शैफाली वैद्य. फ़्रीलांस लेखक और कॉलमनिस्ट हैं. इनके कुछ ट्वीट्स को न्यायपालिका की गरिमा के खिलाफ बताकर अदालत की अवमानना का मुक़दमा चलाने की मांग की गई थी. इसके लिए RTI एक्टिविस्ट साकेत गोखले ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल को चिट्ठी लिखकर केस चलाने की सहमति मांगी थी. वेणुगोपाल ने इजाजत देने से इनकार कर दिया. इसकी वजह भी बताई. इसके बाद गोखले ने अटॉर्नी जनरल पर ही सवाल उठा दिए. नियम है कि किसी के खिलाफ कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट की कार्यवाही शुरू करने से पहले अटॉर्नी जनरल की मंजूरी जरूरी होती है. इसीलिए शैफाली के मामले में गोखले की ओर से ये इजाजत मांगी गई थी. वेणुगोपाल ने मंजूरी देने से इनकार करते हुए कहा,
“शैफाली वैद्य के जिन ट्वीट्स का आपने (गोखले ने) ज़िक्र किया है, उन्हें मैंने देखा है. देखने से लगता है कि ये ट्वीट एक साल से भी पहले के हैं. कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट एक्ट 1971 के सेक्शन 20 में कहा गया है कि अगर अदालत की अवमानना योग्य किसी बात को एक साल से ज़्यादा का समय हो गया है, तो उस पर कंटेम्प्ट का केस नहीं चलाया जा सकता… मैं इस मामले में सहमति देने से इनकार करता हूं.”

साकेत गोखले के अनुरोध पर वेणुगोपाल ने ये पत्र लिखा था. शैफाली के खिलाफ केस चलाए जाने पर असहमति वाला अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल का पत्र 27 नवंबर को जारी किया गया था. बुधवार 2 दिसंबर को साकेत गोखले ने ट्वीट करके वेणुगोपाल पर सवाल उठाए. गोखले ने आरोप लगाया कि वेणुगोपाल नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना करने वालों के खिलाफ़ ही अवमानना का मुक़दमा चलाने की अनुमति दे रहे हैं, उनसे सहानुभूति रखने वालों के खिलाफ नहीं.
संभवत: गोखले का इशारा स्टैंडअप कमीडियन कुणाल कामरा के खिलाफ कंटेम्प्ट का केस चलाने की मंजूरी की ओर था. गोखले के मुताबिक, शैफाली ने अपने ट्वीट्स में निचली अदालतों के अलावा सुप्रीम कोर्ट के एक जज के बारे में भी टिप्पणियां की थीं. उन्होंने आरोप लगाया कि शैफाली के दो महीने पुराने ट्वीट को वेणुगोपाल साल भर पुराना बता रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट को इस पर गौर करना चाहिए.
किन ट्वीट्स की बात हो रही है?
शेफाली वैद्य का पहला ट्वीट तारीख़ : 9 नवंबर 2020
“भारत में जो है, वो न्याय व्यवस्था नहीं है. वो मज़ाक़ है.”

शेफाली वैद्य ने बाद में इस ट्वीट को डिलीट कर दिया था.
दूसरा ट्वीट तारीख़ : 16 अक्टूबर 2020 इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर का स्क्रीनशॉट लगाते हुए शेफाली वैद्य ने कहा,
“भारत की निचली अदालतें कोम्प्रॉमाइज़ हो चुकी हैं. रांची के ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट मनीष सिंह को याद करिए, जिन्होंने ऋचा भारती को ज़मानत देने के लिए क़ुरान बांटने की शर्त रखी थी. अब सेशंस जज अश्वनी सरपाल कह रहे हैं कि अगर कोई मुस्लिम पुरुष नाबालिग़ लड़की के साथ शादी करने के पहले उसका इस्लाम में धर्म परिवर्तन करा दे तो ये क़ानूनी है.”
तीसरा ट्वीट तारीख़ : 19 मार्च, 2020 ANI की ख़बर थी. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज कुरीयन जोसफ़ ने निर्भया के बलात्कारियों और हत्यारों को फ़ांसी की सज़ा देने के बाद सवाल किया था कि क्या फ़ांसी से ऐसे अपराध रुक जायेंगे? इस ख़बर को ट्वीट करते हुए शेफ़ाली वैद्य ने लिखा,
“भरोसा नहीं होता. ये आदमी एक समय तक सुप्रीम कोर्ट में बैठकर न्याय कर रहा था. कोई अचरज नहीं हैं कि देश का आम नागरिक अदालतों को संदेह की नज़र से देखता है. क्या इसकी बेटी के साथ ऐसा हुआ होता तो भी ये आदमी तब भी यही बात कहता?”

ग़ौरतलब है कि शेफ़ाली वैद्य के इन ट्वीट्स का साकेत गोखले ने ज़िक्र किया है. और इन ट्वीट की टाइमलाइन से ज़ाहिर है कि शेफाली वैद्य के ये ट्वीट मार्च, एक अक्टूबर और एक नवंबर के हैं. फिर भी केके वेणुगोपाल ने इन्हें एक साल के भीतर का ट्वीट क़रार दिया है.