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धरती अब पहले से तेज़ घूम रही है! वैज्ञानिक बोले-"बदलना पड़ेगा घड़ियों का वक्त"

Earth Rotation Faster: यह इसलिए भी अहम है क्योंकि अपने इतिहास में धरती की स्पीड कम ही होती आई है. लेकिन पहली बार है जब यह बढ़ने जा रही है. डायनासोर के युग के दौरान एक दिन सिर्फ़ 23 घंटे का होता था. ब्रॉन्ज युग तक वे लंबे हो गए थे.

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रफ़्तार में बदलाव के सही कारण फिलहाल साफ़ नहीं. (फोटो- इंडिया टुडे/ISRO)

“अब हम वो धरती नहीं रहीं जो लिबिर-लिबिर करते थे…” इन दिनों धरती मन ही मन यह बात कह रही है. दरअसल हमारी धरती की स्पीड बढ़ गई है. वह पहले से ज़्यादा तेज़ घूम रही है. घबराइए मत! धरती की स्पीड बढ़ने से आपको चक्कर नहीं आएंगे क्योंकि स्पीड सिर्फ़ कुछ मिलीसेकंड ही बढ़ने जा रही है. हमें पता भी नहीं चलेगा कि वाकई में स्पीड बढ़ी भी है या नहीं. यह कारनामा इस साल की कुछ ख़ास तारीख़ों पर होगा. धरती की स्पीड बढ़ने पर वैज्ञानिकों का दिल ‘हेरा-फेरी’ वाले बाबू भइया की तरह धक-धक कर रेला है. 

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क्यों ख़ास है धरती की स्पीड बढ़ना?

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, धरती की स्पीड बढ़ने से दिन छोटे हो जाएंगे. लेकिन इतना असर नहीं पड़ेगा कि हमें-आपको इसका पता चले. वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर लंबे वक़्त तक ऐसा जारी रहा तो 2029 तक समय की गणना में बदलाव हो सकता है. यह इसलिए भी अहम है क्योंकि अपने इतिहास में धरती की स्पीड कम ही होती आई है. लेकिन पहली बार है जब यह बढ़ने जा रही है.

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ऐतिहासिक रूप से पृथ्वी का घूमना धीरे-धीरे धीमा हो गया है. डायनासोर के युग के दौरान एक दिन सिर्फ़ 23 घंटे का होता था. ब्रॉन्ज युग तक वे लंबे हो गए थे. लेकिन आज की तुलना में अभी भी लगभग आधा सेकंड छोटे थे. भविष्य के लिहाज से पृथ्वी पर 25 घंटे का दिन हो सकता है. लेकिन वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इसमें 200 मिलियन साल और लगेंगे.

2025 में कब सबसे छोटे होंगे दिन?

2025 में इन तीन तारीखों को धरती सबसे तेज़ घूमेगी:

- 9 जुलाई 2025

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- 22 जुलाई 2025

- 5 अगस्त 2025

5 अगस्त 2025 का दिन 1.51 मिलीसेकंड छोटा होगा. यह बदलाव बहुत छोटा है. लेकिन वैज्ञानिकों के लिए काफी अहम है.

लीप सेकंड का रोल?

हम जानते हैं कि अब तक जब धरती धीरे घूमती थी तो वैज्ञानिक ‘लीप सेकंड’ जोड़ते थे ताकि परमाणु घड़ी और पृथ्वी की वास्तविक घुमाव की स्पीड में तालमेल बना रहे. लेकिन अब अगर पृथ्वी ऐसे ही तेज़ घूमती रही तो 2029 में पहली बार एक सेकंड घटाना पड़ सकता है. यह इतिहास में पहली बार होगा जब लीप सेकंड जोड़ा नहीं जाएगा बल्कि हटाया जाएगा.

गौरतलब है कि धरती को एक चक्कर पूरा करने में लगभग 86,400 सेकंड लगते हैं यानी पूरा एक दिन. लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता. गुरुत्वाकर्षण बल जैसी कई अलग-अलग प्राकृतिक घटनाओं की वजह से धरती की गति में थोड़े बदलाव होते रहते हैं.

क्यों बढ़ी पृथ्वी की रफ्तार?

इस सवाल का जवाब अभी पूरी तरह साफ नहीं है. लेकिन वैज्ञानिकों के पास कुछ थ्योरी हैं. उनका कहना है इन संभावित कारणों की वजह से धरती की रफ़्तार में बदलाव आ रहा है:

- ज़मीन के अंदर के कोर में बदलाव

- भूकंपीय गतिविधियां

- ग्लेशियरों के पिघलने से ज़मीन का ऊपर उठना

- महासागरों की धाराओं और वायुमंडलीय दबाव में बदलाव

मॉस्को स्टेट यूनिवर्सिटी के एक शोधकर्ता लियोनिद ज़ोटोव का कहना है कि किसी ने भी इसकी उम्मीद नहीं की थी. अपने एक लेख में उन्होंने कहा कि कोई भी मौजूदा कारण इस घटना को पूरी तरह से साफ नहीं करता है. लेकिन महासागरों और वायुमंडल में बदलाव धरती के घूमने में अंतर पैदा कर सकता है. लेकिन सिर्फ़ ये ही पर्याप्त सबूत नहीं हैं. कुछ शोधकर्ताओं का मानना ​​​​है कि धरती के पिघले हुए बाहरी कोर के भीतर की हलचल भी स्पीड पर असर डाल सकती है.

हमारी ज़िंदगी पर असर?

वैज्ञानिकों का मानना है कि यह पूरी तरह तकनीकी प्रक्रिया है. न तो हमारे मोबाइल फोन पर असर होगा, न घड़ियों पर. न ही इंटरनेट या सैटलाइट सिस्टम पर कोई रुकावट आएगी. लेकिन यह ज़रूर याद रखने वाली बात है कि समय, जिसे हम सबसे स्थिर मानते हैं, वह भी पृथ्वी के मूवमेंट से प्रभावित होता है.

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