बांग्लादेश के अंग्रेजी अखबार 'दी डेली स्टार' के ऑफिस की छत पर घबराए पत्रकार अपनी जान खैर मना रहे थे. गुस्साई भीड़ ने ऑफिस में आग लगा दी थी. पूरा स्टाफ आग की लपटों से बचने के लिए छत पर भाग गया था. 35 सालों में ऐसा पहली बार हुआ जब ‘दी डेली स्टार’ अखबार नहीं छाप सका. छत के दरवाजे पर दस्तक होती है, लेकिन सब कुछ भस्म करने पर आमादा भीड़ के खौफ से पत्रकार दरवाजा खोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाए.
बांग्लादेश में अखबार का ऑफिस जलाया गया, छत पर छिपकर पत्रकारों ने जान बचाई
Bangladesh Newspaper: तकरीबन 28 रिपोर्टर्स और ऑफिस स्टाफ छत पर मौजूद था. ऊपर से उन्हें नजर नहीं आया कि बिल्डिंग के सामने क्या हो रहा है. इन्हें केवल चिल्लाने और तोड़फोड़ की आवाज सुनाई दे रही थी.


'दी डेली स्टार' अपनी रिपोर्ट में लिखता है कि दरवाजे के दूसरी तरफ आर्मी थी, जो पत्रकारों की जान बचाने आई थी. लेकिन पत्रकारों को शक था कि गुस्साई भीड़ ने छत के दरवाजे पर दस्तक दी है. जब पत्रकारों को विश्वास हो गया कि उन्हें बचाने के लिए आर्मी ही आई है, तब उन्होंने दरवाजा खोला.
रिपोर्ट में बताया गया है कि उसके ऑफिस पर कैसे हमला हुआ और आग और धुएं में फंसे पत्रकारों की क्या हालत थी. आधी रात का समय था. ऑफिस में काम तेजी से चल रहा था. फर्स्ट एडिशन बस छपने वाला था. रिपोर्टर्स आखिरी समय के अपडेट्स पर काम कर रहे थे, तो दूसरी तरफ सब-एडिटर्स करीने से खबरों की हेडलाइंस बना रहे थे.
तभी फोन बजने लगता है. गुरुवार, 18 दिसंबर की रात एक रिपोर्टर को बताया जाता है कि पड़ोस के अखबार में तोड़फोड़ करने के बाद गुस्साई भीड़ उनकी तरफ बढ़ रही है. ये रिपोर्टर ऑफिस के साथियों को हालात के बारे में बताता है,
"भीड़ किसी भी वक्त हमारे ऑफिस पर आ सकती है."
कुछ ही मिनटों में फैसला होता है और अखबार के कंप्यूटर बंद कर दिए जाते हैं. स्टाफ ऑफिस खाली करने की तैयारी करता है. लेकिन सीढ़ियों से सेकेंड फ्लोर पर उतरते ही भीड़ की गूंज से बिल्डिंग सहम जाती है. रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसा लग रहा था मानो कांच टूट रहा हो और फर्नीचर तोड़ा जा रहा हो. भीड़ ऑफिस में घुस गई थी, इसलिए स्टाफ अपनी जान बचाने के लिए ऊपर की मंजिल पर भागा. एक स्टाफ ने कहा,
"चौथी मंजिल से बहुत साफ और तेज आवाज आ रही थी. तभी हमें एहसास हुआ कि हमारे पास कोई और रास्ता नहीं है."
उन्होंने ऑफिस से बाहर जाने का आइडिया छोड़कर छत पर जाने का फैसला किया. तकरीबन 28 रिपोर्टर्स और ऑफिस स्टाफ छत पर मौजूद था. ऊपर से उन्हें नजर नहीं आया कि बिल्डिंग के सामने क्या हो रहा है. इन्हें केवल चिल्लाने और तोड़फोड़ की आवाज सुनाई दे रही थी.

