बड़ा हुआ तो उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस ज्यादा गौर से सुनने लगा. किस डिप्लोमेसी और जिम्मेदारी से वे पत्रकारों के 'जलेबी सवालों' के जवाब देती हैं. 'क्या कहते रहना है' और 'क्या नहीं कहना है' को समझते हुए.और जुबान ऐसी कि इंग्लिश में सवाल करो तो धें वाली इंग्लिश. हिंदी में पूछो तो सरकारी काम-काज वाली शुद्ध हिंदी. हाय!
सत्ताधारी JDU MLC मनोरमा देवी के हत्यारोपी बेटे की गिरफ्तारी की सूचना प्रेस को जिन्होंने दी, उनका नाम है गरिमा मलिक. गया जिले की एसएसपी हैं. अंग्रेजी में बताया, फिर हिंदी में कहा,
''जिला पुलिस मामले में अनुसंधान कर रही थी. अलग-अलग जगह पर सघन छापामारी और सूचना संकलन चल रहा था. इसी क्रम में कल बोधगया थाना क्षेत्र से मुख्य नामजद अभियुक्त की कांड में प्रयुक्त हथियार के साथ गिरफ्तारी हुई. अनुसंधान किया जा रहा है, जो साक्ष्य मिलेंगे उनके आधार पर अन्य लोगों की गिरफ्तारी भी की जाएगी.''
'इनवेस्टिगेशन' को 'अनुसंधान' और 'एविडेंस' को 'साक्ष्य' कहने में एक पुलिसिया किस्म का अनुशासन है. जिस पर असहमत होने के बाद भी लुट जाने को दिल करता है. इस उम्र में ये कैसा बाल-सुलभ आकर्षण है.मालूम हुआ कि गरिमा स्ट्रैटजी भी बढ़िया बनाती हैं. चश्माधारी धीर-गंभीर इस महिला ने आदित्य मर्डर केस के 'हाई-प्रोफाइल' आरोपी को पकड़ने के लिए बढ़िया पासे फेंके.
बड़ी मछलियों पर हाथ डालना था
इस केस में चैलेंज ये था कि आरोपी मामूली नहीं था. जिस पार्टी की सरकार है, उसकी MLC का बिगड़ैल बेटा. तिस पर बाप गया के सबसे ज्यादा 'मसल पावर' वाले आदमी. जिनकी दबंगई के कई किस्से पुलिस की फाइलों में पहले से दर्ज हैं. और इस सबके बीच 'जंगलराज' का आरोप झेल रही सरकार.फिर भी न सिर्फ समय पर गिरफ्तारी हुई, बल्कि आरोपी के 'ताकतवर' मां-बाप उसे बचाने की कोशिश न कर पाएं, इसका इंतजाम भी कर दिया गया.गया पुलिस ने रॉकी के पिता बिंदी यादव को हिरासत में लिया. ताकि उनकी ओर से जांच प्रभावित करने की आशंका खत्म हो जाए. इससे आरोपियों की पकड़ केस पर कमजोर पड़ गई. जेल में बंद बिंदी बाहर आने के लिए छटपटाते रहे. पुलिस से यहां तक कहा कि मुझे छोड़ दो तो अपने बेटे से सरेंडर करवा दूंगा.

गरिमा मलिक
अब रॉकी भागकर कहां छिपा है, यह पता करना था
गरिमा ने इसके लिए मनोरमा देवी पर प्रेशर बनाना शुरू किया. उनके घर पर छापा मारा तो वहां शराब बरामद हुई. एक बच्चा भी नौकर के तौर पर काम करता पाया गया. दो केस और दर्ज हुए. बिहार में शराब बैन है. चाइल्ड लेबर एक्ट भी लग गया. जेल के अंदर बिंदी यादव बैकफुट पर आ गए. अकेली मनोरमा पैनिक में आ गईं. पुलिस के लिए सही मौका था. थ्योरी यही है कि मनोरमा या बिंदी में से किसी से रॉकी का पता उगलवा लिया गया और पुलिस टीम ने फार्महाउस पहुंचकर उसे धर लिया.लेकिन गरिमा यहां नहीं रुकीं. अब मनोरमा की बारी थी. उनकी गिरफ्तारी का वारंट निकला. लेकिन वह खुद फरार हो गईं. अब देखिए आगे क्या खबर आती है.
किसी जिले का मामला जब देश की सबसे बड़ी खबर बन जाए तो वहां के पुलिस कप्तान के प्रेशर की कल्पना कीजिए. अकसर मुख्यमंत्री ही सीधे रिपोर्ट लेते हैं. दिन में बीस फोन आते हैं, जिन्हें अपडेट देनी होती है. पुलिस के काम-काज की न्यूनतम जानकारी रखने वाले लोग भी निर्देश देते हैं और उन्हें 'जी सर, जी मैडम' करके सुनना होता है.ऐसे हालात में आपको डिलिवर करना होता है. फिर प्रेस के सामने अपना केस रखना होता है. आपकी, पुलिस महकमे की और आपकी सरकार की इज्जत दांव पर लगी होती है.
