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नौ महीने से सियाचिन के पास चुपचाप सड़क बना रहा था चीन, सेटेलाइट तस्वीरें देखी तो पता चला

शक्सगाम घाटी में बन रही ये सड़क चीन के झिंजियांग में राजमार्ग G219 से निकलती दिख रही है. फिर एक जगह पर पहाड़ों में जाकर ये गायब हो जाती है.

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यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी की सैटेलाइट तस्वीरें (फोटो- इंडिया टुडे)
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सुभम तिवारी

चीन ने अवैध रूप से कब्जे वाले कश्मीर में निर्माण शुरू कर दिया है. खबर है कि चीन सियाचिन ग्लेशियर के पास एक सड़क बना रहा है (China Road in Kashmir). इस बात का खुलासा यूरोपियन स्पेस एजेंसी की सेटेलाइट तस्वीरों में हुआ है. तस्वीरों को इंडिया टुडे की टीम ने रिव्यू किया और पता चला कि सड़क का काम पिछले साल जून या अगस्त से चल रहा है.

रिपोर्ट के मुताबिक, जिस इलाके में सड़क निर्माण हो रहा है कि वो पहले पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर PoK का हिस्सा हुआ करता था. 1963 में ये हिस्सा चीन को सौंप दिया गया था.

शक्सगाम घाटी में बन रही ये सड़क चीन के झिंजियांग में राजमार्ग G219 से निकलती दिख रही है और एक जगह पर पहाड़ों में गायब हो जाती है. भारत के सबसे उत्तरी बिंदु इंदिरा कोल से लगभग 50 किमी उत्तर में. तस्वीरों को इंडिया टुडे की ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस टीम (OSINT) ने रिव्यू किया है.

कारगिल, सियाचिन ग्लेशियर और पूर्वी लद्दाख की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार भारतीय सेना के फायर एंड फ्यूरी कोर के पूर्व कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल राकेश शर्मा का कहना है कि ये सड़क पूरी तरह से अवैध है और इस पर भारत को चीन के साथ अपना राजनयिक विरोध दर्ज कराना चाहिए.

इस सड़क निर्माण को सबसे पहले भारत-तिब्बत सीमा के एक ऑबजर्वर ने हाइलाइट किया था. 'नेचर देसाई' नाम के अकाउंट से 21 अप्रैल को जारी पोस्ट में लिखा था,

एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में चीन की सड़क ने अघिल दर्रे (4805 मीटर) पर सीमा को तोड़ दिया है और कश्मीर की निचली शक्सगाम घाटी में घुस गई है. सड़क का सिरा अब सियाचिन से 30 मील से भी कम दूरी पर है.

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रिपोर्ट के मुताबिक, ये सड़क ट्रांस-काराकोरम ट्रैक्ट में बनी है. ये इलाका ऐतिहासिक रूप से कश्मीर का हिस्सा है और भारत इस पर दावा करता है. अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद केंद्र सरकार ने जो नया ऑफिशियल मैप पब्लिश किया था उसमें भी इस इलाके को भारतीय का हिस्सा दिखाया गया है. लगभग 5,300 वर्ग किलोमीटर में फैले इस मार्ग पर 1947 में पाकिस्तान ने कब्जा कर लिया था और 1963 में द्विपक्षीय सीमा समझौते के हिस्से के रूप में इसे चीन को सौंप दिया गया था. हालांकि इस समझौते को भारत ने कभी मान्यता नहीं दी.

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