कानपुर में अक्टूबर 2016 में रमेश बाबू शुक्ला नाम के एक रिटायर्ड टीचर की हत्या कर दी गई थी. उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक NIA स्पेशल कोर्ट ने इस केस जुड़े दोनों आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई है. आतिफ मुजफ्फर और फैसल नाम के इन दोनों दोषियों का ISIS से जुड़े आतंकी सैफुल्लाह से कनेक्शन बताया जाता है. अदालत ने इन्हें मौत की सजा देने के साथ ही इन पर 5 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है.
IS आतंकी से जुड़े आतिफ और फैसल को फांसी की सजा, असलहा टेस्ट करने में की थी टीचर की हत्या
आतिफ मुजफ्फर और फैसल को सजा दिलाने में मुस्लिम गवाहों की भूमिका अहम रही. इन लोगों ने 24 अक्टूबर 2016 को दिनदहाड़े रिटायर्ड टीचर रमेश बाबू शुक्ला की गोली मारकर हत्या कर दी थी.
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आजतक से जुड़े संतोष की रिपोर्ट के मुताबिक घटना 24 अक्टूबर, 2016 को कानपुर के चकेरी इलाके में हुई. रमेश बाबू शुक्ला साइकिल से घर लौट रहे थे. तभी बाइक पर सवार तीन लोगों ने रमेश बाबू की गोली मारकर हत्या कर दी. बताया गया कि तीसरा शख्स सैफुल्लाह ही था. वो बाइक चला रहा था. आतिफ मुजफ्फर और फैसल ने रमेश बाबू पर तीन गोलियां दागी गई थीं. दो मिसफायर हो गई थीं. तीसरी उनके कंधे पर लगी. रमेश बाबू को अस्पताल ले जाया गया था, जहां उनकी मौत हो गई थी.
रिपोर्ट के मुताबिक सैफुल्लाह, आतिफ और फैसल को नया असलहा टेस्ट करना था. वो उसे लेकर निकल गए थे. तभी उन्होंने साइकिल पर सवार रमेश बाबू को देखा और उन पर गोली चला दी. तीनों पर आरोप लगा था कि वे ISIS से जुड़ना चाहते थे. यूपी पुलिस एटीएस ने लखनऊ में एक शूटआउट में सैफुल्लाह को मार गिराया था. रमेश बाबू की ओर से केस लड़ रहे सरकारी वकील कौशल किशोर शर्मा ने बताया,
'सैफुल्लाह के एनकाउंटर के बाद उसके छिपने के ठिकाने से 8 पिस्टल बरामद हुई थीं. इन सभी पिस्टल्स को चंडीगढ़ स्थित फॉरेंसिक साइंस लैब भेजा गया. इसके साथ ही जो बुलेट रमेश बाबू को लगी थी, उसे भी वहां भेजा गया. लैब ने कंफर्म कर दिया, कि वो बुलेट इसी बंदूक से चली थी. फैसल के पास से जो मोबाइल बरामद हुआ था, हत्या की दौरान उसकी लोकेशन घटनास्थल के पास की थी.'
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आतंकी हमला क्यों?रमेश बाबू हत्याकांड से पहले आतिफ मुजफ्फर भोपाल में एक ट्रेन ब्लास्ट में गिरफ्तार हो चुका था. वकील ने बताया कि गोली मारने का उद्देश्य सिर्फ दहशत फैलाना था. ये लोग ISIS की गतिविधियों का प्रचार-प्रसार कर रहे थे और इसलिए ही प्रिंसिपल पर हमला कर दिया. आजतक से जुड़े रंजय सिंह से बात करते हुए कौशल किशोर शर्मा ने बताया कि इन दोनों को सज़ा दिलाने में 14 मुस्लिम गवाहों का अहम रोल था.
वकील कौशल किशोर ने बताया कि जाजपुर के एक मस्जिद में दर्स कार्यक्रम होता था. इसमें धार्मिक प्रवचन होते थे. वहां ये तीनों आतंकी जाने लगे और जिहाद जैसी बातें करनी शुरू कर दीं. दर्स समागम के आयोजकों ने इसका विरोध किया. इन सभी लोगों ने हत्याकांड में अदालत के सामने गवाही दी है. वकील ने आगे कहा,
'इन लोगों की गतिविधि और मानसिकता के आतंकी साबित होने में इन गवाहों की अहम भूमिका रही है. ये सारे लोग मुस्लिम हैं. वो कहीं नहीं दबे. उन्होंने अदालत में बिना डरे अपने बयान दर्ज कराए थे.'
रिपोर्ट के मुताबिक वकील ने ये भी बताया कि तीनों आरोपियों ने स्वीकार किया कि वो ISIS से जुड़ने सीरिया जाना चाहते थे. इन तीनों ने शहर में कई जगहों पर बम प्लांट करने की कोशिश की थी. जिसमें इन्हें पहले ही फांसी की सजा सुना दी गई थी.
परिजनों ने क्या कहा?केस में कोर्ट का फैसला आने के बाद रमेश बाबू शुक्ला के बेटे अक्षय ने कहा कि परिवार को सात साल के लंबे इंतज़ार के बाद आखिरकार इंसाफ़ मिल गया. वहीं रमेश की पत्नी ने कहा कि जो उनके साथ हुआ, वैसा और किसी के साथ नहीं होना चाहिए.
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