ुद की फ़िक्र करने नहीं गया था. हालांकि, हमारे काम में एक नियम है. कोई तस्वीर किसी की जान से ज़्यादा कीमती नहीं है.

यक़ीन मानिए, मैंने उस बच्चे और उसके पिता को बचाने की कोशिश की, मगर बहुत हेवी फायरिंग थी. सड़क पार करना बहुत मुश्किल था. तभी एक ज़ोर का धमाका हुआ. तस्वीर में धुआं दिखने लगा. धमाके से पहले वो लड़का घायल था, पर ज़िंदा था. धुआं छंटा और मैंने उसे देखा, तो वो अपने पिता की गोद में दीवार के सहारे पड़ा था. बिना किसी हरक़त के. उस लड़के के पेट के हिस्से से खून निकल रहा था.”

धुएं से पहले और धुएं के बाद. (फोटो - फ्रांस 2/AFP)

अबु रहमा के पीछे छिपे हुए बच्चे डर से चीखने लगे. किसी तरह एम्बुलेंस वहां पहुंची. अबु ने ड्राइवर को देखकर पूछा कि क्या वो उनके साथ चल सकते हैं? ड्राइवर ने इनकार कर दिया और एम्बुलेंस निकल गई. फायरिंग रुकते ही अबु के पास छिपे बच्चे भी निकलकर भागने लगे. अबु वहीं रुके रहे और कुछ देर बाद वहां से निकले. दफ्तर से संपर्क करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन ये वो ज़माना था जब मोबाइल फोन नए-नए ही आए थे.

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आगे अबु को एक साथी पत्रकार मिला. अबु ने उसे वो फ़ुटेज दिखाई, जिसे उन्होंने फिल्माया था. वीडियो देखते ही वो पत्रकार चीख पड़ा - “अरे नहीं! ये तो जमाल है.. और ये उसका बेटा मोहम्मद.”

अबु ने उनसे पूछा कि वो इन्हें कैसे जानते हैं, तो पत्रकार ने बताया कि उसकी शादी जमाल की बहन से हुई है. यानी मरने वाला व्यक्ति उनका साला था.

ऑफिस में सन्नाटा पसर गया

अबु के दफ़्तर से संपर्क हुआ, तो उनसे कहा गया कि फ़िल्माए गए वीडियोज़ भेज दें. जब अबु ने फुटेज भेजी, तो ग़ाज़ा और जेरुसलम में उनके ऑफ़िस में सन्नाटा छा गया. कोई आवाज़ सुनाई नहीं दे रही थी. पूरा ऑफिस स्तब्ध था.

वीडियो के बारें में खूब बातें हो रहीं थीं. कुछ दावे थे कि ये वीडियो फेक है. अबु के पास ढेर सारी कॉल्स और खूब जांच-पड़ताल हुई. अबु सबसे बस एक ही बात कहते - ‘कैमरे झूठ नहीं बोलते.’

तलाल अबु रहमा को इन तस्वीरों और वीडियो के लिए कई अवॉर्ड्स मिले. दुबई, क़तर और लंदन में सम्मानित किया गया. अमेरिका और फ्रांस ने भी उन्हें सम्मानित किया. कुछ लोगों ने अबु से पूछा कि इन तस्वीरों-फुटेज के लिए उन्हें कितने पैसे मिले हैं? इस पर उन्होंने कहा -  “हम बच्चों के खून से पैसे नहीं कमा सकते.”

उनके संगठन फ्रांस-2 ने बिना किसी पैसे के फ़ुटेज बांटने का एलान किया था. संगठन को इस फ़ुटेज के लिए केस भी लड़ना पड़ा, जो अंततः उन्होंने जीता.

जंग ने फिर अपनों को छीना

दूसरे इन्तिफ़ादा की दुखदाई याद बनी इस फ़ुटेज की कहानी जमाल की ज़िंदगी में फिर दोहरा दी गई है. 23 बरस पहले हुए संघर्ष ने बेटे मोहम्मद को उन्हीं की गोद में हमेशा के लिए सुला दिया था, और अब 2023 में इजरायली हमलों ने उनके परिवार के चार लोगों की जान ले ली है. मरने वालों में उनके दो भाई, बीवी की बहन और भतीजी शामिल हैं.

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