दिल्ली की एक अदालत ने 2020 में हुए दंगों के मामले में 10 लोगों को बरी कर दिया है. इन लोगों पर ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से इकट्ठा होने और आगज़नी करने सहित कई गंभीर आरोप लगाए गए थे. कोर्ट ने कहा कि इस केस में पुलिस वालों ने जो गवाही दी, उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता.
2020 दिल्ली दंगे: कोर्ट ने इन 10 आरोपियों को बरी किया, पुलिस की गवाही पर सवाल
इन दसों पर आरोप था कि दंगों के दौरान इन लोगों ने पहले बृजपुरी के चमन पार्क इलाक़े में एक इमारत के ग्राउंड फ्लोर की एक दुकान में तोड़फोड़-आगजनी की, उसके बाद पहली मंज़िल पर डकैती डाल दी.
न्यूज एजेंसी इनपुट्स के मुताबिक़, गोकलपुरी पुलिस स्टेशन ने आगज़नी और घर में घुसकर चोरी करने समेत कई अपराधों के लिए इन 10 लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया था. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला इस मामले की सुनवाई कर रहे थे.
दिल्ली पुलिस की तरफ़ से अदालत को बताया गया कि फ़रवरी, 2020 के सांप्रदायिक दंगों के दौरान, ये 10 लोग एक दंगाई भीड़ का हिस्सा थे और इन्होंने पहले बृजपुरी के चमन पार्क इलाक़े में एक इमारत के ग्राउंड फ्लोर की एक दुकान में तोड़फोड़ और आगज़नी की. उसके बाद पहली मंज़िल पर डकैती डाली.
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सबूतों पर ग़ौर करते हुए अदालत ने कहा कि मामले में दो चश्मदीदों ने विरोधाभासी बयान दिए हैं. हेड कॉन्स्टेबल संजय ने अपनी गवाही में कहा कि वो कॉन्स्टेबल विपिन और सहायक उपनिरीक्षक हरि बाबू के साथ ड्यूटी पर थे. लेकिन अदालत को पता चला कि उस दिन के ड्यूटी रोस्टर के अनुसार, विपिन और बाबू को तो चमन पार्क में ड्यूटी दी गई थी, जबकि संजय की ड्यूटी जोहरीपुर में लगी थी. इससे उनकी विश्वसनीयता कमज़ोर हुई. इस बात के भी कोई सबूत नहीं मिले कि संजय को अलग से ड्यूटी बदलने के कोई निर्देश दिए गए हो.
अदालत ने तीसरे जांच अधिकारी इंस्पेक्टर मनोज के बयान में भी विसंगति नोट की. उनके अनुसार, 8 अप्रैल, 2020 को केस फाइल पढ़ने के बाद उन्हें पता चला कि संजय, विपिन और बाबू बृजपुरी इलाक़े में ड्यूटी पर थे. लेकिन सबूत बताते हैं कि 7 अप्रैल को जब मनोज को फ़ाइल दी गई थी, तब उसमें ड्यूटी रोस्टर ही नहीं था.
इसके बाद जज ने पूछा,
सवाल ये है कि अगर ड्यूटी रोस्टर फ़ाइल में नहीं था, तो फ़ाइल के विश्लेषण पर उन्हें विपिन, संजय और बाबू की ड्यूटी के बारे में कैसे पता चला? इस वजह के दावे में बनावटीपन दिखता है.
मैं समझ सकता हूं कि दंगों और कोविड-19 जैसी समस्याओं के चलते जांच में देरी हो सकती है. मगर दावे का बनावटीपन एक अलग चीज़ है. इससे इनवेस्टिगेटिंग अफ़सर और पुलिस चश्मदीदों के दावे की वास्तविकता पर संदेह पैदा होता है.
इसी आधार पर जज पुलस्त्य प्रमाचला ने 10 आरोपियों - मोहम्मद शाहनवाज़, मोहम्मद शोएब, मोहम्मद फ़ैसल, मोहम्मद ताहिर, शाहरुख़, राशिद, आज़ाद, अशरफ़ अली, परवेज़ और राशिद - को सभी आरोपों से बरी कर दिया.
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