अमित ने बॉक्सिंग अपने बड़े भाई अजय को देखकर सीखी. अजय जब एक बॉक्सिंग एकेडमी में बॉक्सिंग करते तो अमित भी उसी स्टाइल में पंच मारने की प्रैक्टिस करता था. तब 12 साल के अमित का वजन 24 किलो था. परिवार को डर लगता था कि लड़का बॉक्सिंग करने की जिद तो कर रहा है मगर कहीं दुबला पतला शरीर चोट न खा बैठे. इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में अमित के पिता विजेंद्र ने कहा है कि शुरू में हमने मना किया था कि बॉक्सिंग नहीं करनी. मगर कोच अनिल धनखड़ ने हमेशा उसका हौसला बढ़ाया और आज अमित ने दिखा दिया कि जिगर में जान हो तो किसी को भी हराया जा सकता है.

एशियन गेम्स में जीतने के बाद.
जब कोच अनिल धनघड़ रोहतक छोड़ गुडगांव आ गए तो परिवार को कहा कि अमित को भी साथ भेज दो. अनिल यहां एक बॉक्सिंग क्लब चला रहे थे. मगर परिवार के पास एक एकड़ खेत के अलावा कुछ था नहीं जिससे बॉक्सिंग का खर्चा उठा पाते. पिता विजेंद्र कहते हैं कि उन्हें बेटे को बॉक्सिंग करवाने के लिए दोस्तों औऱ रिश्तेदारों से कई बार उधार लेना पड़ा. कभी कभी तो जब अमित ट्रेनिंग से घर लौटता तो खाने में दूध और केले के अलावा कुछ नहीं मिल पाता था. वो कहता था कि उसे अपना वजन मैंटेन करने के लिए डाइट चाहिए, जो नहीं मिल पाती थी.
मगर अब एशियाड में गोल्ड मेडल जीतकर आने वाले अमित के लिए वो सबकुछ तैयार है जो कभी मिल नहीं पाता था. साथ ही एक बेहतरीन भविष्य भी इस युवा बॉक्सर का इंतजार कर रहा है. अमित का अगला सबसे बड़ा टारगेट टोक्यो में होने वाले 2020 ओलंपिक्स होगा. उम्मीद है ये बॉक्सर अपने भीतर की भूख को बरकरार रखेगा.
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