The Lallantop

कलकत्ता का वो चक्रवात, जो 3 लाख लोगों को लील गया था!

इस भीषण त्रासदी की कहानियां जहाज़ों के ज़रिए यूरोप पहुंचीं.

post-main-image
(सांकेतिक तस्वीर: ये तस्वीर 1864 में कलकत्ता में ही आए एक और चक्रवात की है जिसमें साठ हज़ार से ज्यादा जानें गई थीं. सोर्स: द ब्रिटिश लाइब्रेरी)
11 अक्टूबर, 1737 की अहले सुबह कलकत्ता में एक ऐसा चक्रवात आया, जिसने पूरे शहर की चूलें हिला कर रख दीं. ये एक ट्रॉपिकल चक्रवात था. इसे कई जगहों पर सुपर साइक्लोन भी कहा गया. पहले कि इस पर बात करें, ये जान लें कि चक्रवात बनते कैसे हैं.

क्या होता है समंदर में?

दूर समंदर में इक्वेटर के पास जब सूरज चेटता है, तो उसका पानी गर्म होने लगता है. जब समंदर 27 डिग्री से ऊपर गर्म हो जाता है, तो खूब सारी भाप उठती है. ये भाप और गर्म होती हवा आसमान में ऊपर उठती है. जैसे रोडवेज़ की बस में किसी के जगह छोड़ते ही आजू-बाजू खड़े रहने वाले लोग वो जगह लेने दौड़ पड़ते हैं, वैसे ही ऊपर उठती गर्म हवा की जगह लेने आस-पास की हवा में भसड़ मच जाता है. अब ये गर्म हवा ऊपर उठकर ठंडी होने लगती है और बनते हैं नमी से भरे बड़े-बड़े बादल. आसमान में ऊपर उठते बादल कोरियोलिस फोर्स (धरती के घूमने से पैदा होने वाला एक बल) के चलते गोल-गोल घूमने लगते हैं. हवा के इधर-उधर होने और बादल बनने का सिस्टम जब लगातार चलता है तो बात सीरियस हो जाती है और एक तूफान का जन्म होता है. जितनी गर्मी और नमी होगी, तूफान उतना ही ज़ोर का होगा. ये जानिए कि इक्वेटर के ऊपर (माने उत्तरी गोलार्ध में) तूफान बाईं तरफ घूमते हैं और नीचे (माने दक्षिणी गोलार्ध में) तूफान दाईं तरफ घूमते हैं.

कलकत्ता में क्या हुआ था?

1737 में जो चक्रवात आया था, उसके बारे में पॉपुलर लिटरेचर में ये पढ़ने को मिलता है कि इसमें तीन लाख लोग मारे गए. लेकिन इस नम्बर को लेकर कोई विश्वसनीय दस्तावेज़ नहीं है.  कलकत्ता में आया चक्रवात बंगाल की खाड़ी में बना था. यहां ट्रॉपिकल चक्रवात बनते रहते हैं. कोई नई चीज़ नहीं है. लेकिन 1737 में आया चक्रवात अलग था. क्योंकि इसके साथ ही एक भूकंप भी आया था. जिसने कलकत्ता के कई घर गिरा दिए. इस भूकंप की तीव्रता की जानकारी उपलब्ध नहीं है. लेकिन ये माना गया कि अधिकतर नुकसान चक्रवात की ही वजह से हुआ.
ये तस्वीर भी 1864 में आए चक्रवात की है. 1737 में आए चक्रवात की कोई आधिकारिक पेंटिंग नहीं है. उस समय कैमरा वैसे भी इस्तेमाल में नहीं थे. उनका आविष्कार होने और पहली तस्वीर खींचने में ही अभी 60-70 सालों की देर थी.)
ये तस्वीर भी 1864 में आए चक्रवात की है. 1737 में आए चक्रवात की कोई आधिकारिक पेंटिंग नहीं है. उस समय कैमरा वैसे भी इस्तेमाल में नहीं थे. उनका आविष्कार होने और पहली तस्वीर खींचने में ही अभी 60-70 सालों की देर थी.)

