उन्हें जुलाई 2017 में ही रिटायर होना था. मगर फिर वो CBI के निदेशक बना दिए गए. नियमों के मुताबिक, इस पद पर दो साल का कार्यकाल तय है. इसी वजह से उनके कार्यकाल को एक्सटेंशन मिला था. इस्तीफ़े की अपनी चिट्ठी में उन्होंने लिखा है कि अब जबकि वो CBI डायरेक्टर ही नहीं रहे, तो फिर बचे कार्यकाल का क्या मतलब. इस मामले में एक तकनीकी ऐंगल भी है. 10 जनवरी को उन्हें CBI डायरेक्टर के पद से हटाने के बाद फायर सर्विसेज़, होमगार्ड्स और सिविल डिफेंस का डायरेक्टर जनरल बनाया गया था. इस पद के लिए अधिकतम उम्र सीमा 60 है, जबकि वर्मा 62 के हैं. तकनीकी तौर पर उन्हें ये पोस्ट दी ही नहीं जा सकती थी. फिर भी दी गई. क्यों दी गई, ये नहीं पता. क्या जान-बूझकर उन्हें ये पोस्टिंग दी गई, ताकि वो जॉइन न कर पाएं?
CBI में और भसड़ मची, कोर्ट ने नंबर 2 अस्थाना की गिरफ्तारी पर लगी रोक हटाई

ये है आलोक वर्मा की इस्तीफ़े वाली चिट्ठी.
इस्तीफ़े में क्या कुछ लिखा है आलोक वर्मा ने? आलोक वर्मा ने इस्तीफ़े की अपनी चिट्ठी में जो चार पॉइंट्स लिखे हैं. इनका मोटा-मोटी सार है-
1. CBI डायरेक्टर के पद से हटाने वाली सिलेक्शन कमिटी ने उन्हें (वर्मा को) अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया. 2. ये न्याय के सिद्धांत के मुताबिक नहीं. 3. सिलेक्शन कमिटी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि उनके (वर्मा) खिलाफ CVC ने जो रिपोर्ट दी है, वो राकेश अस्थाना की शिकायतों के आधार पर है. जबकि अस्थाना की खुद ही जांच हो रही है. 4. CBI एक स्वतंत्र जांच एजेंसी है. आज की तारीख में ये भारत की सबसे जरूरी संस्थाओं में से एक है. 10 जनवरी को जो फैसला लिया गया, वो इस बात की मिसाल कायम करेगा कि सरकार CVC की मदद से किसी संस्थान के साथ कैसा सलूक कर सकती है. 5.आलोक वर्मा तो 31 जुलाई, 2017 को ही रिटायर हो जाते. मगर फिर उन्हें CBI डायरेक्टर बना दिया गया. चूंकि ये दो साल का तय कार्यकाल है, इसलिए उन्हें एक्सटेंशन मिला और अब वो 31 जनवरी, 2019 को रिटायर होते. मगर अब तो वो CBI डायरेक्टर ही नहीं हैं. फिर उन्हें जिस फायर सर्विसेज़, सिविल डिफेंस और होम गार्ड्स का डायरेक्टर जनरल बनाया गया है, उसकी रिटायरमेंट ऐज़ है 60 साल. वर्मा 62 के हैं. इसीलिए को खुद ही रिटायरमेंट हो रहे हैं.
CBI विवाद: जस्टिस सीकरी ने मल्लिकार्जुन खड़गे की जगह नरेंद्र मोदी का साथ क्यों दिया?