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इजरायल के खिलाफ हमास की सबसे खतरनाक ब्रिगेड इस आदमी के नाम पर बनी, कौन था अल कस्साम?

इजरायल-हमास के बीच बीती 7 अक्टूबर से जारी जंग का दायरा बढ़ता जा रहा है. इजरायल को भारी नुकसान पहुंचाने वाले हमास की एक स्पेशल यूनिट है. इसी यूनिट को इज अद दीन अल कस्साम ब्रिगेड कहते हैं. जानें इसकी कहानी.

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इज अद दीन अल कस्साम.

इजरायल और हमास के बीच जंग जारी है. दोनों पक्ष एक दूसरे पर हमले कर रहे हैं. इस बीच एक नाम खूब ट्रेंड कर रहा है, अल-कस्साम ब्रिगेड. ये हमास की वो यूनिट है जो इजरायल पर हमले करती है. हमास की नींव रखने वाले शेख अहमद यासीन ने इस यूनिट को 1991 में बनाया था. वैसे तो हमास के लिए हज़ारों लोग काम करते हैं, पर अल-कस्साम ब्रिगेड इसका सबसे खास हिस्सा मानी जाती है. हमास ने किसी देश की आर्मी की तरह अपनी 3 यूनिट्स बना रखी हैं. ये तीनों यूनिट्स हैं- मिलिट्री विंग यानी अल कस्साम ब्रिगेड, सोशल सर्विस विंग जिसे दावाह के नाम से जाना जाता है, और हमास की मीडिया विंग. अल अक्सा टीवी और अल फतेह मैगज़ीन का संचालन मीडिया विंग के जिम्मे है.

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कौन था इज अद-दीन अल-कस्साम ?

19 दिसंबर 1882 को लेबनान के बेरूत में एक लड़के का जन्म हुआ. नाम रखा गया- इज अद दीन अल कस्साम. एक सीरियन मुसलमान. उसने मिस्र की अल-अज़हर यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की. उसके बाद कस्साम अपने होमटाउन सीरिया के जबलेह इलाके में धार्मिक प्रचारक बन गया. वतन लौटने के बाद अल-कस्साम इटली के विरुद्ध चल रहे सीरियन संघर्ष से जुड़ा. उसने सीरियन लड़ाकों की मदद की, हथियार मुहैया कराए और उनके लिए एंथम (गीत) भी लिखा. 

1920 के दशक में अल-कस्साम पानी के रास्ते बेरूत से इजरायल के हाइफा पहुंचा. उस वक्त इजरायल पर ब्रिटिश हुकूमत थी. यहां अल-कस्साम ने छोटे तबकों के लोगों पर अपना ध्यान शिफ्ट किया. हाइफा की जुरायनेह मस्जिद में कस्साम ने अपनी तकरीरें करनी शुरू कीं. ये मस्जिद आज भी हाइफा में मौजूद है. तकरीरें करके कस्साम धीरे-धीरे पूरे फिलिस्तीन में पॉपुलर होता गया. फिर तारीख आई 8 नवंबर 1935. आइन हेरोड के पास एक फिलिस्तीनी पुलिसकर्मी मोशे रोज़नफील्ड की लाश मिली. हत्या का शक अल-कस्साम और उसके समर्थकों पर लगा. पूरे फिलिस्तीन में कस्साम की तलाश होने लगी. 

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इसके चलते कस्साम ने हाइफा छोड़ दिया. उसने जेनिन और नेबलस की पहाड़ियों में शरण ली. 10 दिनों तक छिपने के बाद आखिरकार 'शेख ज़ायद' में पुलिस ने कस्साम को घेर लिया. अपने 3 साथियों समेत अल-कस्साम मारा गया और उसके 5 समर्थक पकड़े गए. इस घटना के बाद अल-कस्साम को फिलिस्तीन में हीरो की तरह देखा जाने लगा. आज भी फिलिस्तीन में इज अद दीन अल-कस्साम का नाम सम्मान से लिया जाता है. उसे फिलिस्तीन में आज भी हथियारबंद विरोध का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है.

कैसे काम करता है अल-कस्साम ब्रिगेड ?

हमास का जन्म 1987 में हुआ. इजरायल के खिलाफ संघर्ष को जारी रखने के लिए चार साल बाद 1991 में अल-कस्साम के नाम पर ब्रिगेड बनाई गई. ये ब्रिगेड किसी प्रोफेशनल आर्मी की तरह ही अपने ऑपरेशन्स को अंजाम देती है. तालिबान ने भी इसी से मिलती जुलती एक ब्रिगेड बना रखी है जिसे 'बद्र मिलिशिया' कहा जाता है. अल-कस्साम ब्रिगेड में मिसाइल यूनिट, एयरबोर्न यूनिट, ड्रोन यूनिट और इंटेलिजेंस विंग शामिल हैं. 7 अक्टूबर 2023 के हमले में शामिल सभी लड़ाके एयरबॉर्न यूनिट के आतंकी थे. रिपोर्ट्स के मुताबिक इन सभी के पास एयरफोर्स का फाल्कन स्क्वाड्रन बैज था. इन्होंने वन-पर्सन और टू-पर्सन पैराग्लाइडर का इस्तेमाल कर इजरायल में घुसपैठ की.

अल-कस्साम ब्रिगेड को कौन लीड करता है ?

'अल कस्साम' की कमान फिलहाल मोहम्मद डेफ के कंधों पर है. डेफ को बहुत ही खूंखार कमांडर माना जाता है. वो मिलिट्री विंग का संस्थापक सदस्य भी है. साल 2002 में मिलिट्री विंग के लीडर सालेह शेहदा की इजरायल ने हत्या कर दी थी. इसके बाद डेफ को इसकी कमान सौंपी गई. डेफ का जन्म साल 1965 में ग़ाज़ा के रिफ्यूजी कैम्प में हुआ था. उसका असल नाम मोहम्मद दीब इब्राहिम अल मसरी था. उसके पिता और चाचा ने भी फिलिस्तीन के लिए लड़ाई लड़ी थी. 

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मोहम्मद डेफ ने ग़ाज़ा की इस्लामिक यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की. इसके बाद वो हमास से जुड़ गया. डेफ काफी समय से इजरायली ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद के टारगेट पर है. कई बार डेफ पर हमले भी हुए, लेकिन हर बार वो बच निकला. साल 2014 में हुए एक हमले में डेफ की पत्नी और बच्चे की मौत हो गई थी. इसके बाद डेफ ने ग़ाज़ा से सटे इजरायली इलाकों को बेस बनाकर इजरायल पर हमले करना शुरू किया.

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