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'चमकीला' फिल्म में ऐसा क्या दिखा दिया कि सोशल मीडिया पर भिड़ंत हो गई?

फिल्म पर सोशल मीडिया यूजर्स अपनी राय रख रहे हैं. लंबे-लंबे पैराग्राफ लिखकर.

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फिल्म के कई पहलुओं पर सोशल मीडिया आमने-सामने है. फोटो- सोशल मीडिया

पहले फिल्में आती थीं तो उसके इर्द-गिर्द जो शब्द चलते थे वो कुछ ऐसे थे- हिट, सुपरहिट, ब्लॉकबस्टर, सिल्वर जुबली, गोल्डन जुबली इत्यादि. वक्त बदला तो शब्दकोश (Vocabulary) भी बदली. फलाना करोड़ क्लब, बॉक्स ऑफिस टाइप जैसे शब्द फिल्मों के साथ जुड़े. अब फिल्मों/वेब-सीरीज के साथ बॉयकॉट और विवाद जैसे शब्द प्रचलन में आने लगे हैं. या तो फिल्म के रिलीज से पहले ही बॉयकॉट होने लगता है या फिल्म रिलीज के बाद उसके किसी 'सीन या डायलॉग-विशेष' पर विवाद छिड़ जाता है. इस 'चक्र' में जो फिल्म अब फंसी है उसका नाम है 'अमर सिंह चमकीला'. नेटफ्लिक्स पर ये फिल्म (Amar Singh Chamkila on netflix) 12 अप्रैल को रिलीज हुई है. इम्तियाज़ अली ने पंजाब के चर्चित सिंगर अमर सिंह चमकीला की ज़िंदगी और मौत पर फिल्म बनाई है. ये उनकी बायोपिक बताई जा रही है. मगर इस फिल्म की कहानी चमकीला की ज़िंदगी से थोड़ी अलग है. ये फिल्म चमकीला की वो कहानी दिखाती-बतलाती है, जैसा इम्तियाज़ को लगता है कि चमकीला थे. ऐसा हमारे सिनेमा टीम के श्वेतांक का कहना है. उनका किया रिव्यू आप यहां पढ़ सकते हैं.

श्वेतांक की ही तरह कई लोग फिल्म पर अलग-अलग राय रख रहे हैं. सिर्फ रख नहीं रहे हैं, बल्कि लंबे-लंबे पैराग्राफ में फिल्म से जुड़ी एक-एक बात का विश्लेषण कर रहे हैं. कुछ लोग फिल्म को देश में बनी अब तक की सबसे अच्छी बायोपिक बता रहे हैं. तो वहीं कुछ लोगों को फिल्म के मुख्य किरदार के चित्रण, या उनके शब्दों में कहें तो 'महिमामंडन' से समस्या है. सोशल मीडिया पर लोग फिल्म के बारे में क्या क्या लिख रहे हैं आइए जानते हैं-

पराग मंडले नाम के यूजर ने अमर सिंह चमकीला के गानों में 'अश्लीलता' की बात करते हुए पवन सिंह और मनोज तिवारी के गानों का जिक्र छेड़ दिया. उन्होंने बातों-बातों में जनता की पसंद को भी कठघरे में रख दिया.


कई लोग फिल्म से ज्यादा अमर सिंह चमकीला के असली किरदार पर बात करते नजर आए. जैसे पूजा प्रियंवदा नाम की यूजर ने सवाल किया कि आज के समय में क्या अमरजोत और चमकीला की कहानी को कोई स्वीकार कर पाता?

पत्रकार दिनेश श्रीनेत ने भी चमकीला के गानों पर, उनके जीवन पर सवाल उठाए. इसके साथ ही फिल्म में उनके चित्रण को लेकर भी. उनका मानना है कि दलित होने की वजह से जितनी उपेक्षाएं चमकीला ने झेली होंगी वो फिल्म में सही से नहीं दिखाई गईं. हत्या के पीछे की वजह भी फिल्म में दिखानी चाहिए थी. अंत में यूजर ने ये तक कह दिया, 'अगर चमकीला को गोली नहीं लगी होती तो शायद उनके जीवन में इम्तियाज़ अली को भी दिलचस्पी न होती.'

