लॉकडाउन शुरू हुआ. उसके साथ ही शुरू हुआ पीएम केयर्स फंड. कई सेलेब्स ने इसमें पैसे डाले. प्राइवेट कंपनियों ने पैसे डाले. आम जनता ने पैसे डाले. फिर कर्मचारियों की सैलरी काटकर सरकार और कंपनियों ने इस फंड में डाले. इसी को लेकर एक प्रोफेसर ने कोर्ट में याचिका लगाई. कहा कि बिना नोटिस के सरकारी कर्मचारियों की सैलरी काटना अलोकतांत्रिक है. दिल्ली हाईकोर्ट ने ये याचिका खारिज कर दी.
एक दिन की सैलरी कटने का विरोध किया तो कोर्ट ने DU प्रोफ़ेसर की क्लास लगा दी
एक दिन की वेतन कटौती के ख़िलाफ़ याचिका रद्द करते हुए और भी बहुत कुछ कहा.

# क्या कहा अदालत ने?
याचिका को खारिज़ करते हुए जस्टिस मोहम्मद और जस्टिस संजीव नरूला की डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ता से सवाल पूछा कि 'क्या वो पत्थरदिल व्यक्ति नहीं होगा जो इस महामारी में अपने एक दिन के वेतन में कटौती को अदालत में चुनौती देगा?'
दोनों जजों की बेंच ने ये भी कहा,
महामारी की गंभीरता देखते हुए याचिकाकर्ता की एक दिन की सैलरी जो कि 7,500 रुपए है, की कटौती करना किसी भी तरह से जनहित के ख़िलाफ़ या कठोर कदम नहीं माना जा सकता.
याचिकाकर्ता ने अपनी अपील के पक्ष में भी कई तर्क दिए. यूनिवर्सिटी प्रशासन ने बिना कोई आधिकारिक सूचना या नोटिस दिए ही महामारी में योगदान के तौर पर उनकी एक दिन की सैलेरी ले ली. ये कटौती करवाने के लिए सारा स्टाफ़ तैयार नहीं था. लेकिन उन लोगों के भी पैसे पीएम केयर फंड में लिए गए जो कटौती करवाने के लिए इच्छुक ही नहीं थे.
याचिकाकर्ता ने इस बात पर ज़ोर दिया,
ये आर्थिक सहयोग 'अपनी इच्छा से' करना था लेकिन जब आपने बिना मर्ज़ी के ही पैसे काट लिए तो आर्थिक सहयोग इच्छा से कैसे हुआ?
उधर दिल्ली यूनिवर्सिटी ने अदालत में बताया कि COVID-19 महामारी के दौरान आर्थिक सहयोग देने की अपील UGC के चेयरमैन और यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार की तरफ़ से जारी की गई थी, जबकि 2 अप्रैल 2020 अंतिम तारीख़ थी जब किसी भी तरह की आपत्ति उठाई जा सकती थी.
# कोर्ट ने नहीं माना जनहित याचिका
दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिका को जनहित याचिका मानने से इनकार कर दिया. कहा,
इस याचिका को जनहित याचिका नहीं माना जाएगा. क्योंकि दिल्ली यूनिवर्सिटी के कर्मचारी न तो आर्थिक रूप से कमज़ोर हैं और न ही इतने दबाव में हैं कि वो ख़ुद कोर्ट में सीधे अपील नहीं कर सकते थे.
कोर्ट ने रिकॉर्ड में ये दर्ज कराया कि याचिकाकर्ता ने अंतिम तारीख़ से पहले कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई. इस पर कोर्ट ने कहा -
अदालत ये तथ्य मानती है कि हम इस समय 'इंटरनेट काल' में जी रहे हैं. हर कोई सोशल मीडिया पर ऐक्टिव है. प्रथम दृष्टया ये मुमकिन नहीं लगता कि याचिकाकर्ता को यूनिवर्सिटी प्रशासन या ईमेल या फोन या कम्यूटर से इस बात की जानकारी नहीं मिली कि UGC के चेयरमैन और यूनिवर्सिटी रजिस्ट्रार ने आर्थिक सहयोग की अपील जारी की थी जिसमें आपत्ति दर्ज करने की अंतिम तारीख़ भी दी गई थी.
फ़िलहाल दिल्ली हाईकोर्ट ने इस याचिका को व्यक्तिगत माना है. और याचिका खारिज़ भी कर दी है.
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