IVF प्रोसीजर के जरिए एक महिला ने जुड़वा बच्चों को जन्म दिया. 15 साल बीतने के बाद जब महिला और उसके पति ने बच्चों का DNA प्रोफाइल टेस्ट करवाया तो पता चला कि बच्चे किसी और के हैं. जांच में पता चला कि हॉस्पिटल में IVF प्रोसीजर के दौरान डॉक्टरों ने पति के बजाय किसी दूसरे व्यक्ति का स्पर्म इस्तेमाल किया था. अब इस करतूत के लिए डॉक्टरों और अस्पताल पर 1 करोड़ 30 लाख का जुर्माना लगा है.
जन्म के 15 साल बाद पता चला जुड़वा बच्चों का पिता कोई और, अस्पताल पर तगड़ा जुर्माना लगा है
IVF प्रोसीजर के दौरान डॉक्टरों ने पति के बजाय किसी दूसरे व्यक्ति का स्पर्म इस्तेमाल किया था.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक संशय होने पर दंपति ने साल 2008-2009 में बच्चों का DNA टेस्ट करवाया था. तब ये भी पता चला कि जुड़वा बच्चों में से एक का ब्लड ग्रुप AB पॉजिटिव था, जबकि माता का ब्लड ग्रुप B पॉजिटिव और पिता का ब्लड ग्रुप O नेगेटिव था. दंपत्ति DNA टेस्ट का रिजल्ट देखकर चौंक गए. जांच में पता चला कि महिला का पति उसके जुड़वा बच्चों का जैविक पिता नहीं है. जबकि महिला के मुताबिक IVF प्रोसीजर में उसके पति ने अपना सीमेन दिया था लेकिन डॉक्टर की लापरवाही के कारण सीमेन सैंपल मिक्स-अप हो गया. ये सब दिल्ली के भाटिया ग्लोबल हॉस्पिटल एंड एंडोसर्जरी इंस्टीट्यूट में हुआ.
दंपति इस मामले को नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट रिड्रेसल कमीशन (एनसीडीआरसी) तक ले गए. बच्चों के पिता ने हॉस्पिटल की ओर से सर्विस में कमी के लिए के लिए 2 करोड़ रुपये का मुआवजा मांगा था. उनका कहना था कि हॉस्पिटल की करतूत से उन्हें दुख हुआ और परिवार में कलह भी. किसी और के जेनेटिक मटेरियल से कोई बीमारी भी हो सकती थी.
एनसीडीआरसी के डॉ. एसएम कांतिकर ने कहा,
जुर्माना नहीं दिया, तो ब्याज भी देना पड़ेगा.“हमारे देश में कई जगह अवैध एआरटी (आर्टिफिशियल रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॅाजी) केंद्र हैं. जो बिना लाइसेंस के काम करते हैं. इनमें निर्दोष इनफर्टाइल दंपतियों का गलत इलाज हो रहा है. ऐसे एआरटी केंद्रों की जांच होनी चाहिए. एआरटी केंद्रों में काम करने वाले विशेषज्ञ को ओव्यूलेशन की फिजियोलॉजी के साथ-साथ प्रजनन और स्त्री रोग विज्ञान के बारे में पता होना चाहिए. अगर ऐसा नहीं हुआ तो ऐसी घटनाएं आगे भी आएंगी. डॉक्टरों को यह समझने की जरूरत हैं कि इनफर्टिलिटी के मरीज भावनात्मक और आर्थिक रूप से तनावग्रस्त होते हैं. इस शिकायत में चिकित्सा, नैतिकता, अनुचित प्रथाओं और भ्रामक विज्ञापन जैसे मुद्दे शामिल हैं.”
- उचित और पर्याप्त मुआवजे पर आए सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों को आधार बनाते हुए आयोग ने भाटिया ग्लोबल हॉस्पिटल एंड एंडोसर्जरी इंस्टीट्यूट, इसके अध्यक्ष और निदेशक को संयुक्त रूप से मुआवजे के रूप में 1 करोड़ रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया. साथ ही उन्हें एनसीडीआरसी के उपभोक्ता कानूनी सहायता वाले फंड (अकाउंट) में 20 लाख रुपये जमा करने के लिए भी कहा गया है.
- इसके अलावा इस मामले के तीन अन्य आरोपियों, जिनमें अस्पताल के डॉक्टर भी शामिल थे, को निर्देश दिया गया कि हर कोई 10 लाख रुपये का भुगतान शिकायतकर्ताओं को करें. आयोग ने कहा कि अगर छह हफ्ते के भीतर मुआवजे का भुगतान नहीं किया गया तो हर साल 8% ब्याज का जुर्माना लगाया जाएगा.
- साथ ही कहा कि मुआवजे के रूप में इकट्ठे किए गए 1.3 करोड़ रुपये जुड़वा बच्चों के लिए फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) के रूप में जमा किए जाएंगे, जिसमें दोनों 50% की हिस्सेदारी के हकदार होंगे. अदालत ने कहा, माता-पिता को बच्चों की देखभाल और कल्याण के लिए ब्याज की रकम लेने की अनुमति है.
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