दूसरी बार अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद डॉनल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने कुछ फैसले लिए. इन्हीं फैसलों के कारण 5 फरवरी को 104 प्रवासी भारतीयों को अमेरिका से डिपोर्ट (Indians Deported From US) कर दिया गया. अवैध प्रवासियों को डिपोर्ट करने की प्रक्रिया पुरानी है. इसके बावजूद अमेरिका ने इस बार जो रूख अपनाया है, उसके कई मायने निकाले जा रहे हैं. ऐसा पहली बार हुआ है जब अमेरिका ने अपने मिलिट्री एयरक्राफ्ट से भारतीयों को डिपोर्ट किया है.
हथकड़ी, बेड़ियां... भारतीयों के साथ इस अमानवीय व्यवहार की हिम्मत आई कहां से?
US Deported Indians: अवैध प्रवासियों का निर्वासन पहले भी होता रहा है, लेकिन इस बार की तस्वीरें कुछ अलग हैं. इसके कारण अमेरिकी सरकार पर मानवाधिकारों को लेकर सवाल उठ रहे हैं. साथ ही भारत सरकार की भी फजीहत हो रही है. ट्रंप ऐसा कर क्यों रहे हैं?

अमृतसर पर लैंड होने के बाद भारतीयों ने जो कहानियां बताईं, वो दर्दनाक हैं. अमेरिका से भारत तक की इस यात्रा में करीब 40 घंटे का समय लगा. यात्रियों ने बताया कि इस विमान में उनको हथकड़ी लगाकर बैठाया गया. हथकड़ी के साथ ही उनको खाना खाने के लिए मजबूर किया गया. उनके पैरों को जंजीरों से जकड़ा गया. बार-बार आग्रह करने के बाद भी उनसे कहा गया कि वो खुद को घसीटकर टॉयलेट तक लेकर जाएं. विमान में 104 लोगों के लिए केवल एक टॉयलेट था. क्रू मेंबर वॉशरूम का दरवाजा खोलते और लोगों को उसमें धकेल देते. इस यात्रा के दौरान लोगों को अपनी सीट से एक इंच भी नहीं हिलने दिया गया.
सैन्य विमान से ही क्यों भेजे जा रहे प्रवासी?सवाल उठे कि ट्रंप प्रशासन ने इस प्रक्रिया के लिए मिलिट्री एयरक्राफ्ट का चुनाव क्यों किया? हाल ही में ट्रंप ने कहा था,
इतिहास में पहली बार हम अवैध एलियंस (प्रवासियों) को सैन्य विमान में चढ़ाएंगे और उड़ाकर वहां छोड़कर आएंगे, जहां से वो आए थे. हम फिर से अपना सम्मान चाहते हैं. सालों से वो हम पर हंसते रहे हैं, ऐसे जैसे हम बेवकूफ लोग हैं.
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ये मामला जितना भारत और अमेरिका से जुड़ा है, उससे कहीं ज्यादा ट्रंप और उनके अमेरिकी वोटर्स से जुड़ा है. क्योंकि डिपोर्ट होने वाले लोगों में सिर्फ भारतीय ही नहीं हैं, बल्कि इनमें ब्राजील, ग्वाटेमाला, पेरू और होंडूरास के लोग भी हैं. इनको भी सैन्य विमानों से ही इनके देश में छोड़ा गया है.

ट्रंप ने ऐसा ही एलान कोलंबिया के लिए भी किया था. लेकिन वहां के राष्ट्रपति गुस्तावो पेड्रो ने इसका सख्ती से विरोध किया. उन्होंने कहा कि वे अपने नागरिकों की गरिमा का अपमान नहीं होने देंगे. उन्होंने अपने प्रवासियों के लिए कोलंबिया एयर फोर्स के दो विमान अमेरिका भेजे.
ताकत दिखा रहे हैं ट्रंप?डॉनल्ड ट्रंप की सैन्य विमान वाली नीति की आलोचना हो रही है. लेकिन ये मामला उनके चुनावी कैंपेन से जुड़ा है. चुनावी अभियान के दौरान उन्होंने अपने वोटर्स से वादा किया कि वो अवैध प्रवासियों को अमेरिका से निकाल देंगे. उन्होंने इस मामले को जोर-शोर से भुनाया. ऐसे में सेना और सेना के विमान के इस्तेमाल से उन्होंने अपने सपोर्ट्स को एक मजबूत संदेश देने का प्रयास किया है. ट्रंप दो तरह का संदेश देना चाहते हैं. पहला तो ये कि वो अपना वादा पूरा कर रहे हैं.
दूसरा ये कि वो इस प्रक्रिया के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं. साथ ही इसे दूसरों देशों के लिए चेतावनी के तौर पर भी देखा जा रहा है. जैसा कि कोलंबिया के मामले में हुआ. उन्होंने जब अपने नागरिकों की गरिमा की बात की तो ट्रंप ने कोलंबिया पर टैरिफ लगाने की धमकी दी.
