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'मैं तो हर मोड़ पर तुझको दूंगा सदा' कहने वाला गीतकार चला गया

89 साल की उम्र में मशहूर गीतकार नक्श लायलपुरी उर्फ़ जसवंत राय शर्मा का निधन

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फोटो - thelallantop
"बोझ होता जो ग़मों का तो उठा भी लेते ज़िंदगी बोझ बनी हो तो उठाएं कैसे" ये लिखने वाला शायर, गीतकार चला गया है. नक्श लायलपुरी साहब का आज मुंबई में इंतकाल हो गया. वो 89 बरस के थे. वो कुछ समय से बीमार चल रहे थे. हिंदी फिल्मों में कितने ही कालजयी गीत लिखने वाला ये फ़नकार अपनी उम्र के अंतिम दिनों में लगभग गुमनामी की ज़िंदगी जीता रहा.
नक्श लायलपुरी साहब का असली नाम जसवंत राय शर्मा था. वो पाकिस्तान के फैसलाबाद में पड़ने वाले लायलपुर में पैदा हुए थे. ‘नक्श’ उनका तख़ल्लुस था. लायलपुर का होने की वजह से लायलपुरी. इसी नाम से उन्हें दुनिया जानती रही. उनका असली नाम महज़ उनके परिवारवालों के लिए बना रहा.
1947 में जब भारत का विभाजन हुआ वो भारत आ गए. शरणार्थियों के एक काफ़िले के साथ पैदल सफ़र काट के. सबसे पहला पड़ाव लखनऊ रहा. लेकिन अपने अंदर की क्रिएटिविटी और रोज़गार की समस्या उन्हें मुंबई ले गई. फिर वो वहीं के हो के रह गए. शुरू शुरू में तो उन्हें बड़ी दिक्कतें आई. रिज़क के चक्कर में डाकखाने में काम करना पड़ा. फिर एक दिन किसी ने उन्हें फिल्मकार जगदीश सेठी से मिलवाया और यूं फिल्म इंडस्ट्री में उनका सफ़र चल पड़ा. यूं तो फ़िल्मी गाने लिखने का सिलसिला 1952 से ही शुरू हो गया था लेकिन असली सफलता मिलने में उन्हें 18 साल इंतजार करना पड़ा. 1970 में बी आर इशारा की फिल्म ‘चेतना’ के रिलीज होने तक. इसका गीत ‘मैं तो हर मोड़ पर, तुझको दूंगा सदा’ इतना चला कि नक्श साहब की धूम मच गई. उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. एक से बढ़कर एक शानदार गीतों से उन्होंने हिंदी फिल्मों को समृद्ध किया. कौन भूल सकता है फिल्म आहिस्ता-आहिस्ता का वो शानदार गीत, ‘माना तेरी नज़र में तेरा प्यार हम नहीं कैसे कहें के तेरे तलबगार हम नहीं’ बेबसी का, मायूसी का, शरणागत होने की इंतहा का दस्तावेज है ये गीत. मुकम्मल सरेंडर कर जाने का आलम तो देखिए, ‘तन को जला के राख़ बनाया, बिछा दिया लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं'
सुलक्षणा पंडित की सुमधुर आवाज़ में नक्श साहब के मानिखेज़ बोल सुनिए 
इसी तरह फिल्म मिलाप का गीत ‘कई सदियों से, कई जन्मों से’ भी बेहद मकबूल रहा. मुकेश की आवाज़ में ये गाना पूरी मूवी में बार-बार बजता है जो इसके मानीखेज़ बोलों की वजह से बेहद प्रभावी साबित होता है. फिल्म ‘तुम्हारे लिए’ का ‘तुम्हे देखती हूं, तो लगता है ऐसे’ हो या ‘ख़ानदान’ का ‘ये मुलाक़ात इक बहाना है’ हो उनके गीतों में शायरी का आला मेअयार हमेशा बना रहा. उन्होंने उसे कभी गिरने नहीं दिया. इसी वजह से जब फ़िल्मी गीतों में हल्कापन घुस आया तो वो अप्रासंगिक हो गए. ‘तेरी गली की तरफ’ के नाम से उनकी ग़ज़लों का एक संग्रह भी छपा था. एक बेहद उम्दा ग़ज़ल आप सब की नज़र उसी संग्रह से. मेरी तलाश छोड़ दे तू मुझको पा चुका मैं सोच की हदों से बहुत दूर जा चुका लोगो! डराना छोड़ दो तुम वक्त़ से मुझे यह वक्त़ बार बार मुझे आज़मा चुका दुनिया चली है कैसे तेरे साथ तू बता ऐ दोस्त मैं तो अपनी कहानी सुना चुका बदलेगा अनक़रीब यह ढाँचा समाज का इस बात पर मैं दोस्तो ईमान ला चुका अब तुम मेरे ख़याल की परवाज़ देख़ना मैं इक ग़ज़ल को ज़िंदगी अपनी बना चुका ऐ सोने वालो नींद की चादर उतार दो किरनों के हाथ सुब्ह का पैगाम आ चुका पानी से ‘नक्श’ कब हुई रौशन यह ज़िंदगी  मैं अपने आंसुओं के दिये भी जला चुका नक्श साहब साफ़-सुथरे, जज़्बाती गीतों के लिए हमेशा याद किए जाएंगे. एक दुर्लभ वीडियो देखिए जो इत्तेफ़ाक से हाथ लगा है. ऊपर लिखी नक्श लायलपुरी की ग़ज़ल सोनू निगम गा रहे हैं और फिल्माया गया है अपने प्यारे इरफ़ान ख़ान साहब पर. मिस नहीं किया जाना चाहिए.

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