लैटिन भाषा का शब्द है. प्रो टेंपोर (Pro tempore) इसका अंग्रेजी में अर्थ होता है, कुछ समय के लिए. टेंपरेरी,अस्थायी. ये समय कितना होगा, जब तक स्थायी व्यवस्था न हो जाए. नई लोकसभा में सबसे पहले प्रोटेम स्पीकर नियुक्त होता है. इसे बहुमत वाले दल यानी सरकार की सलाह से राष्ट्रपति नियुक्त करते हैं. फिर ये प्रोटेम नई लोकसभा के पहले सत्र के शुरुआती कुछ दिन स्पीकर की कुर्सी पर बैठते हैं. सब लोकसभा सांसदों को सांसद पद की शपथ दिलवाते हैं. और आखिरी में लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव करवाते हैं.
इसके बाद प्रोटेम स्पीकर का रोल खत्म हो जाता है, क्योंकि अब लोकसभा को नया और परमानेंट स्पीकर मिल चुका होता है. अगर कभी अध्यक्ष और उपाध्यक्ष एक साथ इस्तीफा दें या फिर मौत हो जाए, तब प्रोटेम स्पीकर फिर अपने पुराने रोल में आ जाते हैं. नया स्पीकर चुने जाने तक. प्रोटेम स्पीकर के पास कोई भी संवैधानिक शक्ति नहीं होती. अर्थात, सदस्यों पर अनुशासन की कार्रवाई करने से जैसे फैसले वह नहीं कर सकते.
# कौन बनता है प्रोटेम स्पीकर?
ये परंपरा का मामला है. लोकसभा के सबसे सीनियर सदस्य को प्रोटम स्पीकर जिम्मेदारी दी जाती है. 16वीं लोकसभा में यानी 2014 में ये जिम्मेदारी कांग्रेस के छिंदवाड़ा से चुनकर आए एमपी कमलनाथ को दी गई थी. जबकि सरकार भाजपा की बनी थी. ऐसा क्यों हुआ, क्योंकि कमलनाथ नौवीं बार लोकसभा पहुंचे थे. यानी उस लोकसभा में सबसे सीनियर थे. उनकी देखरेख में स्पीकर के चुनाव हुए. और बीजेपी की सबसे सीनियर सांसद,आठवीं बार की एमपी, इंदौर की सुमित्रा महाजन स्पीकर बनीं. इस पद पर पहुंचने वाली सुमित्रा दूसरी महिला थीं. यूपीए के समय में बिहार के सासाराम से सांसद मीरा कुमार भी स्पीकर बनी थीं.
इस बार की लोकसभा में सबसे सीनियर सांसद दो हैं. बीजेपी के बरेली से सांसद संतोष गंगवार, जो आठवीं बार लोकसभा पहुंचे. दूसरा नाम है, सुल्तानपुर की बीजेपी सांसद मनेका गांधी का. वह भी आठवीं बार सांसद चुनी गईं. लेकिन संतोष गंगवार को मोदी सरकार में फिर से मंत्री बना दिया गया. और मनेका गांधी को शंट कर दिया गया. ये पहली बार हुआ कि मनेका सत्तारूढ़ दल या गठबंधन का हिस्सा हैं और मंत्री नहीं. इसके चलते वह नाराज बताई जा रही हैं. मोदी के दूसरे कार्यकाल के दौरान हुए शपथ ग्रहण समारोह में भी नहीं आईं.
मगर किसी के आने न आने से संसद नहीं रुकती. इसलिए मोदी सरकार ने इस दफा प्रोटेम स्पीकर के लिए नाम बढ़ाया, वरिष्ठता क्रम में तीसरे नंबर पर मौजूद, एमपी के बीजेपी सांसद वीरेंद्र कुमार खटीक का. वही वीरेंद्र जो पिछले मंत्रिमंडल में मनेका गांधी के जूनियर मंत्री थे. 11 जून के दिन वीरेंद्र के नाम की घोषणा हुई. 17 जून को नई लोकसभा के नए सत्र का पहला दिन है. वीरेंद्र खटीक बतौर प्रोटेम स्पीकर इस दिन नए लोकसभा सांसदों को शपथ दिलवाएंगे.
