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छत्तीसगढ़ सरकार का बड़ा फैसला, 2 लाख पेड़ों की कटाई वाले प्रोजेक्ट को खटाक से रोक दिया!

मंत्री और विधायक टीएस सिंहदेव ने सरकार से आग्रह किया था कि रोक दिया जाए हसदेव का प्रोजेक्ट.

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छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और हसदेव में खनन का विरोध करते लोग. (फोटो: पीटीआई/ट्विटर)

छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने बीते गुरुवार, 9 जून को हसदेव अरण्य जंगलों में खनन करने के अपने विवादित फैसले पर रोक लगा दी है. कुछ दिन पहले ही कैबिनेट मंत्री और स्थानीय विधायक टीएस सिंहदेव ने इस क्षेत्र में दौरा किया था और खनन का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों की मांगों को जायज ठहराया था. इसके बाद ही राज्य सरकार का ये मौखिक निर्णय आया है.

हसदेव अरण्य में फिलहाल तीन क्षेत्रों- परसा ईस्ट केंते बसान (पीईकेबी), परसा और केंते एक्सटेंशन- में खनन की मंजूरी दी गई थी. लेकिन स्थानीय आदिवासियों ने पर्यावरण पर व्यापक प्रभाव पड़ने का आरोप लगाते हुए इसके खिलाफ बड़ा विरोध प्रदर्शन खड़ा किया है. इस प्रोजेक्ट में दो लाख से अधिक पेड़ काटे जाएंगे.

अनिश्चितकाल के लिए लगी रोक

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक सरगुजा के कलेक्टर संजीव झा ने मीडिया को बताया कि खनन से जुड़ी 'सभी विभागीय या आधिकारिक प्रक्रियाओं को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया है'.

हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक सरगुजा कलेक्टर ने यह भी कहा, ‘पहले फेज के दौरान पीईकेबी (परसा ईस्ट एंड केते बासन कोयला खदान) में शुरु किए गए खनन कार्य चलते रहेंगे, क्योंकि यह 2013 से चल रहा है. हालांकि बाकी अन्य कार्यों पर रोक लगा दी गई है.’

छत्तीसगढ़ सरकार ने बीते 25 मार्च को पीईकेबी में खनन को मंजूरी प्रदान की थी. इसके तहत एक हजार 136 हेक्टेयर वन भूमि में फैले पेड़ों को काटा जाएगा. बीते छह अप्रैल को 41.53 हेक्टेयर क्षेत्र के पेड़ों को काटने का आदेश जारी किया गया था.

टीएस सिंह देव के दौरे के बाद हुआ निर्णय

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने हसदेव जंगलों के क्षेत्र में टीएस सिंह देव के दौरे के संबंध में कहा था, ‘यदि टीएस सिंह देव चाहते हैं कि पेड़ों को न काटा जाए, तो एक पत्ती को भी नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा'.

इसके जवाब में टीएस सिंह देव ने कहा था, 

'भूपेश भाई को हसदेव आंदोलन पर बयान के लिए आभार. लगभग 100 दिन से लगातार आंदोलनरत ग्रामीणों की बात पर उन्होंने उनके पक्ष में सहमति व्यक्त की है. प्रश्न आंदोलन कर रहे ग्रामीणजनों के व्यापक एवं संवैधानिक हित का है और उनके साथ खड़े होने पर भूपेश बघेल भाई को पुनः धन्यवाद.'

एक सरकारी अधिकारी ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा, 

‘चूंकि सिंहदेव इस क्षेत्र के प्रतिनिधि हैं. उनकी आवाज, जनता की आवाज है. इसलिए उनके विरोध के चलते, मुख्यमंत्री के निर्देश पर हमें इससे जुड़े सभी तरह के कार्यों को स्थगित करने का निर्णय लिया है.’

हालांकि प्रदर्शनकारियों का कहना है कि परियोजना पर रोक लगाना पर्याप्त नहीं है, इसे तत्काल कैंसिल किया जाना चाहिए. छत्तीसगढ़ बचाओं आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला ने कहा है, 

'सरकार इस प्रोजेक्ट को रद्द क्यों नहीं कर रही है, जब गांव वाले इसके विरोध में हैं. मेरी मांग है कि हसदेव अरण्य जंगल के सभी तीन प्रोजेक्ट को तत्काल रद्द किया जाना चहिए, स्थगित करना पर्याप्त नहीं है.'

क्यों महत्वपूर्ण है हसदेव जंगल

हसदेव अरण्य जंगल छत्तीसगढ़ के उत्तरी क्षेत्र में तीन जिलों- कोरबा, सरगुजा और सूरजपुर में फैला हुआ है. यहां कुल 23 कोयला खदाने हैं. साल 2009 में पर्यावरण मंत्रालय ने इस क्षेत्र को 'नो-गो' एरिया घोषित किया था. 'नो-गो' का मतलब है कि जंगल को किसी भी तरह से हानि पहुंचाने वाले कार्य यहां नहीं किए जाएंगे.

हालांकि बाद में मंत्रालय ने इसे बदल दिया और दलील दी कि इस पर अंतिम फैसला नहीं लिया गया था.

इस जंगल में बहुत अधिक संख्या और अलग-अलग प्रजातियों के हाथी पाए जाते हैं. यह देश का एक बेहद महत्वपूर्ण एलीफैंट कॉरिडोर भी है. यह देश के सबसे घने जंगलों में से भी एक है, जहां हाथी के अलावा कई अन्य तरह के जानवर रहते हैं.

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