ये 2 मार्च की ही तस्वीर है. दोहा में अमेरिका के साथ हुए शांति समझौते पर जश्न मनाने के लिए तालिबानी लड़ाके और गांव के लोग एक जगह इकट्ठा हो रहे हैं. इसी दिन शाम को अफगानिस्तान के दक्षिणी हिस्से में स्थित ख़ोस्त में फुटबॉल मैच के दौरान एक धमाका हुआ. इसी दिन तालिबान ने ऐलान किया कि वो अफगान फोर्सेज़ पर हमला दोबारा शुरू कर रहा है (फोटो: Getty)
2 मार्च, 2020 को पूर्वी अफगानिस्तान में एक फुटबॉल मैच चल रहा था. इस मैच को निशाना बनाते हुए एक बम धमाका हुआ. इसमें तीन की मौत हुई और 11 लोग घायल हुए. इस हमले की जिम्मेदारी अभी किसी ने नहीं ली. मगर एक आशंका है कि इसके पीछे तालिबान हो सकता है. 29 फरवरी को कतर की राजधानी दोहा में तालिबान और अमेरिका के बीच शांति समझौता हुआ था. इसके तहत, सभी पक्षों की ओर से संघर्ष-विराम लागू रहना था. मगर 2 मार्च को ही तालिबान ने युद्ध-विराम की इस संधि को 'आंशिक' तौर पर तोड़ने का ऐलान किया. तालिबान के प्रवक्ता ज़बिहुल्लाह मुजाहिद ने मीडिया को बताया-
हिंसा में कमी लाने के लिए तय किया गया समय अब ख़त्म हो गया है. अब हमारी गतिविधियां पहले की तरह जारी रहेंगी. अमेरिका-तालिबान समझौते के तहत, हमारे मुजाहिदीन विदेशी सैनिकों पर हमला नहीं करेंगे. मगर अफगान सरकार पर हमारा हमला जारी रहेगा.
ये भी पढ़ें: क्या तालिबान के साथ शांति समझौता करके अमेरिका ने अपनी हार मान ली है? हमले पर अमेरिका ने क्या कहा? 'पीस डील' के लिए अमेरिका ने शर्त रखी थी कि तालिबान कुछ दिनों तक हिंसा में कमी लाए. एक दिए गए समय में अगर तालिबान ऐसा करता, तब ही संधि होनी थी. 21 जनवरी को 'रिडक्शन ऑफ वॉयलेंस' (हिंसा में कमी लाना) का समय शुरू हुआ. तालिबान ने शर्त पूरी की. 29 फरवरी को संधि हुई. इसके साथ ही हिंसा में कमी लाने के लिए तय की गई मियाद ख़त्म हो गई. मगर अमेरिका को उम्मीद थी कि तालिबान आगे भी इसे जारी रखेगा. 2 मार्च को हुए हमले ने ये उम्मीद तो तोड़ दी है. हालांकि तालिबान का ये कहना है कि समझौते के मुताबिक वो अमेरिका या उसके सहयोगी देशों की सेना पर कोई हमला नहीं करेगा. लेकिन अफगान फोर्सेज़ को निशाना बनाना वो जारी रखेगा. इस ताज़ा हमले के बाद अमेरिका डिफेंसिव मोड में दिखा. चेयरमैन ऑफ जॉइंट चीफ ऑफ स्टाफ्स जनरल मार्क मिले ने हमले पर प्रतिक्रिया करते हुए कहा-
अफगानिस्तान में अकेला तालिबान ही नहीं है. वहां कई आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं. इसीलिए हमें अभी नहीं पता कि इस हमले के पीछे किसका हाथ है. एक और ज़रूरी बात ये है कि अफगानिस्तान के अंदर हिंसा में कमी आएगी. मगर ये पूरी तरह से बंद नहीं होगा.
अशरफ़ ग़नी सरकार और तालिबान में वार्ता होनी है
अफगानिस्तान के भविष्य को लेकर तालिबान और अफगान सरकार के बीच 10 मार्च से वार्ता शुरू होनी है. अमेरिका-तालिबान के बीच हुई संधि की शर्तों के मुताबिक, अफगान सरकार को इस तारीख़ तक 5,000 तालिबानी लड़ाकों को अपनी कैद से रिहा करना है. इनके बदले तालिबान भी अफगान सैनिकों को रिहा करेगा, लेकिन केवल 1,000 सैनिक. अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी इस 'प्रीकंडिशन' (वार्ता शुरू करने के लिए रखी गई शर्त) से असहमति और नाराज़गी जता चुके हैं. ग़नी के प्रवक्ता सादिक सिद्दीकी ने भी कहा-
इस वार्ता के शुरू होने से पहले 5,000 तालिबानी कैदियों की रिहाई को लेकर अफगान सरकार ने कोई सहमति या आश्वासन नहीं दिया है. कैदियों की रिहाई बातचीत शुरू करने की शर्त नहीं हो सकती.
तालिबानी लड़ाकों की रिहाई के लिए प्रेशर बना रहा है तालिबान? अफगान सरकार के इस बयान के बाद तालिबान का जवाब आया. इसके मुताबिक, कैदियों की रिहाई के बिना कोई शांति वार्ता नहीं होगी. ऐसे में ये भी आशंका है कि इस हमले के पीछे तालिबान की रणनीति अफगान सरकार पर दबाव बनाने की है. ताकि अशरफ़ ग़नी की सरकार 10 मार्च तक 5,000 तालिबानी लड़ाकों को रिहा कर दे. अमेरिका और तालिबान की इस डील को लेकर कई आशंकाएं हैं. इसके कामयाब होने पर भी काफी संशय है. अफगान सरकार और तालिबान के बीच वार्ता के सफल रहने की संभावनाएं भी काफी गड्डमड्ड हैं.
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