वरिष्ठता की बात करें तो सपा नेता मुलायम सिंह यादव भी सातवीं दफा लोकसभा पहुंचे हैं. मगर उनकी सेहत ठीक नहीं रहती. प्रोटेम स्पीकर को घंटों बैठकर सदस्यों को शपथ दिलवानी होती है. इसके चलते मुलायम का नाम आगे नहीं बढ़ाया गया. मैनपुरी के सांसद मुलायम इन दिनों मेदांता अस्पताल में अपना इलाज करवा रहे हैं.
#कौन हैं वीरेंद्र कुमार खटीक?
पॉलिटिक्सनेता जी पहले अपना नाम वीरेंद्र कुमार लिखते थे. अब लिखते हैं, डॉक्टर वीरेंद्र कुमार खटीक है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से वीरेंद्र ने पॉलिटिक्स की शुरुआत की. 1996 में पहली दफा एमपी की सागर सुरक्षित सीट से सांसद बने. तब से लगातार लोकसभा सदस्य हैं. 2007के नए परिसीमन के बाद सागर सुरक्षित सीट नहीं रही. बगल की टीकमगढ़ सीट को रिजर्व कर दिया गया. ऐसे में बीजेपी ने वीरेंद्र कुमार को टीकमगढ़ से उतारा. पिछले तीन चुनाव से वह टीकमगढ़ से सांसद हैं.
नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में वीरेंद्र कुमार राज्य मंत्री थे. मनेका गांधी के जूनियर. यानी महिला एवम बाल विकास कल्याण राज्यमंत्री थे. 2017 में उन्हें अल्पसंख्यक मामलों का भी राज्यमंत्री बना दिया. मोदी के दूसरे कार्यकाल में भी उनका नाम संभावित मंत्रियों में शामिल था. पर मौका नहीं लगा.
पर्सनलइकॉनमिक्स में एमए किया है वीरेंद्र ने. फिर चाइल्ड लेबर से जुड़े टॉपिक पर पीएचडी की, तो नाम में डॉक्टर लग गया.
#पंक्चर वाले नेता जी
किसी नेता का करियर पटरी से उतर जाए तो चिकाईबाज कहते हैं. पंक्चर हो गया. मगर वीरेंद्र कुमार के साथ पंक्चर का दूसरा कनेक्शन है. उनका पिता की साइकिल रिपेयर की दुकान थी. वीरेंद्र भी पढ़ाई के दिनों में वहां काम करते थे. और वीरेंद्र ने चाय वाला पीएम से प्रेरणा लेते हुए अभी भी इस काम को नहीं छोड़ा.

कोई पंचर बनाता हुआ दिखता है तो सांसद खुद उसकी मदद करने लग जाते हैं.
पिछले कार्यकाल में बतौर मंत्री उन्होंने अपने लोकसभा क्षेत्र में साइकिल बांटी. एक लाभार्थी ने कहा, मेरी साइकिल में तो हवा ही नहीं. वीरेंद्र खुद साइकिल का पंप लेकर हवा भरने लगे. रूट्स भी याद आ गईं और फोटो ऑप भी हो गया.

एक कार्यक्रम के दौरान भी साइकिल में दिक्कत आने पर खुद हवा भरने लग गए.
वैसे स्थानीय पत्रकार बताते हैं कि वीरेंद्र कुमार जमीन से जुड़े हैं. अब भी अकसर क्षेत्र में बिना लाल बत्ती और कार के निकल जाते हैं. सिक्योरिटी वालों को भी दूर रखते हैं. कभी स्कूटर से टहलते तो कभी गांव में चौपाल से बैठे नजर आते हैं वीरेंद्र कुमार. और 17 जून को वह स्पीकर की कुर्सी पर भी बैठे नजर आएंगे. बतौर प्रोटेम स्पीकर.
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