आमतौर पर डिपोर्टेशन के लिए नागरिक विमानों का ही इस्तेमाल होता है. लेकिन सैन्य विमान के इस्तेमाल को प्रतीकों की राजनीति के तौर पर देखा जा रहा है. मसलन, देश से कथित अवैध प्रवासियों को निकालने के लिए बल का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
बात इसी मेसेजिंग की है इसलिए ही ट्रंप प्रशासन मोटा पैसा खर्च करने में भी पीछे नहीं हट रहा है. न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, नागरिक विमानों से डिपोर्ट करने में जितना खर्चा आता है, उसकी तुलना में करीब पांच गुना ज्यादा खर्चा सैन्य विमान के इस्तेमाल में आता है. हालांकि, एजेंसी ने ये हिसाब अमेरिका से ग्वाटेमाला तक के लिए लगाया है.
मिलिट्री एयरक्राफ्ट के इस्तेमाल से ये मेसेज भी दिया जा रहा है कि अमेरिका में बाहर से आए ये लोग उसके दुश्मन हैं और अब इन्हें पकड़कर, उनके हाथों में हथकड़ियां और पैरों में बेड़ियां डालकर उन्हें युद्धबंदियों की तरह वापस भेजा जा रहा है.
भारतीयों को ‘C-17 ग्लोबमास्टर’ मिलिट्री एयरक्राफ्ट से डिपोर्ट किया गया. एजेंसी की रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि C-17 के हर घंटे का खर्च 28,500 डॉलर (लगभग 24 लाख रुपये) है.
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"मित्र देशों को भी नहीं बख्शा जाएगा"अमेरिका के प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा,
ट्रंप ने इससे (भारतीय को डिपोर्ट करके) ये संकेत दिया है कि वो जिन देशों के नेताओं का समर्थन करते हैं, उन्हें भी इमिग्रेशन पॉलिसी के दमन से बख्शा नहीं जाएगा.
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर, डॉनल्ड ट्रंप को लेकर साकारात्मक बातें कहते रहे हैं. हाल ही में एस जयशंकर ने कहा था कि अमेरिका का बाकी देशों के साथ जैसा संबंध है, उसकी तुलना में भारत-अमेरिका के रिश्ते ज्यादा बेहतर हैं. इतना ही नहीं, एस जयशंकर जब ट्रंप के शपथ ग्रहण में शामिल हुए, तो उनको सबसे आगे की कुर्सी पर जगह दी गई. कई भारतीय मीडिया संस्थानों ने इस बात को भारत सरकार की गरिमा से जोड़कर देखा. ऐसे नैरेटिव चलाए गए कि भारत से अपने बेहतर रिश्ते का संदेश देने के लिए ही जयशंकर को सबसे आगे बैठाया गया था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी ट्रंप को अपना ‘अच्छा दोस्त’ बता चुके हैं. आगामी 13 फरवरी को दोनों की मुलाकात होने वाली है.
अमानवीय व्यवहार क्यों?जैसा कि हमने ऊपर बताया कि अमेरिका से वापस आए भारतीयों ने अपनी आपबीती सुनाई है. अपने साथ अमानवीय व्यवहार की बात कही है. विपक्षी नेताओं ने भी इस व्यवहार को लेकर सवाल उठाए हैं. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने राज्यसभा में इन आरोपों को लेकर जवाब भी दिया है. कहा है कि आगे से ऐसा ना हो, इसके लिए अमेरिकी सरकार से बात की जा रही है. लेकिन आखिर सवाल है कि इन लोगों से इस तरह के व्यवहार के पीछे की मानसिकता क्या है? आखिर इतनी हिम्मत आती कहां से है?
डॉनल्ड ट्रंप लगातार प्रवासी विरोधी रुख अपनाते रहे हैं. उनकी चुनावी रैलियों में अमेरिका में बाहर से आए लोगों का अमानवीयकरण किया गया है. उन्हें अपराधी और बलात्कारी बुलाया गया है. कमला हैरिस के साथ प्रेजिडेंशियल डिबेट में तो ट्रंप ने ये तक कह दिया था कि बाहर से आए प्रवासी अमेरिकियों के कुत्ते-बिल्ली चुराकर खा रहे हैं. अमेरिकी मीडिया संस्थानों ने ट्रंप के इस दावे को तथ्यात्मक रूप से गलत पाया था.
इस बार के चुनावी प्रचार के दौरान भी ट्रंप ने प्रवासी-विरोधी कैंपेन चलाया. अमेरिका की तमाम समस्याओं का जिम्मेदार बाहर से आए लोगों को ठहरा दिया. और इस कैंपेन पर उन्हें लोगों के वोट भी मिले. मतलब, प्रवासियों के खिलाफ एक माहौल अमेरिका में बना दिया गया. इसी माहौल और सेंटिमेंट की आड़ लेकर ही अब वापस भेजे जा रहे लोगों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है.
