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मां बहन की गाली दे देना लेकिन उनके अंडरगारमेंट्स का नाम मुंह पर न लाना

कुछ लड़कियों ने एक प्ले में अपने अंडरगारमेंट्स का नाम लिया और बेचारे संस्कार मर गए.

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प्ले "शाहिरा के नाम" का एक दृश्य.
अगली बार अपने लिए अाप अंडरगारमेंट लेने मार्केट जाएं तो ऑर्डर करते हुए 'ब्रा' और 'पैंटी' जैसे शब्दों का इस्तेमाल न करें. अब किन और शब्दों का इस्तेमाल करेंगी ये आपकी चिंता. दिल्ली की साहित्य कला एकेडमी के मुताबिक ये शब्द बुरे और आपत्तिजनक हैं.
अब देखिए न, इनके थिएटर फेस्ट में हिस्सा लेने गए दिल्ली विश्वविद्यालय के कमला नेहरू कॉलेज के ग्रुप 'लक्ष्य' को इन शब्दों का इस्तेमाल करना भारी पड़ा. उनका एक प्ले इस फेस्ट में हुआ. नाम था 'शाहिरा के लिए'. इसमें ब्रा-पैंटी का जिक्र था. आयोजकों को बड़ा खल गया. एकेडमी वालों के मुताबिक ये सब ब्रा-पैंटी की बातें लड़कियों के कॉलेज के अंदर तक तो ठीक हैं लेकिन सब के सामने नहीं. उन्होंने इस ग्रुप को फेस्ट से बाहर कर दिया.
इस ग्रुप की मोनामी बसु ने अपना गुस्सा एक फेसबुक पोस्ट में जाहिर किया. उन्होंने लिखाः
"कमला नेहरू कॉलेज की थियेटर सोसाइटी है 'लक्ष्य.' उसे साहित्य कला एकेडमी के 'महाविद्यालय थिएटर फेस्टिवल' में चुना गया था. फेस्टिवल के हिस्से के तौर पर श्री राम सेंटर में हमने आज(28 फरवरी को) इस प्ले का मंचन किया.
हमारी टीम बाहर हो गई. शानदार परफॉर्मेंस के बाद प्ले को आज मुकाबले से बाहर कर दिया गया.
'शाहिरा के नाम' एक संवेदनशील प्ले है जिसमें कॉमेडी के बीच इमोशन की परतें हैं. ये एक परफेक्ट परफॉर्मेंस था. इसकी कहानी छह महिलाओं के बारे में है, एक भुला दी गई प्रेम कहानी. इसमें हर एक्टर ने बहुत मैच्योरिटी के साथ अपना काम किया. जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ी दर्शक हंसे, रोए और दम भरते रहे. एक्टर्स ने इस परफॉर्मेंस में अपना सबकुछ लगा दिया.
जब प्ले खत्म हुआ तो हमें बताया गया कि 'अभद्र भाषा' का इस्तेमाल करने की वजह से इस प्ले को बाहर कर दिया गया है. नहीं, इसमें कोई गाली नहीं थी बल्कि इसमें एक सीन में डायलॉग में 'ब्रा' और 'पैंटी' जैसे शब्द यूज किए गए थे. आयोजक इन शब्दों से इतने परेशान हो गए थे कि प्ले को फेस्टिवल से बाहर करने की वजह बताते हुए इन 'बुरे' और 'घृणित' शब्दों को जबान पर भी नहीं ला पाए. जब स्टूडेंट्स ने उनसे पूछा तो आयोजक उनसे दूर भाग गए.
औरत के अंतर्वस्त्र.. सच में घृणित. हमें सिर्फ दिखावा करना होगा कि रजामंदी वाला सेक्स, महिलाओं के अंडरगारमेंट्स, माहवारी और कामेच्छाएं.. ऐसी घृणित चीजें अस्तित्व में ही नहीं हैं. हालांकि हम मानसिक रूप से औरत के अंडरगारमेंट्स उतारकर उसे नंगा करना और उसका अमानवीयकरण, उसका वस्तुकरण करना कभी भी अपनी इच्छा से जारी रख सकते हैं. हम रोजमर्रा के अपने हर वाक्य को सेक्सुअली हिंसक कंटेंट से भर सकते हैं. फिर भी हम औरत की रोजमर्रा जिंदगी को नहीं दिखा सकते और स्टेज पर उसकी ब्रा पैंटी के बारे में बात नहीं कर सकते.
हम इस तरह के बर्ताव की सख्त मुखालफत करते हैं जो नौजवानों को सेक्स, उनकी इच्छाओं और यहां तक कि ब्रा पैंटी पर स्वस्थ चर्चा करने से रोकता है. अगर ये सब आपको ललचाता है तो ये आपकी दिक्कत है. हम आपकी इस दिखावटी छद्म वैचारिकता को खारिज करते हैं. पीरियड्स, सेक्सुअल इच्छाओं, रजामंदी वाले सेक्स और ब्रा पैंटी जैसी रोजाना की बेहद सामान्य चीजों को लेकर आपकी इन वर्जनाओं को हम खारिज करते हैं."
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'लक्ष्य' ग्रुप की कन्वेनर मोनामी बसु का पोस्ट

इस प्ले की एक लाइन है - 'इसने मेरी ब्रा उठाके उनकी बालकनी में फेंक दी और उसपे शायरी भी लिख दी.' इस लाइन से भी ज्यूरी के संस्कार आहत हो गए. इन पंक्तियों को हॉस्टल में रहने वाली छह लड़कियों के सीन में सुना गया. सीन में इनकी सामान्य बातचीत थी. वो अपने अंडरगारमेंट्स पर लेबल लगाने के बारे में बात कर रही हैं ताकि वो कनफ्यूज न हो जाए.
हम उस समाज में रहते हैं जहां घरों में लड़कियों के अंडरगारमेंट किसी दुपट्टे या तौलिये के नीचे सुखाए जाते हैं, और मर्दों के खुले में सूखते हैं, पूरी मर्दानगी के साथ. इस समाज में किसी लड़की की ब्रा की स्ट्रैप दिखना उसके चरित्र को निर्धारित कर देता है और लड़के को उत्तेजित कर देता है. रंग-बिरंगे अंडरगारमेंट पहनने वाली लड़की को 'हाथ से निकली हुई' बताया जाता है. लेकिन साहित्य कला (एकेडमी) के नामचीन संस्थानों में, जहां बुद्धिजीवियों का जमावड़ा लगा रहता है, वहां इस तरह की बीमार बातें सामने आ रही हैं तो बात चिंता की है. क्योंकि प्रगतिशीलता का पहला दारोमदार तो इन्हीं पर है.
ये भी डायनोसॉर बनेंगे. कुछ वक्त का इंतजार और है. लड़कियां बंधेंगी नहीं, रुकेंगी नहीं!


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