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हालांकि, इस डिबेट में कई लोग चमकीला और फिल्म के पक्ष में भी नजर आए. अपने-अपने तर्क से चमकीला को समर्थन दिया. साहित्यकार प्रभात रंजन ने लिखा, 
'मुझे लगता है चमकीला को अश्लील गीतों का गायक लिखने के पीछे कहीं ना कहीं जातिवादी बायस काम कर रहा है. वह अनजाने हमारे भीतर बैठा होता है. हम समझ भी नहीं पाते. रही बात फ़िल्म की तो हिंदी में इससे पहले ऐसी बायोपिक किसी ने बनाई हो याद नहीं आता.

कृष्ण रूमी नाम के यूजर को फिल्म की कास्टिंग पसंद नहीं आई. उनके मुताबिक, ना तो दिलजीत की बॉडी लैंग्वेज चमकीला से मैच खाती है और ना परिणीति अपने रोल में जचती हैं. हालांकि, इसके बाद भी वो फिल्म से संतुष्ट हैं.

एक और यूजर ने फिल्म पर काफी लंबी चौड़ी पोस्ट लिखी है. जिसमें उन्होंने अश्लीलता पर सवाल उठाने वालों पर सवाल किया है. हिंदी गानों से लेकर शादी ब्याह में गाए जानेवाले गानों का उदाहरण देकर उन्होंने शील-अश्लील की डिबेट में इसकी परिभाषा की मांग की है.

 

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रोहित ठाकुर नाम के यूजर ने भी फिल्म की तारीफ की है. उन्होंने लिखा, 

यह फिल्म कई प्रश्नों खड़ा करती है. परेशान करती है. यह एक बायोपिक है. समाज और उसके चरित्र को खंगालते हुए. एक यादगार फिल्म प्रेम, राजनीति और एक गायक की हत्या जो एक संभावना की हत्या भी है.

सौरभ मिश्रा नाम के यूजर ने तो फिल्म देखे बिना ही इसपर प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने इस डिबेट में फिल्म का पक्ष लेते हुए कहा,

आपको कला को कला की तरह देखना होगा. आप निर्देशक में अपनी आंख फिट नहीं कर सकते. कई बार कला में जितना उघाड़ना होता है. उससे ज़्यादा छिपाना भी. उस निर्देशक को जितना लगा, जो लगा उसने आपको परोस दिया. कम से कम उसने उस मुद्दे को छुआ तो जिस पर पंजाब या पंजाब से जुड़े लोग बात भी नहीं करते.


फिल्म चमकीला पर इस पूरे विवाद में एक तीसरा पक्ष भी है. जो कोई नया सिनेरियो नहीं परोस रहा, ना ही कोई नया मोर्चा खोल रहा है. बल्कि इस पूरे प्रसंग पर मीमबाजी कर रहा है. देखिए लेखक नवीन चौधरी का ये पोस्ट.

फिल्म पर ऐसी बहसें  चलती रहेंगी. शायद कुछ हद तक, वाजिब बातों पर विमर्श चलते भी रहना चाहिए क्योंकि इससे हर बात, हर मुद्दे और हर सीन को देखने के कई दृष्टिकोण भी मिलते हैं. जैसा कि हमारे साथी श्वेतांक ने भी अपने रिव्यू में लिखा है कि 'आर्ट और आर्टिस्ट, धर्म, जाति, समय और समाज जैसी चीज़ों से परे होता है. मगर सिर्फ लेखन में. जीवन में नहीं.'  वैसे क्या आपने फिल्म देखी? आपको कैसी लगी हमें कमेंट बॉक्स में जरूर लिख भेजिए. 

वीडियो: फिल्म रिव्यू- अमर सिंह चमकीला