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राज्यपाल की नियुक्ति पर बवाल हो रहा है, ये नियम जान लेंगे तो सबको चुप करा देंगे!

क्या कानून को परे रखकर जस्टिस नजीर को राज्यपाल बनाया गया?

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केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज रहे एस. अब्दुल नजीर को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया है.

12 फरवरी को केंद्र सरकार ने कई राज्यों के राज्यपाल बदले. बिहार, महाराष्ट्र, राजस्थान से लेकर उत्तर-पूर्वी राज्यों के नए राज्यपालों के नाम जारी किए. इन सभी नामों में एक नाम सबसे ज्यादा चर्चा में है, जस्टिस एस अब्दुल नजीर का. वे सुप्रीम कोर्ट के जज रहे हैं और पिछले महीने ही रिटायर हुए हैं. अब उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया है.

नजीर की नियुक्ति पर सवाल क्यों उठ रहे हैं?

जस्टिस अब्दुल नजीर की नियुक्ति पर सवाल उठने की बड़ी वजह उनका सुप्रीम कोर्ट में जज रहना है. वे 6 साल तक सुप्रीम कोर्ट में जज रहे और कई बड़े मामलों में फैसला सुनाने वाली बेंच का हिस्सा रहे हैं. उन्होंने नोटबंदी और राम जन्मभूमि टाइटल सूट में फैसला दिया था. इसी को लेकर कांग्रेस और बाकी विपक्षी दलों का आरोप है कि उन्हें ये पद सरकार के पक्ष में फैसले देने की वजह से मिला है. कांग्रेस नेता राशिद अल्वी और अभिषेक मनु सिंघवी ने इसे न्यायपालिका के लिए खतरा बताते हुए कहा कि ऐसी नियुक्तियों से लोगों का ज्यूडिशियरी पर भरोसा कम होता है.

ऐसे में ये जानना जरूरी हो जाता है कि कांग्रेस ने जो आरोप लगाए हैं, उनमें कितनी सचाई है? क्या जस्टिस नजीर को राज्यपाल बनाना कानूनी रूप से गलत है? इस बारे में संविधान क्या कहता है? और पहले कब इस तरह के मामले सामने आए हैं? जानते हैं...
 

राज्यपाल बनने के लिए क्या शर्तें हैं?

संविधान के अनुच्छेद 157 और 158 में बताया गया है कि राज्यपाल बनने के लिए क्या जरूरी योग्यताएं हैं. इसके मुताबिक, राज्यपाल बनने के लिए किसी भी व्यक्ति को इन योग्यताओं पर खरा उतरना होता है. 

  • भारत का नागरिक हो.
  • 35 साल की उम्र पूरी कर चुका हो.
  • संसद या विधानमंडल के किसी भी सदन का सदस्य न हो.
  • किसी भी लाभ के पद पर न हो.
     

इस लिहाज से देखा जाए तो जस्टिस नजीर की बतौर राज्यपाल नियुक्ति कहीं से गलत नहीं है. संविधान में बताई गई सभी जरूरी योग्यताओं को वे पूरा करते हैं. भारत के नागरिक हैं, 35 साल की उम्र भी पूरी कर चुके हैं और रिटायर भी हो चुके हैं, इसलिए किसी लाभ के पद पर भी नहीं है.

हालांकि, जब उनकी नियुक्ति का ऐलान हुआ, तब उन्हें रिटायर हुए केवल 40 दिन ही हुए थे. इसे लेकर अब कूलिंग ऑफ पीरियड पर भी सवाल उठ रहे हैं. कूलिंग ऑफ पीरियड का मतलब एक पद छोड़ने के बाद दूसरा पद ग्रहण करने के बीच का समय. इसे लेकर भी संविधान में कोई नियम नहीं है, लेकिन कई लोग ऐसा कहते रहे हैं कि पुराना पद छोड़ने और नया पद ग्रहण करने के बीच कुछ समय का अंतराल होना चाहिए.

पहले भी दो बार ऐसा हुआ 

# पी सदाशिवम

2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने पी. सदाशिवम को केरल का राज्यपाल नियुक्त किया था. वे जुलाई 2013 से अप्रैल 2014 तक देश के चीफ जस्टिस थे और सितंबर 2014 में उनकी नियुक्ति राज्यपाल के तौर पर की गई थी.

# एम. फातिमा बीवी 

वे सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज थीं. 1992 में सुप्रीम कोर्ट से रिटायरमेंट के बाद 1997 से 2001 तक वे तमिलनाडु की राज्यपाल रहीं. हालांकि, उन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करने से पहले ही इस्तीफा दे दिया था.

राज्यपाल कितना राजनीतिक?

आमतौर पर राज्यपाल के पद की कल्पना राज्य के गैर-राजनीतिक प्रमुख के तौर पर होती है, लेकिन संविधान ने राज्यपाल को कुछ ऐसे पॉवर्स दे रखे हैं, जिससे ये पद राजनीतिक तौर पर भी बेहद जरूरी हो जाता है. जैसे राज्यपाल चुनाव के बाद बहुमत साबित करने के लिए किसी भी पार्टी को दिया जाने वाला समय निर्धारित करता है. अगर चुनावों में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है, तो किस पार्टी को बहुमत साबित करने के लिए पहले बुलाया जाएगा, ये भी राज्यपाल पर ही निर्भर करता है. इस वजह से राज्यपाल का पद राजनीतिक न होते हुए भी राजनीतिक उद्देश्यों के लिए बेहद जरूरी हो जाता है.

जस्टिस नजीर के बारे में ये बातें भी जान लीजिए

5 जनवरी 1958 को जन्मे अब्दुल नजीर ने एसडीएम लॉ कॉलेज मंगलुरु से वकालत की पढ़ाई की है. इसके बाद 20 साल तक कर्नाटक हाई कोर्ट में वकालत की प्रैक्टिस करते रहे. फरवरी 2017 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया. वे हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रहे बिना सीधे सुप्रीम कोर्ट भेजे जाने वाले तीसरे जज हैं.

राम मंदिर पर फैसला सुनाने वाली बेंच के सदस्य. इसमें जस्टिस नजीर सबसे दाएं खड़े हैं. (फोटो- PTI)
किन-किन फैसलों में शामिल रहे हैं नजीर?

राम जन्मभूमि का टाइटल मुकदमे पर फैसला सुनाने वाली पांच सदस्यीय बेंच में  - जिसकी फोटो ऊपर लगी है.

नोटबंदी के खिलाफ जो याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट गई थीं, उन पर फैसला सुनाने वाली बेंच में भी शामिल थे. इस बेंच ने कहा था कि नोटबंदी का फैसला जल्दबाजी में नहीं लिया गया था.

इसके अलावा सायरा बानो केस में तीन तलाक की संवैधानिक वैधता तय करने वाली वाली बेंच में भी अब्दुल नजीर शामिल थे.
 

वीडियो: अयोध्या पर राम मंदिर के पक्ष में फैसला देने वाले सुप्रीम कोर्ट के 5 जज ये हैं