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चुनाव आयोग के वकील ने क्या कहते हुए इस्तीफ़ा दे दिया है?

सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील का इस्तीफा.

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चुनाव आयोग के पैनल के वकील मोहित डी राम ने इस्तीफा दे दिया है. फोटो - IndiaToday
सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग का प्रतिनिधित्व कर रहे पैनल के वकील मोहित डी राम ने इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने कहा है कि चुनाव आयोग के कामकाज और मेरे मूल्यों के बीच तालमेल नहीं बैठ पा रहा है लिहाजा मैं इस्तीफा दे रहा हूं. मोहित डी राम, साल 2013 से सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग के लिए वकील के तौर पर काम कर रहे थे. मोहित ने अपने इस्तीफे में लिखा,
"ये मेरे लिए सम्मान की बात है कि मैंने चुनाव आयोग का प्रतिनिधित्व किया. मैंने आयोग के स्थाई कानूनी सलाहकार के रूप में काम किया, वहां से आयोग के पैनल का सदस्य बना. लेकिन अब मेरे मूल्य, चुनाव आयोग के मौजूदा कामकाज के अनुरूप नहीं हैं इसलिए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष, इसके पैनल के अधिवक्ता की जिम्मेदारियों से अपने आपको अलग कर रहा हूं. मैं सभी फाइलों, NOC और अन्य दस्तावेजों का सुचारू हस्तांतरण करता हूं."
theprint.in की खबर के मुताबिक उन्होंने विधि आयोग के निदेशक को चिट्ठी लिखकर अपने फैसले के बारे में जानकारी दी. आयोग के एक प्रवक्ता ने कहा कि साल 2019 के बाद से मोहित डी राम को चुनाव आयोग का कोई केस नहीं दिया गया था. मोहित ने कहा कि उन्होंने जो बातें चिट्ठी में लिखी हैं, उसके अलावा कहने के लिए उनके पास कुछ नहीं है. मद्रास हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी समाचार एजेंसी PTI की खबर के मुताबिक वकील मोहित डी राम का इस्तीफा ऐसे वक्त आया है जब मद्रास हाईकोर्ट की टिप्पणियों के खिलाफ चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाया खटखटाया था. चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका दाखिल की थी उसमें मद्रास हाईकोर्ट की टिप्पणियों को हटाने की मांग की थी. हाईकोर्ट ने कोरोना वायरस की दूसरी लहर के लिए चुनाव आयोग को जिम्मेदार ठहराया था. HC ने कहा था कि पहले तो राज्यों में विधानसभा चुनाव कराए गए और फिर कोरोना गाइडलाइन्स का पालन भी नहीं कराया गया. इसके लिए चुनाव आयोग पर 'शायद हत्या का मामला चलाया जाना चाहिए'. सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग की दोनों मांगों को खारिज कर दिया. आयोग की पहली मांग ये थी कि मद्रार HC की टिप्पणियों को हटाया जाए और दूसरी ये कि इन टिप्पणियों को मीडिया में प्रसारित करने से रोका जाए. SC ने हाईकोर्ट की टिप्पणियों को नहीं हटाया और मीडिया में प्रकाशन पर भी रोक लगाने से इंकार कर दिया.

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