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अक्षय की फिल्म 'रुस्तम' की लुग्दी बिखेर दी है, एक फोटो ने!

कहानी 1959 की है लेकिन इसमें हीरो कारगिल युद्ध का मेडल पहने दिखता है!

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फिल्म के दृश्य में अक्षय कुमार.
बीते हफ्ते रिलीज हुई अक्षय कुमार की फिल्म रुस्तम से अब तक यही आपत्ति थी कि इसकी थीम अपने आप में कई भ्रम फैलाती है. एक तो यह कि यदि आपकी पत्नी के विवाहेत्तर संबंध है तो उसके प्रेमी को गोली मार देना बिलकुल ठीक है. और यदि आप एक सैन्यकर्मी हैं तो और भी ठीक. ऊपर से अक्षय का नेवल ऑफिसर का पात्र एक इंसान की हत्या को फख्र से कुबूल करता है. इस गंभीर बात को दर्शकों के बीच हल्की कर देने के लिए कहानी को देशभक्ति का रंग दे दिया जाता है. लेकिन अब फिल्म में टेक्नीकल गलतियां भी सामने आ रही हैं. जबकि फिल्म के निर्माता नीरज पांडे आमतौर पर अपने प्रोडक्शंस में कम से कम टेक्नीकल चीजें तो चाक-चौबंद रखते हैं. इससे दर्शक यह भी जान सकता है कि उसे सिनेमाई माध्यम के वशीभूत होकर किसी फिल्म को निगल नहीं लेना चाहिए बल्कि सवाल करने चाहिए. जैसे, फिल्म में जलसेना की जिस पृष्ठभूमि को देख आप राज़ी हो रहे हैं, उसकी फिल्म में ही कोई इज्ज़त नहीं की गई है. फिल्म में कई ऐसे सीन हैं जिनमें निरंतरता नहीं है. एक सीन में अक्षय अदालत में खड़े हैं और एक पंखे की पत्तियां गायब हैं. एक सीन में मर्डर सीन पर पिस्टल शव के करीब है और अगले ही शॉट में काफी दूर है. एक सीन में जहाज पर एक ऑफिसर खड़ा दिखता है और उसी सीन में फिर बैठा दिखता है. हालांकि ऐसी गलतियां तो कुछ नहीं, फिल्म में कई बड़े ब्लंडर नैवल ऑफिसर्स की वर्दी के साथ किए गए हैं, उनके मेडलों के साथ किए गए हैं. इस ओर ध्यान दिलाया है संदीप उन्नीथन ने जो 2008 के मुंबई हमले में ब्लैक कैट्स की भूमिका और सैन्य अभियान पर बेहद सटीक बुक 'ब्लैक टॉरनेडो' लिख चुके हैं जो 2014 में प्रकाशित हुई. उन्होंने रुस्तम  में अक्षय द्वारा पहनी वर्दी की तस्वीर में एक के बाद एक गलतियां बताईं. जैसे सिर्फ तीन उदाहरण ही ले लें:

1. इसमें अक्षय वर्दी पर नाम पट्‌टी पहने हुए दिखते हैं. ये नेम टैग 1970 में ही शुरू हुए थे जबकि कहानी 1959 की है. 2. उनका रुस्तम का पात्र मूछें रखे हुए है जबकि बिना दाढ़ी के सिर्फ मूछें रखने की इजाजत सैन्यकर्मियों को 1971 के बाद ही दी गई. 3. रुस्तम का पात्र कारगिल स्टार 1999 और ओम पराक्रम 2001-02 के मेडल पहने हुए दिखता है लेकिन कोई 40 साल पहले इस पात्र ने ये युद्ध कैसे लड़ लिए?

उन्नीथन ने ट्वीट में ये बताया और लिखा कि बॉलीवुड फिल्मों में सैनिकों की यूनिफॉर्म कभी भी ठीक नहीं रखी जाती. उनके ट्वीट में सभी मेडलों की पहचान उनके इतिहासकार दोस्त राणा चिन्हा ने की. tweet1 ये ट्वीट बहुत वारयल हो रहा है. इसके बाद रुस्तम  की कॉस्ट्यूम डिजाइनर अमेइरा पुनवानी से भी इस बारे में एक इंटरव्यू में पूछा गया तो उनकी प्रतिक्रिया हल्की थी. उन्होंने कहा कि फिल्म के शुरू में ही लिखा आता है कि ये सच्ची घटना पर आधारित है लेकिन जब आप एक फिल्म बनाते हो, तो सिनेमाई आज़ादी लेते हो, यानी चीजें सटीक रखना बहुत जरूरी नहीं रह जाता. उनका कहना है कि जैसे असल जिंदगी में कोई आदमी 20 आदमियों को अकेला नहीं मार सकता, ठीक उसी तरह अगर हम रुस्तम को बहुत सम्मानित ऑफिसर दिखाना चाह रहे हैं और सिर्फ उसकी वर्दी पर दो मेडल ही दिखाएं तो सब सोचेंगे कि छोटा-मोटा ऑफिसर होगा. उन्होंने कहीं भी खंडन नहीं किया कि वर्दी को लेकर जो आपत्तियां की गई हैं वो झूठी हैं. हालांकि विमर्श यहीं खत्म नहीं होता. उन्नीथन के ट्वीट को लेकर किन्हीं केएस उथैया ने लिखा कि वर्दी की सही-सही नकल करना गैर-कानूनी होता है. tweet3 undefined इसके जवाब में उन्नीथन ने भारतीय दंड संहिता की धारा 171 का जिक्र किया जिसमें लिखा है, "जालसाजी के इरादे" से पहनी गई सही वर्दी या मेडल गैर-कानूनी है. जबकि रुस्तम  में बिना जालसाजी के इरादे के ये गलती की गई.   tweet2 tweet4

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