"रात में अचानक 12:15 से 12:30 के बीच उनको सांस लेने में तकलीफ होने लगी. हम उन्हें अस्पताल ले गए, 10 मिनट बाद ही उन्होंने प्राण छोड़ दिए."
"महान कथक नर्तक पंडित बिरजू महाराज जी के निधन की खबर से बहुत ज्यादा दुखी हूं. आज हमने कला के क्षेत्र का एक अनोखा संस्थान खो दिया. उन्होंने अपनी प्रतिभा से कई पीढ़ियों को प्रभावित किया है."
"आज भारतीय संगीत की लय थम गई. सुर मौन हो गए. भाव शून्य हो गए. कत्थक के सरताज पंडित बिरजू महाराज जी नही रहे. लखनऊ की ड्योढ़ी आज सूनी हो गई. कालिकाबिंदादीन जी की गौरवशाली परंपरा की सुगंध विश्व भर में प्रसरित करने वाले महाराज जी अनंत में विलीन हो गए.आह! अपूर्णीय क्षति है यह. ॐ शांति"
राजनेताओं ने भी किया शोक प्रकट पंडित बिरजू महाराज की मृत्यु पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के सीएम योगी ने भी शोक व्यक्त किया.
पीएम मोदी ने ट्वीट कर शोकाकुल परिवार को सांत्वना देते हुए लिखा,
"भारतीय नृत्य कला को विश्वभर में विशिष्ट पहचान दिलाने वाले पंडित बिरजू महाराज जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। उनका जाना संपूर्ण कला जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। शोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिजनों और प्रशंसकों के साथ हैं। ओम शांति!"
"कथक सम्राट, पद्म विभूषण पंडित बिरजू महाराज जी का निधन अत्यंत दुःखद है। उनका जाना कला जगत की अपूरणीय क्षति है। प्रभु श्री राम से प्रार्थना है कि दिवंगत पुण्यात्मा को अपने श्री चरणों में स्थान व शोकाकुल परिजनों को यह दुःख सहने की शक्ति प्रदान करें। ॐ शांति!"
कौन थे पंडित बिरजू महाराज पंडित बिरजू महाराज का जन्म 4 फरवरी 1938 को हुआ था. उनका असली नाम बृजमोहन मिश्रा था. वह कथक नर्तकों के महाराज परिवार के वंशज थे. बिरजू महाराज के दो चाचा, शंभू महाराज और लच्छू महाराज और उनके पिता अचन महाराज भी कथक नर्तक थे. उनके चाचा ने ही उन्हें कथक सिखाया था. जब वे 9 साल के थे, उनके पिता अचन महाराज की मृत्यु हो गई थी. अचन महाराज कथक नर्तक के साथ- साथ मशहूर गायक भी थे. पद्म विभूषण से सम्मानित कथक नृत्य में उनके योगदान के लिए बिरजू महाराज को कई अवार्ड्स से सम्मानित भी किया गया है. 1964 में उनको संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड से सम्मानित किया गया. 1986 में भारत सरकर ने बिरजू महाराज को पद्म विभूषण से सम्मानित किया था. इसके बाद कालिदास सम्मान, लता मंगेशकर पुरस्कार, भरत मुनि अवॉर्ड और राजीव गांधी राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार समेत दर्जन भर से ज्यादा पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है. 13 साल की उम्र से ही उन्होंने दिल्ली के संगीत भारती में कथक नृत्य सिखाना शुरू कर दिया था. इसके बाद उन्होंने दिल्ली में भारतीय कला केंद्र और कथक केंद्र में पढ़ाया, यहां से वो 1998 में रिटायर हुए. इसके बाद उन्होंने दिल्ली में कलाश्रम नाम से अपना नृत्य विद्यालय खोला.
सत्यजीत रे की 'शतरंज के खिलाड़ी' में दो डांस कोरियोग्राफ किए थे. साल 2002 में फिल्म देवदास के गाने 'काहे छेड़ मोहे' को भी कोरियोग्राफ किया था. इसके अलावा उन्होनें बॉलीवुड की कई फिल्मों में भी डांस कोरियोग्राफ किया है जिसमें उमराव जान, डेढ इश्किया, बाजीराव मस्तानी जैसी फिल्में शामिल हैं. वहीं 2012 में विश्वरूपम फिल्म में डांस कोरियोग्राफी के लिए उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.