दुनियाभर में सिविल सोसाइटी के लोग प्रवासियों के साथ किए जा रहे इस व्यवहार की निंदा कर रहे हैं. कइयों ने कहा है कि ऐसा तो जानवरों के साथ भी नहीं किया जाता. इसी के साथ नस्लवाद का भी सवाल उठा है. सवाल पूछे जा रहे हैं कि क्या श्वेत मूल के लोगों के साथ इस तरह का व्यवहार किया जा सकता है? भले ही वो दोषी हों, किसी देश में अवैध तरीके से घुसे हों या किसी मामले में उनके ऊपर सुनवाई चल रही हो!
मानवाधिकारों का हननइससे पहले 29 जनवरी को ट्रंप ने एलान किया था कि अवैध प्रवासियों को ग्वांतानामो जेल में रखा जाएगा. हालांकि, उन्होंने ये भी कहा था कि इन लोगों को अपने देश में रखकर उनको अपील करने का मौका नहीं देना चाहते.
ट्रंप के ग्वांतानामो वाले बयान के बाद ह्यूमन राइट्स को लेकर सवाल उठे थे. क्योंकि इस जेल में 9/11 आतंकी हमले के बाद आतंकवाद के संदिग्धों को रखा गया था. ये जेल मानवाधिकारों के हनन का पर्याय बनने के लिए बदनाम है.
मानवाधिकारों की बात थोड़ी और कर लेते हैं. सिर्फ इंसान होने के नाते मनुष्यों को तमाम मानवाधिकार मिले हुए हैं. इनका जो मूल विचार है वो ये कि दुनिया के किसी भी मनुष्य के साथ किसी भी तरह की ज्यादती ना हो, उसकी इंसानी गरिमा का ध्यान रखा जाए.
लेकिन ऐसा हुआ नहीं. इस बात की पुष्टि डिपोर्ट किए गए भारतीयों और अमृतसर एयरपोर्ट पर तैनात कुछ अधिकारी भी करते हैं. एक अधिकारी कहता है कि इस विमान से उतरे लोगों को जब खाना दिया गया, तो उन्होंने उसे ऐसे खाया कि जैसे सालों से गर्म और ताजा खाना ना खाया हो.

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ऐसी रिपोर्ट्स हैं कि आगे और भी भारतीयों को अमेरिका से डिपोर्ट किया जाएगा. विदेश मंत्री एस जयशंकर कह चुके हैं कि आगे आने वाले भारतीयों के साथ ऐसा व्यवहार ना हो, इसके लिए अमेरिकी सरकार से बातचीत की जाएगी.
दरअसल, अमेरिका और भारत के बीच रक्षा, ऊर्जा और तकनीक के क्षेत्र में कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण द्विपक्षीय समझौते हैं. विश्लेषकों का कहना है कि भारत सरकार को इन संबंधों और समझौतों का हवाला देना चाहिए और हर हाल में भारतीयों के साथ हो रहे इस व्यवहार पर आपत्ति जताकर इसे तत्काल प्रभाव से बंद करवाना चाहिए.
संयुक्त राष्ट्र के साथ काम कर चुके मानव सचदेवा इंडियन एक्सप्रेस के लिए लिखते हैं,
भारत और अमेरिका के रिश्ते बिगड़े तो डिफेंस-सिक्योरिटी, अंतरिक्ष और समुद्र से जुड़े प्रोजेक्ट्स तो खतरे में पड़ेंगे ही साथ ही व्यापार को भी नुकसान होगा. अमेरिका में तकनीक, AI और उर्जा क्षेत्रों में भारतीयों ने और भारतीय मूल के अमेरिकियों ने महत्वपूर्व योगदान दिए हैं.
सचदेवा ने लिखा है कि संख्या में कम होने बावजूद अमेरिका की राजनीति और अर्थव्यवस्था में भारतीय प्रवासियों का प्रमुख योगदान है. इसलिए ये जरूरी है कि अमेरिका मानवीय तरीके से भारतीयों को उनके देश वापस भेजे.
फैज़ अहमद फैज़ ने लिखा है-
जिस्म पर क़ैद है जज़्बात पे ज़ंजीरें हैं
फ़िक्र महबूस है गुफ़्तार पे ताज़ीरें हैं
अपनी हिम्मत है कि हम फिर भी जिए जाते हैं
ज़िंदगी क्या किसी मुफ़लिस की क़बा है जिस में
हर घड़ी दर्द के पैवंद लगे जाते हैं
अगर आप अमेरिका से वापस आए भारतीयों की आपबीती सुनेंगे तो फैज़ की ये पंक्तियां याद आ जाएंगी. आखिर में सबसे बड़ा सवाल यही बचता है कि आखिर इंसानों के साथ इस तरह का सुलूक कैसे किया जा सकता है?
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