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चंद्रशेखर आज़ाद की शादी में उनकी मां 'बन्ना' गाना चाहती थीं

'मैं सब जगह देख आई पर बिटवा चंद्रशेखर कहीं नहीं मिला.'

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आज़ाद और उनकी मां
चितरंजन कुमार
डॉ. चितरंजन कुमार

डॉक्टर चितरंजन कुमार ने अपनी एमए से पीएचडी तक की पढ़ाई जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली से की है.उन्होंने हिंदी के प्रख्यात आलोचक डॉ. नामवर सिंह के निर्देशन में अपना शोध कार्य पूरा किया है. फिलहाल वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं. ये कहानी उनकी फेसबुक पोस्ट से ली गई है.

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अभी शाम को कुछ दोस्तों के साथ इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में हूं. 23 जुलाई, 1906 को चंद्रशेखर आजाद का जन्म हुआ था. मैं अपने अमर सेनानी के जन्मदिन में शरीक होने अल्फ्रेड पार्क आया हूं. पार्क में घूमते-घूमते मुझे पंडित बनारसीदास चतुर्वेदी का आजाद की माता जी पर लिखा संस्मरण बेतरह याद आ रहा है. बनारसीदास चतुर्वेदी ने यह संस्मरण 1949 में लिखा था. देश आजाद होने के ठीक डेढ़ साल बाद. यह आज़ादी की देहरी पर बैठ कर लिखा गया कारुणिक संस्मरण है.


शहीद चंद्रशेखर आजाद को घेरकर खड़े अंग्रेज अफसर और सिपाही. (फोटो सोर्स-ट्विटर)
शहीद चंद्रशेखर आजाद को घेरकर खड़े अंग्रेज अफसर और सिपाही.

स्वाधीनता की लड़ाई के बाद जब श्रेय देने का वक्त आया तो न जाने हमने कितने नायकों को गुमनामी के अंधेरे में ढकेल दिया. ऐसे में भला उनके परिवार की सुध लेने वाला कौन था. फरवरी 1931 में चंद्रशेखर आजाद शहीद हुए. उनकी माताजी 1949 तक जीवित रही पर 'आजाद' हिंदुस्तान ने 'आजाद' की माता जी की जो घोर उपेक्षा की बनारसी दास चतुर्वेदी ने उसपर हृदय विदारक और मर्मस्पर्शी संस्मरण लिखा है. सन 1949 में बनारसीदास चतुर्वेदी अपने कुछ मित्रों के साथ चंद्रशेखर आजाद की माता जी का दर्शन करने उनके जन्मस्थान भाबरा, मध्य प्रदेश पहुंचे. वे लिखते हैं कि भाबरा ग्राम में एक कोने में फूस की झोपड़ी में माता जी अपने वैधव्य के दिन चुपचाप काट रही थी. 1949 में आजाद को शहीद हुए 18 वर्ष हो चुके थे और उनके पति पंडित सीताराम चतुर्वेदी भी 11 वर्ष पहले चल बसे. माता जी को पैसे का कोई सहारा नहीं था . गरीबी के कारण कई माह तक वे बासी खाना ही खाती रही. तंगहाली और गरीबी में भला कौन आजाद की माता जी को पूछता है. कोदो, कंदमूल और उबली दाल खाकर वे किसी तरह अपने जीवन का गुजारा कर रही थी.

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बनारसीदास चतुर्वेदी से बात करते हुए चंद्रशेखर आजाद की माता जी ने कहा,


"मैं सब जगह देख आई पर बिटवा चंद्रशेखर कहीं नहीं मिला. सतारा नदी के किनारे नहीं मिला. ओरछा में नहीं मिला. इलाहाबाद में त्रिवेणी पर नहीं मिला पर मेरे मन में आशा लगी रहती थी कि वह शरारत में कहीं छुप गया है और कहीं से निकलकर जरूर आ जाएगा. पर जब मैं अल्फ्रेड पार्क में गई और मुझे वह जगह बताई गई जहां मेरा बच्चा गोलियों से मारा गया तब मेरी आशा टूट गई कि अब बच्चा कहीं से निकल कर आएगा. बच्चा बचपन में बहुत सुंदर था. कहीं उसे किसी की नजर ना लग जाए इसलिए मैं उसे काजल लगाकर माथे पर डिठौना लगा दिया करती थी. बच्चा साबूदाना और दूध खा खाकर तंदुरुस्त हो गया था. पर हाय क्या मैंने उसे इतनी फिक्र से इसलिए पाला था कि वह किसी दिन गोली से मारा जाए."

इतना कहते-कहते माताजी का गला भर आता है और उनकी आंखों से झर झर आंसू बह निकलते हैं. उनकी बूढ़ी आंखों में मोतियाबिंद उतर आया है. बहुत कम दिखाई देता है. पर पास में इतने पैसे नहीं कि वे मोतिया का ईलाज करवा सकें.

Source : Pinterest

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बनारसीदास लिखते हैं 'आजाद की माता जी बहुत भोली हैं. वह कहती हैं कि उनके जीवन में दो ही इच्छाएं थी. एक तो वे चंद्रशेखर की शादी में 'बन्ना' गाना चाहती हैं और दूसरे द्वारिका जी का दर्शन करना चाहती थी पर उनकी दोनों ही साध अधूरी रह गई.

भाबरा से लौटते हुए बनारसीदास चतुर्वेदी लिखते हैं,


"इंडिया रिपब्लिक बनने जा रही है पर इंडियन रिपब्लिकन आर्मी के संचालक चंद्रशेखर आजाद को लोग भूल गए. आजाद हुए देश में माताजी की सुध लेने वाला कोई नहीं है. उनकी आंख में मोतियाबिंद उतर आया है और फैलता जा रहा है. उससे आंख सालभर चल जाए तो बहुत है. अभी-अभी संयुक्त प्रांत सरकार ने आजाद की माता जी को 25 रुपए महीने की पेंशन कर दी. पर दुर्भाग्य की बात है कि 18 वर्ष भूखों मरने के बाद जब पेंशन की बारी आई तो माता जी की भूख ही जाती रही और बूढ़े आदमी की भूख का घटना उसके अंतिम दिनों के आगमन की सूचना है."

लौटते वक्त मोटर की उड़ती धूल में उन्हें कुछ दृश्य दिखाई देते हैं. बालक आजाद साबूदाना खा रहा है. मां आज़ाद के बालों में कंघी करके उन्हें पढ़ने बनारस भेज रही है. कि वह बड़ा होकर घर से आज़ादी की लड़ाई में भाग गया. कि आजाद का काशी पहुंचना. कि जेल में बेंत की सजा खाना .और आजाद कि वह भीष्म प्रतिज्ञा की सरकार मुझे जिंदा ना पकड़ सकेगी...


देश की मिट्टी के लिए पल भर भी डरे बिना, अपनी देह को मिट्टी में मिला देने वाले महानायक के कदमों में कोटि कोटि प्रणाम.



वीडियो देखें : भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर आज़ाद के वायरल वीडियो का सच क्या है?

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