फिल्म में वरुण धवन, श्रद्धा कपूर और अपारशक्ति खुराना ने मेन रोल्स किए हैं. साथ में धर्मेश येलांडे, पुनीत पाठक, राघव जुयाल, नोरा फतेही, सलमान युसूफ खान और सुशांत पुजारी जैसे डांसर्स भी हैं. फिल्म में वरुण धवन ने स्ट्रीट डांसर टीम के लीडर सहेज का रोल किया है. वरुण अच्छा नाचते हैं. एक्टिंग भी अच्छी करते हैं. लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ. फिल्म के हर सीन में वो कुछ ज़्यादा ही मेलो ड्रमैटिक ज़ोन में हैं. वो ओवरबोर्ड चले जाते हैं, जिसे अन्य शब्दों में ओवरएक्टिंग भी कह सकते हैं. लेकिन उनका स्वैग सब संभाल लेता है. अपारशक्ति के रोल से बड़ा, तो उनका नाम है. वो फिल्म के बहुत ज़रूरी किरदार हैं. लेकिन ये बात फिल्म नहीं समझ पाती. फिल्म में अगर किसी ने थोड़ी-बहुत एक्टिंग की है, तो वो हैं श्रद्धा कपूर. उनके डांस मूव्स से लेकर डायलॉग डिलीवरी और एक्सप्रेशंस सबकुछ जगह पर हैं, जो कई बार अच्छे लगते हैं. डांसर्स की जमात से सुशांत पुजारी बड़े नैचुरल लगे हैं.

फिल्म में वरुण धवन ने जो किया है, उसके लिए ये मीम परफेक्ट है.
फिल्म का म्यूज़िक बहुत बुरा है. क्योंकि पॉपुलर गानों के रीमिक्स के अलावा कुछ है ही नहीं. 'गर्मी' चार्टबस्टर हो गया है लेकिन ओवरऑल मामला काफी ठंडा है. फिल्म भले ही खुद को 'एबीसीडी' सीरीज़ से अलग बताती है लेकिन क्लाइमैक्स में 'एबीसीडी' का ही गाना 'बेज़ुबान' इस्तेमाल किया जाता है. 'बेज़ुबान' सुंदर गाना है. उसकी अपनी कॉलबैक वैल्यू है, जिसे भुनाने की कोशिश की गई है. और वो गाना फिल्म के बहुत काम आता है. फिल्म देखते-देखते उबासी लेने लगे लोगों में वही गाना ऊर्जा भरता है. लेकिन जैस्मिन सैंडलस के 'इल्लीगल वेपन' के साथ, इन्होंने जो किया है, उसके लिए 'नहीं माफ करूंगा मैं जब तक है जान'. वो गाना यहां सुनते भी जाइए:
ये एक डांस फिल्म है. अच्छे मैसेज और अच्छी नीयत के साथ. लेकिन बड़ी कंज़र्वेटिव है. हमारे यहां से हीरो का कॉन्सेप्ट खत्म होने का नाम नहीं ले रहा. हीरो यानी वरुण धवन अपनी फिल्म के तो हीरो हैं, ही वो श्रद्धा कपूर की फिल्म के भी हीरो हैं. कम शब्दों में इसे ऐसे समझिए कि यहां श्रद्धा कपूर अपनी ही कहानी की सेकंड लीड हैं. श्रद्धा का कैरेक्टर वैसे बड़ा मॉडर्न है. लेकिन जब उसे डांस करने के बारे में अपने पापा से बात करनी होती है, तो उसके बदले हीरो आकर बात करता है. फिल्म में ये बताने की कोशिश की गई है कि हीरो अपनी हीरोइन को संकीर्ण मानसिकता वाले पिता से बचाने आया है. यहां आयरनी आत्महत्या करते-करते रह जाती है. इसलिए हमने इसे शुरुआत में वरुण धवन की फिल्म कहा था.

फिल्म के एक सीन में वरुण धवन. इनका किरदार का नाम सहेज है लेकिन फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है, जिसे सहेज कर रखा जा सके.
जब पाकिस्तानी पैरेंट्स और उनसे छुपकर अपनी लाइफ एंजॉय करने वाली लड़की की बात होती है, तो इरम हक़ की फिल्म 'व्हाट विल पीपल से' याद आती है. लेकिन आगे इस चीज़ को बड़े चीज़ी और रेगुलर तरीके से डील किया जाता है, जो कतई निराशाजनक है.
फिल्म का पहला हाफ काफी स्लो है. जैसे ही इंटरवल के पहले फिल्म कहानी को पूरी तरह एस्टैब्लिश कर लेती है, आप समझ जाते हैं कि फिल्म जा कहां रही है. लेकिन दूसरा हाफ काफी तेज़ शुरू होता है. धड़ाधड़ चीज़ें होती हैं. और फिर आता है एक डांस फेस ऑफ सीक्वेंस. बस ये समझ लीजिए कि वैसा डांस आपने पहले इंडियन सिनेमा में कभी नहीं देखा होगा. भयानक कोरियोग्रफी, कमाल की लाइटिंग और शानदार म्यूज़िक. और यही चीज़ फिल्म के क्लाइमैक्स में भी होती है. फिल्म की सबसे इंट्रेस्टिंग चीज़ें ये डांस सीक्वेंस ही हैं. इसके अलावा अगर आप कुछ ढूंढने जा रहे हैं, तो काफी दुखी होकर थिएटर से निकलेंगे.

फिल्म के एक सीन में श्रद्धा कपूर. उन्होंने अपने कैरेक्टर को बहुत सीरियसली प्ले किया है. फिल्म से ज़्यादा सीरियसली.
फिल्म शुरू होती है. बोर करती है. बीच में इमोशनल ब्लैकमेल करने की कोशिश करती है लेकिन आप इतने समझदार हैं कि उसके झांसे में नहीं आते. फिर ये डांस दिखाकर आपको लुभाती है. आप देखते हैं और एंजॉय करते हैं. लेकिन फिल्म के साथ या उसके पक्ष में कभी नहीं खड़े होते. अगर 'स्ट्रीट डांसर' से डांस निकाल दिया जाए, तो फिल्म स्ट्रीट पर आ जाएगी. रेमो डिसूज़ा चले थे डांस फिल्म बनाने लेकिन 'डांस इंडिया डांस' बनाकर छोड़ दिया है. लास्ट चीज़ ये कि फिल्म में वरुण धवन एक जगह पर ब्रिटिश एक्सेंट में बात करते हैं, उस दौरान प्लीज़ कान बंद कर लें. क्योंकि वो एक सीन पूरी फिल्म से ज़्यादा बुरा है.
वीडियो देखें- फिल्म रिव्यू: स्ट्रीट डांसर 3डी