बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) ने अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को फांसी की सजा सुनाई है. अदालत ने उन्हें मानवता के खिलाफ अपराधों का दोषी माना है. अदालत ने 3 मामलों में उन्हें सजा-ए-मौत सुनाई है. सभी मामलों में शेख हसीना को दोषी ठहराते हुए कोर्ट ने कहा, ‘हमने उन्हें एक ही सजा देने का फैसला किया है. मौत की सजा.’ कोर्ट के ऐसा कहते ही ट्रिब्यूनल में तालियां बजने लगीं.
शेख हसीना को मौत की सजा, कोर्ट ने एक-एक कर गिनाए अपराध, बज रही थी तालियां
ICT ने अपने 400 पन्नों से ज्यादा के फैसले में कहा कि हमने मानवाधिकार आयोगों की कई रिपोर्टों पर विचार किया है. अदालत ने माना की बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी मारे गए हैं. मानवता के खिलाफ अपराधों के दोष में शेख हसीना को मौत की सजा सुनाई गई है.


हालांकि शेख हसीना ने अदालत के फैसले को मानने से इनकार कर दिया है और इसे एकतरफा और राजनीति से प्रेरित बताया है. इंडिया टुडे से बात करते हुए शेख हसीना ने कहा कि यह बिना किसी लोकतांत्रिक जनादेश वाले एक 'धांधली' न्यायाधिकरण द्वारा दिया गया 'पक्षपातपूर्ण और राजनीति से प्रेरित' फैसला है. इससे पहले अदालत ने शेख हसीना के खिलाफ अपना फैसला सुनाते हुए उन्हें जुलाई 2024 में विरोध प्रदर्शनों के दौरान लोगों की हत्या का आदेश देने का दोषी माना. अदालत ने माना कि शेख हसीना ने लोगों की हत्या करने के लिए उकसाया. सेना और सुरक्षा बलों को इसके आदेश दिए. वह अत्याचारों को रोकने में विफल रहीं. इसके अलावा शेख हसीना पर ड्रोन, हेलीकॉप्टर और घातक हथियार इस्तेमाल करने के आदेश देने का भी दोष सिद्ध हुआ है.
कोर्ट ने अपने 400 पन्नों से ज्यादा के फैसले में कहा कि हमने मानवाधिकार आयोगों की कई रिपोर्टों पर विचार किया है. अदालत ने माना कि बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी मारे गए हैं. इसमें शेख हसीना के साथ पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां खान कमाल और पुलिस के पूर्व आईजी चौधरी अब्दुल्ला अल मामून को भी दोषी बनाया गया है. बांग्लादेश की अदालत ने कहा कि तीनों ने मिलकर ‘मानवता के खिलाफ अपराध’ किए. अदालत ने अपने फैसले में कहा कि देश के तत्कालीन राजनीतिक नेतृत्व ने सीधे आदेश जारी किए, जिससे प्रदर्शनकारियों और अन्य नागरिकों के मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन हुआ.
अदलत के मुताबिक इस हिंसा में लगभग 1400 लोग मारे गए. अधिकांश लोग आर्मी के राइफलों से मारे गए. इसके अलावा 11,000 से ज्यादा लोगों को हिरासत में लिया गया और गिरफ्तार किया गया. अदालत ने पाया कि सरकार ने प्रदर्शनकारियों को डराने-धमकाने की कोशिश की. पैरामिलिट्री फोर्सेज ने हिंसा भड़काई. अदालत के मुताबिक सेना ने हमले के लिए खतरनाक हथियारों का इस्तेमाल किया. अदालत ने यह भी कहा कि लोगों की न्यायिक हत्याएं (Judicial killings) की गईं. इसके अलावा प्रदर्शनकारियों का जानबूझकर इलाज नहीं कराया गया. अदालत ने कहा कि बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी मारे गए हैं. ये तथ्य है.
बांग्लादेश ICT के जस्टिस गुलाम मुर्तुजा मोजुमदार की अध्यक्षता वाला तीन सदस्यीय बेंच ने यह फैसला सुनाया है. बेंच में जस्टिस मोहम्मद शफीउल आलम महमूद और जस्टिस मोहम्मद मोहितुल हक इनाम चौधरी भी हैं. अदालत में विरोध प्रदर्शनों के दौरान शेख हसीना और उनके मंत्री हसनुल हक इनु के बीच टेलीफोन पर हुई कई बातचीत की ट्रांसक्रिप्ट भी पढ़ी गई. इसमें पाया गया कि शेख हसीना ने छात्रों के विरोध प्रदर्शन को आतंकवादी गतिविधि बताने की कोशिश की थी.
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बताते चलें कि अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण, बांग्लादेश की एक विशेष अदालत है, जिसे बांग्लादेश सरकार ने 2010 में बनाया था. इसे मुख्य रूप से 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान हुए युद्ध अपराधों, नरसंहार और मानवता के खिलाफ अपराधों की सुनवाई करने के लिए बनाया गया था. इसमें उन लोगों पर मुकदमा चला, जिन पर आरोप था कि उन्होंने उस समय पाकिस्तान सेना के साथ मिलकर अत्याचार किए थे. अदालत ने हाल ही में राजनीतिक हिंसा और मानवाधिकार उल्लंघन से जुड़े मामलों की भी सुनवाई शुरू कर दी है. शेख हसीना और उनके सहयोगियों पर चल रहा मुकदमा भी ऐसा ही मामला है.
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