इन हालात में गरिमा ने ये 'हाईप्रोफाइल' केस कामयाबी से हैंडल किया. रॉकी की गिरफ्तारी के बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में गरिमा मलिक से राजनीतिक दबाव का सवाल पूछा गया. वह बोलीं, 'जिस तरह से पुलिस ने कार्रवाई (गिरफ्तारी) की है, अब तो यह सवाल नहीं उठना चाहिए.' गरिमा ने कहा कि उन पर एक ही दबाव था, अपने पेशे का दबाव, कि जल्द मुख्य आरोपी को गिरफ्तार किया जाए.
IAS बनना चाहती थीं फरीदाबाद की गरिमा
हरियाणा की रहने वाली गरिमा का अनुभव 10 साल का है. वह 2006 बैच की आईपीएस अफसर हैं. गरिमा ने फरीदाबाद के एक स्कूल में पढ़ते हुए ही IAS अफसर बनने का सपना देखा और ग्रेजुएशन के बाद तैयारी में जुट गईं.IAS एस्पिरेंट्स के गढ़ दिल्ली के मुखर्जीनगर में कमरा लिया और एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में एडमिशन लिया. ये साल 2005 था. उन्होंने पहली ही कोशिश में UPSC का एग्जाम फोड़ दिया. रैंक आई 61वीं.वह IAS नहीं हो पाईं तो अपनी दूसरी चॉइस IPS चुना. उन्हें बिहार काडर मिला. उन्होंने IAS अफसर बनने के लिए दोबारा UPSC का एग्जाम न देने का फैसला किया. और पुलिस की नौकरी को पूरे मन से स्वीकारा. अब वह बिहार की ईमानदार, विनम्र और काबिल पुलिस अफसरों में गिनी जाती हैं. महकमे के भीतर चर्चा है कि नीतीश कुमार उन पर भरोसा करते हैं. उन्हें हमेशा चैलेंजिंग काम दिए गए हैं और उनकी परफॉर्मेंस अच्छी रही.
फारबिसगंज फायरिंग की सजा
लेकिन एक ऐसी घटना भी रही, जिसे 'धब्बा' कहा जा सकता है. 2011 में फारबिसगंज में हिंसक हो चुकी भीड़ पर एक विवादित पुलिस फायरिंग हुई थी. गांव के लोग वहां सड़क बनाने की मांग कर रहे थे और बन रही थी एक फैक्ट्री. फैक्ट्री अधिकारियों और गांव वालों के बीच एक समझौता हुआ, जिसमें वे एक दूसरा रास्ता बनाने पर राजी हो गए. लेकिन 3 जून 2011 को भीड़ ने फैक्ट्री पर हमला बोल दिया. फैक्ट्री की दीवार गिरा दी गई. पुलिस ने भीड़ को लाठीचार्ज से रोकने की कोशिश की, लेकिन जब यह तरीका बेअसर रहा तो फायरिंग की. दो लोग मौके पर मर गए और दो ने अस्पताल में दम तोड़ दिया. मुख्यमंत्री ने न्यायिक जांच के आदेश दिए. गरिमा मलिक पर भी गाज गिरी. अररिया से ट्रांसफर करके उन्हें दरभंगा भेज दिया गया. ट्रांसफर तो हुआ लेकिन उनकी पोस्ट बढ़ाकर SSP की कर दी गई.
गरिमा
दरभंगा के बाद उन्हें गया का SSP बनाकर लाया गया. एक बार वह जिले के माओवाद प्रभावित उन गांवों में पहुंच गईं, जिन्हें माओवादी 'लिबरेटेड ज़ोन' कहते हैं. इन इलाकों में कानून कमजोर है और माओवादियों का रूल ज्यादा चलता है. वहां हथियारबंद माओवादी अपनी जनअदालतें लगाते हैं और पुलिस के मुखबिरों को शूट कर दिया जाता है. गरिमा हेलिकॉप्टर में बैठीं और वहां पहुंच गईं. ताकि विश्वास कायम किया जा सके.
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आदित्य मर्डर केस से नीतीश सरकार की छवि खराब ही हुई है. लेकिन मनोरमा देवी को सस्पेंड करने के सिवा नीतीश के पास चारा ही क्या था. आगे गरिमा की अगुवाई में पुलिस ने जैसा काम किया, नीतीश उनसे प्रसन्न ही होंगे. लेकिन वह सिर्फ पुलिस महकमे के लिए नजीर नहीं हैं. वह उन हजारों-लाखों पुरुषों के लिए मिसाल हैं, जो 'लड़की है, क्या कर पाएगी' के सवाल उठाया करते हैं. इन्हें गरिमा जैसी औरतें ही तोड़ेंगी. साधु साधु!!