18 मई के दिन छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा, कोंडागाँव, बीजापुर और नारायणपुर की डिस्ट्रिक्ट रिज़र्व गार्ड और बस्तर फाइटर्स की टीम ने बोटेर के इलाके में ऑपरेशन शुरू किया. सहयोग मिला राज्य पुलिस की STF और CRPF का. देखते ही देखते संयुक्त टीमों ने बोटेर के इलाके में नक्सलियों की टीम को चारों ओर से घेर लिया. 21 मई की भोर में ऑपरेशन का आखिरी लेग शुरू हुआ. फायरिंग शुरू हुई. और देखते ही देखते बसवराजू की सुरक्षा में मौजूद नक्सली एक-एक करके ढेर किये गए. और कुछ ही देर में खबर आई कि बसवराजू भी इस ऑपरेशन में मारा गया है.
सबसे बड़े नक्सली बसवराजू की पूरी कहानी
बसवराजू का असली नाम नंबाला केशव राव है. उसे गगन्ना, प्रकाश, कृष्णा, विजय, केशव, बीआर, प्रकाश, दरपु नरसिंहा रेड्डी, नरसिंहा और बसवराजू के नाम से भी जाना जाता रहा है.

बसवराजू का असली नाम नंबाला केशव राव है. उसे गगन्ना, प्रकाश, कृष्णा, विजय, केशव, बीआर, प्रकाश, दरपु नरसिंहा रेड्डी, नरसिंहा और बसवराजू के नाम से भी जाना जाता रहा है.
उसकी जन्म आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले का जियन्नापेट गाँव में हुआ. कबड्डी और वॉलीबॉल का नेशनलम खिलाड़ी रहे बसवराजू ने वारंगल में मौजूद रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक की डिग्री ली. ये वही कॉलेज था, जिसका बाद के वर्षों में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी के रूप में कायांतरण किया गया.
कॉलेज के समय से ही बसवराजू वामपंथी राजनीति में रुचि लेने लगा. पार्टी ज्वाइन की - कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (एमएल) की पीपुल्स वॉर. साल 1980 में श्रीकाकुलम में पीपुल्स वॉर के छात्र संगठन Radicals Students Union (RSU) और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में झड़प हुई. झड़प देखते देखते खूनी झगड़े में बदल गई. RSU की ओर से बसवराजू शामिल था. पुलिस ने पकड़ लिया. और तब से लेकर अब तक, उसके बाद कभी बसवराजू पुलिस की पकड़ में नहीं आया.
इस समय ही बसवराजू ने माओवादी आंदोलन की पनाह ली. शस्त्र उठाए. साल 1987 में पीपल्स वॉर ने बसवराजू को बस्तर के जंगलों में भेजा. उसके साथ थे मल्लोजुला कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी, वेणुगोपाल राव उर्फ सोनू और मल्ला राजी रेड्डी. इन चारों लोगों को लीड कर रहा था श्रीलंका का एक मिलिटेन्ट ग्रुप. नाम लिबरैशन ऑफ तमिल टाइगर्स इलम यानी लिट्टे. लिट्टे ने इन तमाम लोगों को बस्तर में घात लगाकर हमला करने, जिलेटिन छड़ों का इस्तेमाल करने और IED यानी बारूदी सुरंग बिछाने का तरीखा सिखाया. बसवराजू ने रुचि दिखाई. वो देखते देखते बना अपने संगठन का एक्सप्लोसिव और मिलिटरी टैक्टिक एक्सपर्ट.
साल 1992, इस साल पीपल्स वॉर की केन्द्रीय कमिटी का चुनाव हुआ. बसवराजू को इस कमिटी का सदस्य चुना गया. बसवराजू के साथी मुपल्ला लक्ष्मण राव उर्फ गणपति को कमिटी का सेक्रेटरी बनाया गया.
कुछ सालों तक सब यूं ही चलता रहा. छोटे बड़े नक्सल ऑपरेशन में बसवराजू संलिप्त रहा आया. धीरे-धीरे अपनी पार्टी में उसका कद बढ़ा. लेकिन नक्सलवादियों को कमी महसूस हो रही थी एक सेंट्रल कमांड की. अलग-अलग इलाकों में नक्सलियों के बड़े छोटे ग्रुप बने हुए थे. उन्हें एकीकृत किया जाना था. साल 2004 में इसकी कवायद शुरू हुई. नक्सली नेता गणपपति ने एक पार्टी का गठन किया. नाम - कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी).
