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संसद के विशेष सत्र में पेश होने वाला 'अधिवक्ता संशोधन बिल' क्या है?

केंद्र सरकार ने 18 से 22 सितंबर के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाया है. इसके एजेंडे में चार बिलों को रखा गया है, जिनमें से एक है अधिवक्ता (संशोधन) बिल.

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संसद के विशेष सत्र के लिए चार विधेयक एजेंडे में हैं. (फाइल फोटो: आजतक)

लोकसभा की ओर से संसद के विशेष सत्र को लेकर 13 सितंबर को एक बुलेटिन जारी किया गया. इस बुलेटिन में ब्यौरा था कि 18 सितंबर से 22 सितंबर तक संसद के विशेष सत्र में क्या होगा. बुलेटिन में कहा गया कि विशेष सत्र के पहले दिन यानी 18 सितंबर को संसद के 75 सालों की यात्रा, सदन की उपलब्धियों, अनुभवों, यादों और संसद से निकले सबक की चर्चा होगी. फिर इसी बुलेटिन में 4 बिलों का नाम लिखा था. इन बिलों पर विशेष सत्र में चर्चा होगी और इन्हें पास कराने की कार्रवाई चलेगी.

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कौन से हैं वो बिल?

1 - अधिवक्ता (संशोधन) बिल
2 - प्रेस एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ पीरियॉडिकल बिल
3 - दी पोस्ट ऑफिस बिल
4 - मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्त और कार्यकाल) बिल

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अधिवक्ता (संशोधन) बिल में क्या है?

1 अगस्त को सबसे पहले ये बिल राज्यसभा में पेश किया गया था. क्या है इस बिल का उद्देश्य? विधि एवं न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल ने इस मौके पर पत्रकारों से कहा था कि अदालतों में ऐसे लोग होते हैं, जो जजों को, वकीलों और मुवक्किलों को प्रभावित करने का काम करते हैं. इनसे सावधान रहने की जरूरत है. कानूनी भाषा में ऐसे लोगों को टाउट्स कहा जाता है. फौरी अनुवाद होगा दलाल. ये लोग वकीलों, जजों और मुवक्किलों के बीच काम करके अपने पैसे बनाते हैं. इस बिल के पास होने के बाद हाई कोर्ट जज से लेकर जिला मजिस्ट्रेट, कलेक्टर तक के अधिकारी ऐसे दलालों की लिस्ट बनाकर छाप सकते हैं. अगर किसी व्यक्ति पर दलाली का संदेह है, तो उसकी जांच का भी आदेश दे सकते हैं. आरोपी को अपनी बात रखने का मौका दिया जाएगा, साथ ही दोष साबित हो गया तो 3 साल की कैद, 500 रुपये का जुर्माना या दोनों भरना पड़ सकता है.

इस बिल के बारे में इलाहाबाद हाई कोर्ट के एडवोकेट मो. कुमैल हैदर कहते हैं कि हमारे समाज की न्यायपालिका में सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि टाउटिंग की प्रैक्टिस बहुत ज्यादा है. इसका मतलब है कि दलाली बहुत आम है. क्लाइंट को जबरदस्ती लीगल प्रोसीजर में खींचने की कोशिश की जाती है. इस विधेयक का मकसद ये है कि जो दलाल हैं, चाहे वो जिस रूप में भी हों, उनकी एक लिस्ट तैयार की जा सके. उन्हें कारण बताओ नोटिस दिया जा सके. ताकि वो एक्सप्लेन करें कि वो क्यों टाउट्स नहीं कहलाए जाएं या दलाल न कहलाए जाएं. फिर उस लिस्ट में समय-समय पर फेर-बदल किया जाए, ताकि इस तरीके से दलाली को रोका जा सके.

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