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चीनी और नमक के नाम पर हम 'प्लास्टिक' फांक रहे, नई रिसर्च में दावा

5 मिलीमीटर से छोटे प्लास्टिक के कणों को माइक्रोप्लास्टिक कहते हैं. ये छोटे प्लास्टिक कण भोजन, पानी और हवा के जरिये मानव शरीर में प्रवेश कर सकते हैं.

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चीनी और नमक में सूक्ष्म प्लास्टिक कण मिलने का दावा. (तस्वीर- सोशल मीडिया)

‘It's microplastic world, sugar and salt are living in it.’ हमारे देश में लोग अपने रोजाना के खान-पान में चीनी और नमक का इस्तेमाल अनिवार्य रूप से करते हैं. पहले की कई रिसर्च बताती हैं कि औसत भारतीय हर दिन 10.98 ग्राम नमक और लगभग 10 चम्मच चीनी का इस्तेमाल करता है. यह विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की तय की गई सीमा से काफी ज्यादा है. अब एक स्टडी सामने आई है. इसके अनुसार, भारत में बिकने वाले सभी ब्रांड के नमक और चीनी में प्लास्टिक के बहुत ही छोटे कण (माइक्रोप्लास्टिक) पाए गए हैं. नमक और चीनी के ब्रांड और पैकेज से कोई मतलब नहीं. माइक्रोप्लास्टिक नमक और चीनी में सर्वव्याप्त हो गए हैं. 

नमक और चीनी पर हुई रिसर्च

यह स्टडी दिल्ली के पर्यावरण अनुसंधान संगठन ‘टॉक्सिक्स लिंक’ ने की है. संगठन का दावा है कि उसने इतनी बड़ी बात यूं ही नहीं कह दी है. बकायदा इसके लिए रिसर्च की है. इसके लिए उसने सादा नमक, सेंधा नमक, समुद्री नमक और स्थानीय कच्चा नमक समेत कुल 10 तरह के नमक पर रिसर्च की है. इतना ही नहीं, दुकान और ऑनलाइन दोनों जगह से पांच अलग-अलग प्रकार की चीनी खरीदकर भी जांच की गई.

इस दौरान पता चला कि जिस भी चीज पर हाथ लगाया, वहां माइक्रोप्लास्टिक मिला. यानी नमक और चीनी के सभी जांचे गए सैंपल में माइक्रोप्लास्टिक मौजूद थे. माइक्रोप्लास्टिक भी अलग-अलग रूप में मिले हैं. मसलन, फाइबर, पेलेट्स, फिल्म्स और फ्रैगमेंट्स. इनकी साइज 0.1 मिलीमीटर से लेकर पांच मिलीमीटर तक थी. आयोडीन युक्त नमक में पतले रेशों वाले माइक्रोप्लास्टिक्स बड़ी मात्रा में पाए गए.

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प्रति किलोग्राम नमक में 6.71 से लेकर 89.15 टुकड़े माइक्रोप्लास्टिक के मिले. इसमें आयोडीन युक्त नमक में सबसे ज्यादा माइक्रोप्लास्टिक के 89.15 टुकड़े, जबकि जैविक सेंधा नमक में सबसे कम 6.70 टुकड़े प्रति किलोग्राम थे. वहीं, चीनी के सैंपल में प्रति किलोग्राम माइक्रोप्लास्टिक के 11.85 से 68.25 टुकड़े पाए गए. यह आंकड़ा सबसे ज्यादा गैर कार्बनिक चीनी के नमूनों में पाया गया.

‘टॉक्सिक्स लिंक’ के फाउंडिंग डॉयरेक्टर रवि अग्रवाल का बयान भी सामने आया है. उन्होंने न्यूज एजेंसी पीटीआई से कहा, 

“इस स्टडी का मकसद माइक्रोप्लास्टिक्स पर मौजूदा वैज्ञानिक डेटाबेस में योगदान देना था, जिससे ‘वैश्विक प्लास्टिक संधि’ इस मसले का ठोस और केंद्रित तरीके से हल निकाल सके.”

क्या है माइक्रोप्लास्टिक?

5 मिलीमीटर से छोटे प्लास्टिक के कणों को माइक्रोप्लास्टिक कहते हैं. ये छोटे प्लास्टिक कण भोजन, पानी और हवा के जरिये मानव शरीर में प्रवेश कर सकते हैं. माइक्रोप्लास्टिक को लेकर चिंता दुनिया भर में है. कारण, इससे स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ने वाले नुकसान.

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