पत्रकारों को यह अपना आखिरी समय लग रहा था. हालात समझने के लिए वे अपने परिवार और दोस्तों को फोन मिलाने लगे. लेकिन हालात बद से बदतर होते गए. एक रिपोर्टर ने बताया,
"अचानक, काले धुएं ने छत को घेर लिया. सब कुछ काला हो गया."
नीचे बिल्डिंग से धुआं उठ रहा था. सांस लेना मुश्किल हो गया था. गला खराब हो रहा था. डरे हुए स्टाफ के लोग छत के एक कोने से दूसरे कोने तक भाग रहे थे. बेताबी से ऐसी जगह ढूंढ रहे थे जहां उन्हें सांस लेने के लिए ताजी हवा मिल सके और वे जिंदा रह सकें.
रिपोर्टर ने याद करते हुए बताया,
"मेरा एक साथी जमीन पर बैठ गया और अपने माता-पिता से फोन पर बात करते हुए रोने लगा."
छत पर पानी नहीं था. वे अपना चेहरा या आंखें भी नहीं धो पा रहे थे. धुआं इतना घना था कि कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था. सिर्फ तबाही की आवाजें सुनाई दे रही थीं, जिससे स्टाफ का डर और बढ़ रहा था कि भीड़ किसी भी पल उन तक पहुंच सकती है.
तभी एक क्रेन छत तक आती है और स्टाफ में एक सदस्य को नीचे ले जाती है. बाद में स्टाफ क्रेन से नीचे जाने के लिए मना कर देता है. उन्हें डर था कि बाहर मौजूद भीड़ उन्हें नुकसान पहुंचा सकती है. रिपोर्टर ने कहा,
"हमने फायर सर्विस से कहा कि हमें क्रेन से नीचे ना ले जाया जाए, क्योंकि रिस्क है. उन्होंने हमारी बात मान ली."
कुछ देर बाद छत के दरवाजे पर दस्तक होती है. पहले तो स्टाफ दरवाजा नहीं खोलता. जैसा पहले बताया, इत्मीनान होने पर दरवाजा खोल दिया गया. एक आर्मी ऑफिसर उनके पास आता है. पत्रकार कहते हैं,
"हमारा शरीर डर से कांप रहा था. हमें कहा गया था कि अपने फोन की लाइट ऑन ना करें और कोई आवाज ना करें."
आर्मी के पहुंचने पर इन पत्रकारों का रेस्क्यू किया गया. ये लोग आर्मी ऑफिसर के पीछे-पीछे चलते हुए जीने से नीचे उतरे. तब ये सभी ऑफिस से बाहर सुरक्षित निकल सके.

बांग्लादेश में जुलाई 2024 के विद्रोह का प्रमुख चेहरा और कट्टरपंथी ग्रुप इंकलाब मंच के नेता रहे शरीफ उस्मान हादी की 18 दिसंबर को हत्या कर दी गई. उस्मान को अज्ञात बंदूकधारियों ने गोली मार दी थी. सिंगापुर में इलाज के दौरान हादी की मौत हो गई. हादी की मौत के बाद पूरे बांग्लादेश में हिंसा भड़क उठी. हिंसा की इसी कड़ी में भीड़ ने बांग्लादेश के दो प्रमुख अखबारों 'दी डेली स्टार' और 'प्रोथोम आलो' के दफ्तर में आग लगा दी.
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पत्रकारों और एक सरकारी सूत्र ने बताया कि अखबारों को इसलिए निशाना बनाया गया होगा क्योंकि उन्हें हसीना समर्थक और भारत समर्थक माना जाता है, हालांकि दोनों का कहना है कि वे स्वतंत्र हैं. ‘दी डेली स्टार’ ने एक ऑनलाइन रिपोर्ट में कहा कि भीड़ ने उन्हें 'दिल्ली का पालतू कुत्ता' और 'शेख हसीना का मददगार' कहा.
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