सैकड़ों किसानों का जत्था दिल्ली की तरफ़ अग्रसर (Farmers Protest) है. पंजाब-हरियाणा की सीमा शंभू बॉर्डर (Shambhu Border) पर प्रशासन का बंदोबस्त टाइट है– कीलें, तार, बैरिकेड्स और आंसू गैस. इस बीच ख़बर आ रही है कि 78 साल के एक किसान की मौत हो गई है.
किसान आंदोलन: शंभू बॉर्डर पर गई किसान की जान, किसान संगठनों ने क्या कहा?
सुबह-सुबह उन्हें दिल का दौरा पड़ा. तड़के 4 बजे पास के सिविल अस्पताल ले जाया गया. वहां से कहीं और रेफ़र कर दिया गया.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, मृतक किसान का नाम ज्ञान सिंह था. उम्र, 78 साल. वो किसान मज़दूर संघर्ष समिति (KMSC) के सदस्य थे.
16 फ़रवरी की सुबह-सुबह उन्हें दिल का दौरा पड़ा. फिर तड़के 4 बजे उन्हें राजपुरा के सिविल अस्पताल ले जाया गया. वहां उन्हें पटियाला के सरकारी राजिंदरा अस्पताल में रेफ़र कर दिया गया. डॉक्टरों ने बताया कि इलाज के आधे घंटे के अंदर ही उन्होंने दम तोड़ दिया.
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वैसे तो पिछले आंदोलन का नेतृत्व करने वाले संगठन संयुक्त किसान मोर्चे (SKM) ने इस प्रदर्शन से ख़ुद को दूर किया हुआ है. मगर उनका कहना है कि प्रदर्शनकारी किसानों के ख़िलाफ़ हो रही ज़्यादती के लिए वो हरियाणा और केंद्र सरकारों का विरोध करेंगे.
मुआवज़े की मांग पर अब तक क्या?किसानों का जो मोर्चा इस वक़्त पुलिस के बैरिकेड्स और आंसू गैस से जूझ रहा है, उनकी कई मांगों में एक मांग ये भी है कि 2020-2021 के विरोध प्रदर्शन के दौरान मारे गए किसानों के घरवालों को मुआवज़ा दिया जाए. उनके परिवार में किसी एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाए.
SKM ने दिसंबर, 2021 में कहा था कि आंदोलन में 670 से ज़्यादा प्रदर्शनकारियों की मौत हुई है. वहीं, दूसरे संगठन अखिल भारतीय किसान सभा का कहना था कि लगभग 750 लोगों की मौत हुई है.
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हालांकि, जब सरकार से संसद में ये सवाल पूछा गया कि क्या वो आंदोलन के दौरान मरने वाले किसानों के परिवार को वित्तीय सहायता देंगे. तो सरकार ने जवाब दिया,
कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय के पास मरने वालों का कोई रिकॉर्ड नहीं है. इसलिए वित्तीय सहायता का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता.
2021 के मानसून सत्र में भी तत्कालीन कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने कहा था कि केंद्र के पास किसानों की मौत का कोई रिकॉर्ड नहीं है.