इस पार्टी में पीपल्स वॉर ग्रुप, पीपल्स लिबरैशन गुरिल्ला आर्मी और माओइस्ट कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया को मिला दिया गया. CPI(माओ)का ढांचा किसी भी आम पार्टी की तरह था. इसमेंअध्यक्ष, महासचिव जैसी कुर्सियां थीं. साथ ही थे कई विंग्स. एक मिलिट्री विंग भी बनाई गई - सेंट्रल मिलिट्री कमीशन उर्फ CMC. बसवराजू को इस CMC की कमान दी गई. हमले करने के लिए गुरिल्ला नक्सलियों को ट्रेन करना, और हमले के लिए जरूरी प्लान बनाना इनका काम था.
वामपंथी उग्रवाद को कवर करने वाले जानकार बताते हैं कि गणपति और बसवराजू देश में माओवाद के दो सबसे जरूरी नाम हो गए थे. गणपति विचार के स्तर पर काम कर रहा था, तो बसवराजू एक्शन के स्तर पर.
खबरें बताती हैं कि CMC के गठन के बाद बसवराजू एक्टिव हो गया. बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, ऑडिशा, महाराष्ट्र, तेलंगाना, और आंध्र प्रदेश के इलाके उसकी कमांड में थे. वो IED प्लांट करने में माहिर तो था ही, साथ ही हथियार बनाने वालों और तस्करी करने वालों से भी उसका अच्छा संपर्क था. लिहाजा, उसे अपने संगठन में महत्त्व दिया जाने लगा.
धीरे-धीरे उसके नाम लिखे गए कुछ बड़े मुकदमे. जैसे -
# साल 2010 - दंतेवाड़ा हमला, जिसमें CRPF के 76 जवानों की मौत हो गई थी
# साल 2013 - झीरम घाटी हमला, जिसमें सलवा जुडूम के संस्थापक महेंद्र कर्मा, और कांग्रेस नेता विद्याचरण शुक्ल और नन्द कुमार पटेल समेत 27 लोगों की मौत हो गई
# साल 2018 - ओडिशा में तेलुगु देशम पार्टी के दो नेताओं के सर्वेश्वर राव और सिवेरी सोमा की हत्या
CMC में उसका कद बढ़ा. साल 2013 में प्रतिबंधित पत्रिका पीपल्स वॉर में उसने लिखा,
“यदि हम अपने देश में भूमि समस्या का पूर्ण समाधान करने के लिए किसानों को बड़े पैमाने पर और उग्र रूप से एक सशस्त्र कृषि क्रांति में संगठित कर सकते हैं, तो हम अपने सभी दुश्मनों को हराने और नई लोकतांत्रिक क्रांति को पूरा करने के लिए सबसे आवश्यक बुनियादी शर्त और पूर्व शर्त प्राप्त कर लेंगे.”
बसवराजू किसानों और मजदूरों को हथियार उठाने के लिए उकसा रहा था. उसके इन कामों का प्रभाव पड़ा. उसके संगठन ने तय किया कि संगठन का सबसे बड़ा रणनीतिकायर बसवराजू अब अपने साथ एके 47 राइफल रखेगा. लेकिन साल 2017 में कुछ ऐसा हुआ कि बसवराजू की किस्मत बदल गई.
दरअसल CPI (माओवादी) को लग रहा था कि इस संगठन को लीड करने के लिए गणपति कुछ ज्यादा ही आइडिया के लेवल के व्यक्ति हैं. पार्टी को जरूरत थी कि किसी ऐसे व्यक्ति को कमान दी जाए, जो छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में बढ़ रही सुरक्षाबलों की संख्या को काउंटर कर सके. फरवरी 2017 में CPI की सेंट्रल कमिटी की बैठक हुई. इस बैठक में तय हुआ कि पार्टी के ओल्ड गार्ड को कमांडिंग पोजीशन से हट जाना चाहिए. इस पोजीशन पर वो व्यक्ति बैठे, जिसके पास गुरिल्ला तरीके से लड़ाई (यानी छुपकर वार करने की हरकत) का अनुभव हो.
