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1994 में असम के 5 युवकों को सेना ने मार दिया था, 29 साल बाद परिजनों को मुआवजा, केस बंद

इससे पहले साल 2018 में हत्या के 7 दोषी सैनिकों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.

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(दाएं) गुवाहाटी हाई कोर्ट. बाईं तस्वीर सांकेतिक है. (फोटो: आजतक)

गुवाहाटी हाई कोर्ट ने 1994 में उग्रवाद विरोधी अभियान के दौरान 5 लड़कों की हत्या के मामले में फैसला सुनाया है. गुरुवार, 9 मार्च को हाई कोर्ट ने इन युवकों के परिजनों को 20-20 लाख रुपये बतौर मुआवजा देने का निर्देश देते हुए केस को बंद कर दिया. मामले की सुनवाई जस्टिस अचिंत्य मल्ला बुजोर बरुआ और जस्टिस रॉबिन फुकन की बेंच कर रही थी. एक याचिकाकर्ता के वकील परी बर्मन ने ये जानकारी दी है. उन्होंने बताया कि इतना लंबा समय बीतने के चलते इस केस को क्लोज किया गया है.

कोर्ट ने क्या कहा?

न्यूज एजेंसी PTI से बातचीत में परी बर्मन ने बेंच के फैसले की जानकारी साझा की. उन्होंने जस्टिस बरुआ और जस्टिस रॉबिन के हवाले से कहा,

'इस केस को आज बंद किया जा रहा है. आदरणीय कोर्ट केंद्र को ये निर्देश जारी कर रहा है कि पांचों मृतकों के परिजनों को 20-20 लाख रुपये मुआवजे के तौर पर दिए जाएं.'

परी बर्मन के मुताबिक कोर्ट ने कहा कि परिजनों को 15 दिन के अंदर मुआवजे की राशि पर दावा करना होगा. बेंच ने तिनसुकिया जिला जज को निर्देश दिया कि इस प्रक्रिया के लिए पीड़ित परिजनों की पहचान कराई जाए. वहीं मुआवजे की राशि हाई कोर्ट के पास जमा करवाई जाएगी. फिर जिला न्यायाधीश द्वारा पीड़ित परिवारों की पहचान किए जाने के बाद उन्हें राशि सौंपी जाएगी. परी बर्मन ने कहा कि आदेश की कॉपी अभी उपलब्ध नहीं है, इसलिए वो फैसले के संबंध में और ज्यादा डिटेल देना उनके लिए मुश्किल है.

क्या था मामला?

साल 1994 में यूनाइटेड लिब्रेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA/उल्फा) ने राज्य के एक चाय बागान प्रबंधक की हत्या कर दी थी. इसके बाद भारतीय सेना ने वहां उग्रवाद विरोधी अभियान चलाया था. इस कार्रवाई के दौरान सेना ने तिनसुकिया जिले के डूम डूम सर्कल से ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) के नौ सदस्यों को उठा लिया था और उनमें से पांच को मार दिया था. 

उस वक्त AASU के नेता जगदीश भुइयां (बाद में राज्य मंत्री बने) ने उन नौ युवकों की सुरक्षा के लिए हाई कोर्ट के सामने हैबियस कॉर्पस की याचिका दायर की हुई थी. हैबियस कॉर्पस मतलब 'जबरन हिरासत या अवैध गिरफ्तारी से सुरक्षा का संवैधानिक अधिकार'. इसके चलते बाद में सेना को नौ में से चार युवकों को जिंदा और मार दिए गए पांच युवकों के शवों को पेश करना पड़ा था.

इस घटना में सेना के ढोला कैंप की 18 पंजाब रेजीमेंट के सात जवान पर युवकों की हत्या में शामिल होने का आरोप लगा था. सालों की सुनवाई केे बाद साल 2018 में सेना के एक कोर्ट ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. 

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