एके सेनशर्मा अपने रिसर्च पेपर The Great Bengal Cyclone of 1737 : An Enquiry into the Legend में लिखते हैं कि उस समय के चक्रवात पर कई विद्वानों ने लिखा, लेकिन किसी ने भी तीन लाख की इस संख्या की तस्दीक नहीं की है. वो अलबत्ता ये ज़रूर बता गए हैं कि ये चक्रवात दुनिया के सबसे खतरनाक चक्रवातों में से एक था. रॉजर बिलहैम अपने आर्टिकल The 1737 Calcutta Earthquake and Cyclone evaluated में लिखते हैं,
ईस्ट इंडिया कंपनी के लन्दन मुख्यालय को भेजे गए आधिकारिक आंकड़े 3000 मौतों का ज़िक्र करते हैं और किसी भी भूकंप की बात उनमें नहीं कही गई है. बंगाल से यूरोप जाने वाले जहाज़ों के ज़रिए इस आपदा की खबरें यूरोप तक पहुंचीं.
इसी आर्टिकल में बिलहैम जेंटलमैन मैगजीन को उद्धृत करते हुए लिखते हैं,
30 सितंबर को बंगाल की खाड़ी में एक बहुत तेज़ तूफ़ान आया. इसके साथ काफी तेज बारिश हुई जिसने छह घंटे में ही 15 इंच पानी बढ़ा दिया. एक बेहद तीव्र भूकंप भी आया जिसने कई घर गिरा दिए, और तूफ़ान तीन सौ किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से भी तेज़ी से बढ़ा. ये अनुमान लगाया गया कि तकरीबन बीस हज़ार जहाज़, नौकाएं, दुकान, इत्यादि खो गए. बड़ी संख्या में मवेशी, पशुधन, कई बाघ, और कुछ गैंडे डूब गए. (इस चक्रवात ने) पांच सौ टन के दो अंग्रेज जहाज़ एक गांव में उछाल दिए थे. पानी अपने सामान्य स्तर से 40 फीट ऊपर उछल गया था. डेकर, डेवन शायर और न्यूकासल नाम के अंग्रेज जहाज़ किनारे पहुंच कर बिखर गए, और पेलहैम का कुछ अता-पता नहीं. एक फ्रेंच जहाज़ आकर टकराया था किनारे से. उसमें रखा सामान निकालने में लोग जुट गए. लेकिन अन्दर से सामान बाहर फेंकने वाला व्यक्ति कुछ समय बाद शांत हो गया. उसके बाद दो लोग और भेजे गए, लेकिन वो भी वापस नहीं लौटे. फिर अन्दर ध्यान से बत्तियां जलाकर देखा गया तो अंदर एक मगरमच्छ बैठा था. उसे बड़ी मुश्किल से लोगों ने मारा, और उसके पेट से ये तीनों आदमी निकले.

(The Gentleman’s Magazine, Historical Chronicle, June 1738. Volume 8 Page 321: यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि 30 सितंबर की तारीख जूलियन कैलेण्डर के हिसाब से दी गई है. उस वक्त ग्रेगोरियन कैलेण्डर इस्तेमाल नहीं होता था. इस तरह तारीख 11 अक्टूबर ही बैठती है.)

भूकंप से होने वाली मौतों की संख्या कम रही होगी ऐसा कहने के पीछे भी वजहें हैं. उस समय कलकत्ता की जनसंख्या बमुश्किल बीस हज़ार के आस-पास रही होगी. इनमें से अधिकतर कच्चे मकानों में रहते थे. इन मकानों के पानी और तूफ़ान से प्रभावित होने की आशंका ज्यादा थी.
उस समय के आंकड़े अलग-अलग जगह लिखे हुए मिलते हैं. उस पर एकमत होना स्कॉलर्स के लिए भी मुश्किल है. लेकिन एक बात पर वो ज़रूर सहमत होते हैं, कि ये चक्रवात दुनिया के सबसे खतरनाक चक्रवातों में से एक था.


वीडियो: रूपकुंड के कंकाल की जांच हुई तो सामने आया ये सच