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अब काई से मनई फिसलेगा नहीं, हवाईजहाज में उड़ेगा!

सब चंगा रहा तो शेरशाह सूरी मरने के बाद भी काम आएंगे...

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फोटो - thelallantop
कालाधन के 15 लाख रुपये आएं न आएं. मुन्ना कक्का की लॉटरी लगने वाली है. कक्का के बच्चे जब भी उनके पोखरे की ओर निकलते, वो भन्ना जाते. चिल्लाने लगते,

'हमरे तलाब मा मत जाओ ससुर. कहीं और जाए मरो. हमरे तलाब मा डुबिहौ, तौ हमरै नाम आई.'

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इस डांट में डांट कम प्यार ज्यादा होता था. दरअसल मुन्ना कक्का के तालाब में बड़ी काई लगी रहती थी. इसलिए वो नहीं चाहते थे, हम वहां खेलने जाएं. पर तालाब की काई कक्का के लिए वरदान होने वाली है और उन लोगों के लिए भी, जिनके घर, आंगन या तालाब में काई जमी हुई है. जर्मनी के कुछ वैज्ञानिक एक नया प्रयोग कर रहे हैं. ये म्यूनिख शहर के पास ऑटोब्रुन नाम की जगह पर एक बड़े खुले टैंक में काई उगा रहे हैं. इस काई से वो बायोफ्यूल बनाने वाले हैं. इस बायोफ्यूल का यूज होगा हवाई जहाज उड़ाने में. अभी बस एक्सपेरिमेंट के जैसे ये काम चल रहा है. पर आगे की प्लानिंग इसे प्रॉपरली बायोफ्यूल के जैसे यूज करने की है. जो वैज्ञानिक ऐसा कर रहे हैं. उनमें से एक हैं प्रोफेसर थोमास ब्रुएक. इनकी मानें तो 2050 तक खेती से पैदा हुआ बायोफ्यूल टोटल यूज होने वाले जेटफ्यूल का 3 से लेकर 5 परसेंट तक होगा. डीजल तो किसी सीधे-सादे पौधे से भी बन जाता. आखिर काई ही क्यों? दूसरी फसलों से भी हवाईजहाज का फ्यूल बनाया जाता रहा है. पर ये बहुत महंगा पड़ता है. जिसकी वजह से इसका यूज बस लुफ्थांसा और केएलएम जैसी बड़ी कंपनियां ही करती हैं. वो भी एक्सपेरिमेंट के तौर पर. असली बात ये है कि मिट्टी में पैदा होने वाले पौधों के बजाए काई 12 गुना तेजी से बढ़ती है. और मजेदार ये है कि सफ़ेद सरसों के मुकाबले काई से 30 गुना ज्यादा तेल निकलता है. यही है काई उगाने का असली रीजन.
टीम के एक वैज्ञानिक साहब का कहना है कि ऐसा नहीं है कि काई सौ परसेंट यूज की जा सकती है. अभी इसके साथ और भी अलग-अलग तकनीकें अपनाने की कोशिश चल रही है. अभी तक इस तकनीक पर 76 करोड़ से ज्यादा खर्च किया जा चुका है. यूनिवर्सिटी के इस प्रयोग को यूरोपीय एरोस्पेस संघ की ओर से भी कुछ इकोनॉमिक मदद मिली है.
इस खबर के बाद से इंडिया में 'काई मालिकान' को खुश हो जाना चाहिए. यहां तो कभी किसी तालाब की सफाई होती नहीं. चाहे कानपुर की मोतीझील हो या रीवा में गोविंदनगर का तालाब. हर जगह तालाब और पोखरे काई से भरे हुए होते हैं. कुछ दिनों पहले गए थे बिहार में सासाराम. जहां पर शेरशाह सूरी का मकबरा एक बड़े से तालाब के बीचोबीच बना हुआ है. जाओ देख के आओ वहां उस तालाब में 4 परत कई लगी हुई है. माने मानो न मानो करोड़ों का इंतजाम पक्का है.

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