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जिस किसान को कृषि कानून से फायदा मिला, वो भी किसान आंदोलन के सपोर्ट में आया

'मन की बात' कार्यक्रम में पीएम ने ज़िक्र किया था.

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धुले के किसान जितेंद्र भोई, 'मन की बात' में पीएम मोदी ने इनकी कहानी बताई थी. (फोटो- 'मन की बात' का स्क्रीनशॉट)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रेडियो कार्यक्रम है 'मन की बात'. इसके जरिए वो हर महीने देश की जनता से अपने मन की बात करते हैं. 29 नवंबर के मन की बात में उन्होंने महाराष्ट्र के धुले के एक किसान का ज़िक्र किया था. किसान का नाम है जितेंद्र भोई. पीएम ने शो में कहा था कि जितेंद्र ने नए कृषि कानूनों का इस्तेमाल करके अपनी फसल की बाकी रकम हासिल की. उन्हें नए कानूनों का सही फायदा मिला.

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अब यही किसान, इन्हीं कृषि कानूनों को लेकर हो रहे विरोध प्रदर्शन के सपोर्ट में आए हैं. 'इंडिया टुडे' के पंकज खेलकर की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने कहा कि नए कानूनों के तहत SDM के पास शिकायत करके उन्हें बकाया रकम भले ही मिल गई, लेकिन उन्हें भारी नुकसान भी झेलना पड़ा. इसी वजह से अब वो किसान आंदोलन के सपोर्ट में आ गए हैं.

क्या कहते हैं जितेंद्र?

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जितेंद्र का कहना है कि वो पीएम मोदी से ये अपील करते हैं कि नए कानूनों में MSP (मिनिमम सपोर्ट प्राइस) के प्रावधानों को और क्लियर किया जाए. उनका कहना है,

"मुद्दा ये था कि मैंने व्यापारियों पर भरोसा किया और अपनी मक्के की फसल उन्हें बेच दी. लेकिन उनके इरादे सही नहीं थे. और पैसे को लेकर उन्होंने चीट किया. फिर मुझे पता चला कि नए कृषि कानूनों के प्रावधानों के तहत मुझे व्यापारियों से मेरे पैसे मिल सकते हैं. फिर SDM ऑफिस के ज़रिए मैंने शिकायत दर्ज कराई. केस दर्ज हुआ. SDM ने उन्हें (व्यापारियों) को नोटिस भेजा. उन्हें कॉल किया गया और तुरंत बुलाया गया. उनसे पूछा गया कि वो मेरे पैसे क्यों नहीं दे रहे? उसके बाद उन्होंने वादा किया कि 15-20 दिनों के अंदर वो पैसे दे देंगे. उसके बाद पैसे दिए गए. मैं सभी किसानों को बताना चाहूंगा कि जिनके भी पैसे जब्त हैं, व्यापारी नहीं दे रहे, वो नए कृषि कानूनों के प्रावधानों का इस्तेमाल कर सकते हैं."

फिर जितेंद्र किस मुद्दे पर किसान आंदोलन के साथ?

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हालांकि जितेंद्र को नए कृषि कानूनों से फायदा मिला, लेकिन वो इसके कुछ प्रावधानों के सपोर्ट में नहीं हैं. वो कहते हैं,

"मैं ये कहना चाहता हूं कि नए कानून के प्रावधानों से मुझे व्यापारी से पैसे वापस तो मिल गए, लेकिन अब यहां मुद्दा आता है MSP का. अगर मेरी उपज MSP के तहत बेची जाती तो मुझे फायदा होता. मक्का का MSP रेट 1,850 रुपए प्रति क्विंटल था, लेकिन मैंने उसे 1,240 रुपए प्रति क्विंटल पर बेचा. मुझे प्रति क्विंटल करीब 600 रुपए का नुकसान हुआ. इसे देखते हुए लगता है कि नुकसान केवल किसानों का ही है. इसलिए, मैं ये कहना चाहता हूं कि नए कृषि कानूनों में MSP को लेकर भी प्रावधान होने चाहिए."


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जितेंद्र भोई अब किसान आंदोलन के सपोर्ट में हैं. (फोटो- पंकज खेलकर)

क्या बताया था पीएम मोदी ने 'मन की बात' में?

धुले ज़िले के भताने गांव में रहते हैं जितेंद्र. उन्होंने मक्के की खेती की थी. अपनी फसल एक व्यापारी को कीमत तय करके बेच दी. लेकिन पूरे पैसे नहीं मिले. फसल का दाम तय हुआ था 3.3 लाख रुपए. एडवांस में मिले थे 25 हज़ार रुपए. उन्हें वादा किया गया कि 15 दिनों के अंदर पूरे पैसे मिल जाएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. व्यापारी पैसे नहीं दे रहे थे, इसके बाद जितेंद्र ने SDM के पास शिकायत दर्ज कराई.

सितंबर में पास हुए कृषि कानून के मुताबिक किसान को उनकी फसल की रकम तीन दिनों के अंदर मिलनी चाहिए. अगर किसान को पैसे नहीं मिलते हैं, तो वो व्यापारी के खिलाफ SDM के पास शिकायत दर्ज करा सकता है. और फिर SDM को एक महीने के अंदर मामला हल करना होता है.


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