ऐसे में गणपति के मुकाबले, बसवराजू मुफीद विकल्प था. संगठन को लगने लगा था कि गणपति की टेक्नीक अब माओवादियों के लिए पुरानी हो गई है. मीटिंग में कह दिया गया कि धीरे-धीरे कमान 63 साल के बसवराजू के हाथों में शिफ्ट होगी. गणपति अब मेंटरशिप को ग्रूम करने में लग गया. यानी एक तरह का मार्गदर्शक मंडल. एक साल तक सत्ता का हस्तांतरण हुआ. और साल 2018 में माओवादियों ने प्रेसरिलीज जारी की - अब बसवराजू CMC से उठकर CPI (Maoist) के महासचिव का पद सम्हालेगा. यानी देश में माओवादियों का नंबर वन नेता.
इस ऐलान के साथ ही बसवराजू के जीवन में दो बड़े बदलाव हुए. पहला- वो NIA की मोस्ट वांटेड लिस्ट में उसकी पोजीशन गणपति से ऊंची हो गई. वहीं दूसरा- उस पर इनाम बढ़कर डेढ़ करोड़ कर दिया गया.
साथ ही उसके आसपास 150 से ज्यादा नक्सलियों का पहरा मंडराने लगा. उसके इर्दगिर्द 3-4 लेयर का सुरक्षाघेरा मौजूद रहने लगा. सबसे बाहरी लेयर के पास इन्सास राइफल्स, उसके बाद वाले सुरक्षा लेयर के पास कार्बाइन, उसके बाद SLR और सबसे नजदीकी घेरे के पास AK47 या AK56 राइफल्स मौजूद रहने लगीं.
अपनी पार्टी का सबसे बड़ा नेता बनने के बाद बसवराजू की गतिविधियां बढ़ीं. और बढ़ी मुकदमों की संख्या -
#साल 2018 - सुकमा IED अटैक - CRPF के 9 जवानों की मौत
#साल 2019 - गढ़चिरौली में बारूदी सुरंग में ब्लास्ट, 15 पुलिसकर्मियों की मौत
#साल 2021-2022 - सुकमा-बीजापुर हमला - 22 सुरक्षाकर्मियों की मौत
#साल 2023 - दंतेवाड़ा IED ब्लास्ट - DRG के 10 जवानों और एक ड्राइवर की मौत
#साल 2025 - बीजापुर IED ब्लास्ट - DRG के 8 जवानों की मौत
लेकिन साल 2025 में ही बसवराजू के खात्मे की पृष्ठभूमि लिख दी गई थी. अप्रैल के महीने में बस्तर के जंगलों में सुरक्षाबलों की संयुक्त टीम ने शुरू किया ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट. साथ मिला भारतीय एयरफ़ोर्स का. ऑपरेशन की जगह - छत्तीसगढ़ तेलंगाना बॉर्डर पर मौजूद एक पहाड़ी, जिसे कहते हैं करेगुट्टा हिल्स. दरअसल सुरक्षाबलों को सूचना मिली थी कि इन हिल्स के आसपास माओवादियों की टॉप लीडरशिप बैठी हुई है. तमाम सुरक्षाबलों के 28 हजार से भी ज्यादा जवानों ने एक साथ कूच कर दिया.
21 अप्रैल की तारीख, माओवादियों की सबसे खूंखार यूनिट पीपल्स लिबरैशन गुरिल्ला आर्मी की बटालियन वन के साथ सुरक्षाबलों की मुठभेड़ शुरू हुई. 21 दिनों तक चले इस ऑपरेशन का परिणाम हुआ कि 31 माओवादियों की मौत हो गई. करेगुट्टा की पहाड़ियों पर दशकों बाद तिरंगा फहराया गया. और भारी संख्या में माओवादियों से हथियार बरामद किए गए.
सूत्र बताते हैं कि जब करेगुट्टा में सुरक्षाबलों का ऑपरेशन चल रहा था, वहाँ बसवराजू भी मौजूद था. बीच हमले में वो अपनी टीम को लेकर वहाँ से भाग गया. और आकर बोटेर के जंगलों में 10 दिनों से छुपा हुआ था. इनपुट स्ट्रॉंग हुआ, ऑपरेशन की जमीन पक्की हुई. और बसवराजू ढेर.
वीडियो: नक्सलवाद के खिलाफ बड़ा ऑपरेशन, Chhattisgarh में मारा गया Maoist का टॉप लीडर Basavaraju