The Lallantop

80 परसेंट गो-रक्षकों के खिलाफ उतरा गुजरात दंगों का पोस्टर बॉय

गोरक्षा के नाम पर दलितों से मार-पीट ने राजनीति को बदल दिया है.

Advertisement
post-main-image
अशोक

बड़े दिलचस्प वादे थे, बड़े रंगीन धोखे थे गुलों की आरजू में ज़िन्दगी शोले उठा लायी.

Advertisement
खबर है कि अशोक मोची गुजरात में हो रही 'दलित अस्मिता यात्रा' से जुड़ गए हैं. 2002 से 2016 तक का सफ़र बड़ा ही लम्बा रहा है इनका. 2002 के गुजरात दंगों के पोस्टर बॉय रहे हैं अशोक. इन दंगों की दो प्रतिनिधि तस्वीरें हैं. एक अशोक मोची की. दूसरी क़ुतुबुद्दीन अंसारी की. फोटो में अशोक मोची 'अमेरिकन' लिखी टी-शर्ट पहने हैं. माथे पर भगवा साफा बांधे हाथ में तलवार लेकर चीख रहे हैं. क़ुतुबुद्दीन हाथ जोड़े माफ़ी मांग रहे हैं. शायद उस वक़्त दोनों को लगा होगा कि इसके बाद अच्छे दिन आयेंगे ही.
_58705870_ansarireuters549

वक़्त बीता है. जख्म भरे हैं या नहीं, पता नहीं. 2014 में दोनों साथ ही एक मंच पर आये. गुलाब का फूल लिया-दिया. अशोक मोची आज भी मोची का ही काम करते हैं. क़ुतुबुद्दीन भी अब शांत जीवन गुजार रहे हैं. हाल में ही उन्होंने लोगों से कहा था कि मैं खुश हूं और मुझे बख्श दीजिये. पर अशोक मोची उस मूड में नहीं हैं.
q
2014 में अशोक मोची और क़ुतुबुद्दीन अंसारी (The Hindu)

आदमी बुलबुला है पानी का, क्या भरोसा है जिंदगानी का.

2005 में अशोक को दंगे के आरोप में बुक किया गया था. पर सेशन कोर्ट ने उनको बरी कर दिया. पर किस्मत और राजनीति पलटा मारती है. गुजरात सरकार ने सेशन कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की है. अभी अशोक अहमदाबाद के दिल्ली दरवाजे पर किसी तरह जी रहे हैं.
अशोक की जिंदगी भारत देश के हर पहलू से जुड़ी हुई है. 2002 में वो हिंसा के प्रतीक बन गए. फिर जमाने के रंग देखिये कि 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी के खिलाफ प्रचार करते नज़र आये. उसी वक़्त उनका एक इंटरव्यू हुआ था मीडिया में. इसमें अशोक ने बताया था कि कैसे हिंदूवादी समूहों के लोग आ-आकर लोगों को भड़काते थे. ट्रेन में जले लोगों की फोटो दिखाते थे. फिर ये भी कहा कि मुस्लिमों और दलित समाज की एक ही स्थिति है. गुजरात में सरकारी नौकरी को कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर कर दिया गया. अब दलितों के लिए कुछ नहीं बचा. दंगों के वक़्त हमसे गलती हुयी थी. कुछ समझ नहीं पाए.
gujrat-una_270716-035855
गाय के ऊपर गुजरात में दलितों के साथ हुई मार-पीट का फोटो

पर बात अब ये है कि देश में अलग ही बयार बह रही है. 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद कट्टर हिंदूवादी समूह देश को हिन्दू-मुसलमान में बांट रहे थे. इसके लिए गाय का सहारा लिया गया. उनको लगा कि इससे 'हिन्दू समाज' में एकता आएगी. पर वैसा कुछ हुआ नहीं. किसी और के लिए नफरत दिखाकर आप एकता कैसे ला सकते हैं? नतीजन दलित समाज को हाल-फिलहाल में बड़ी प्रताड़ना झेलनी पड़ी है. गाय बचाने के नाम पर उनको मारा-पीटा जा रहा है.
पर बात अब बदल गई है. दलित समाज ने अपना मोर्चा खोल लिया है. हर जगह हक़ की मांग के लिए प्रदर्शन शुरू हो गया है. ऐसे में अशोक मोची का इससे जुड़ना भारत की राजनीति की कलई खोलता है. साथ ही सचेत भी करता है कि नफरत रोकिये साहब. लोगों पर ध्यान दीजिये.

हक़ रखे उसको सलामत हिन्द में, जिस से खुश लगता है हिंदुस्तान मुझे.

Advertisement

Advertisement
Advertisement